आओ अब अतीत में झाँकें...
आधुनिकता ने ज़मीर
क्षत-विक्षत कर डाला है.
भौतिकता के प्रति
यह कैसी अभेद्य निष्ठा
दर्पण पर धूल
छतों पर मकड़ी के जाले
कृत्रिम फूल-पत्तियों में
जीवन के प्रवाह का अन्वेषण.
सपने संगठित हो रहे
विखंडित मूल्यों की नींव पर
भूमि-व्योम में
कलुषित विचारों का विनिमय
मानवता के समक्ष अबूझ पहेली.
झूठा आदर्श मथ रहा
मानस हमारा
त्रासद है
मन का बुझकर विराम लेना.
हो रहे विलुप्त
दैनिक जीवन से
सामाजिक मूल्य
प्रेम, करुणा, दया, सहयोग, चारित्रिक-शुचिता
दूसरों की परवाह में प्रसन्नता
व्यक्ति से कोसों आगे चल रहे हैं .
आओ ठिठककर खोलें
बीते कल का कोई झरोखा
देखें सौंदर्यबोध की व्यग्रता से
कितनी दूर आ गये हैं हम....!
पदार्थवाद में
कितना धंस चुके हैं हम.....!!
#रवीन्द्र सिंह यादव
#रवीन्द्र सिंह यादव