शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

आजकल



राहत     की    बात  

 हवा       हुई,

     मुश्किल    एक    से        

सवा      हुई।



कमाई   नौ   दो  ग्यारह      

हो    चली,

हथेली    तप-तप    कर     

तवा        हुई। 

मुश्किल     एक      से        

सवा      हुई।



भूख        से        

अब            हुए,

गेंहूँ      की      मिगी     

मैदा  -  रवा      हुई । 

    मुश्किल    एक    से        

सवा      हुई।





चार      बाटी    दबाईं   

अलसाई  आँच   में,

अंगीठी    भड़ककर        

अवा         हुई। 

   मुश्किल    एक     से        

सवा      हुई।



आये  हैं अमीर-फ़क़ीर     

हालात     बदलने,

ख़ुशी    केवल    इनकी     

हमनवा      हुई। 

   मुश्किल     एक     से        

सवा      हुई।



लाख   टके   की  बात  

दो  टके  की  न  करो,

ज़हर    की     गोली     

कब     दवा      हुई?  

   मुश्किल   एक     से        

सवा      हुई।


 @ रवीन्द्र  सिंह  यादव

11 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६ -१०-२०१९ ) को "आओ एक दीप जलाएं " ( चर्चा अंक - ३५०० ) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. आये हैं अमीर-फ़क़ीर

    हालात बदलने,

    ख़ुशी केवल इनकी

    हमनवा हुई।

    मुश्किल एक से

    सवा हुई।

    जो सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक हालात हैं, उसमें सवा तो कम अब जो भी आएगा, मुश्किलें ढ़ाई गुना होगीं।
    चिंतनपरक लेखनी को नमन।

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    उत्तर


    1. एक गीत जो मैं अकसर गुनगुनाता हूँ, उसकी ये पक्तियाँ आपकी रचना पढ़ जुबां पर आ गयी हैं-
      होगा मसीहा सामने तेरे
      फिर भी न तू बच पायेगा
      तेरा अपना खून ही आखिर
      तुझ को आग लगायेगा
      आसमान में उड़नेवाले
      मिट्टी में मिल जायेगा...
      हमारे रहनुमा और हमदर्द जो सत्ता में हैं, जो घर- परिवार तथा समाज में हैं , कोई काम नहीं आएँगें ,स्वार्थ एवं अर्थ की ऐसी आँधी चल रही है।

      हटाएं
  3. श्री राम ने अहंकारी रावण को उसके अहंकार के साथ उसका नाश किया था,
    श्री कृष्ण ने इंद्र के अहंकार को चकनाचूर किया था.
    दीपोत्सव यूँ ही नहीं मनाया जाता -
    दीपोत्सव मनाने के लिए आप भी किसी घमंडी का सर नीचा कीजिए.

    जवाब देंहटाएं
  4. मुश्किलें सच में बढती ही जा रही हैं ...बेरोजगारी गरीबी भी कहाँ कम हुई
    आये हैं अमीर-फ़क़ीर

    हालात बदलने,

    ख़ुशी केवल इनकी

    हमनवा हुई।

    मुश्किल एक से

    सवा हुई।
    सही बात है एकदम सटीक ....समसामयिक बहुत ही उत्कृष्ट सृजन...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह!!रविन्द्र जी ,बहुत सुंदर व सटीक ..। मुश्किलें बढकर एक से सवा हुई ... .कया बात कही है ,सोलह आने सच ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी लिखी रचना सोमवार 19 दिसंबर 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    जवाब देंहटाएं
  7. लाख टके की बात

    दो टके की न करो,

    ज़हर की गोली

    कब दवा हुई?

    मुश्किल एक से

    सवा हुई।
    आपकी रचना का एक-एक शब्द वर्तमान विसंगतियों पर करारा प्रहार कर रहा है। अप्रतिम रचना आदरणीय सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. अद्भुत रचना! कोई क्षेत्र ऐसा नज़र नहीं आता, जहाँ विसंगतियाँ एक से सवा नहीं हुई हों। प्रशासन को ही क्यों दोष दें हम, हम सबने भी तो अपने स्वार्थ के चलते हर नैतिकता को ताक पर रख दिया है। अच्छे दिन लाने के लिए हमें स्वयं को अच्छा बनाना होगा

    जवाब देंहटाएं
  9. मुहावरों में समाज, राष्ट्र और जीवन की विसंगतियों और विद्रूपता को बड़े कौशल से उद्घाटित करती रचना के लिए बधाई रवींद्र जी।🙏

    जवाब देंहटाएं

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