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शनिवार, 4 दिसंबर 2021

क्रोध

सूनी यामिनी में 

जलते-जलते क्रोध में 

नज़र चाँद पर जा ठहरी 

सर्दियों की रात में 

न जाने क्यों लगा ज्यों तपती दोपहरी 


शुभ्र शांत शीतल चाँदनी की आभा में 

क्रोध समाता गया 

समाता ही चला गया...

ग्लानिभाव उत्सर्जित हुआ

नहीं होते जब  

चाहे मुताबिक़ 

चीज़ें 

घटनाएँ 

परिस्थितियाँ 

आँकड़े 

हथियार 

लेखनी 

संमुख-वाणी 

लोगों का व्यवहार

जेब का वज़्न

सोचे परिणाम 

तब क्रोध का ज्वालामुखी फूट पड़ता है 

क्रोधित के मस्तिष्क से न्यूरॉन नष्ट करता है 

लक्षित को विचलित करता है 

क्रोधावेग वक्री होने पर 

आकलन होता है 

शारीरिक 

व्यावहारिक 

आर्थिक 

सामाजिक 

वैश्विक नुकसान की अंधी गली का 

आगे बिछा मिलता है असहयोग के रेशों से बुना ग़लीचा 

कितना कोसा गया 

दबाया गया 

आलोचा गया 

बेचारे क्रोध को 

एक विद्रूप मनोविकार 

क्रोधी को 

पछतावे के सरोवर में डुबो देता है 

क्रोध-वृक्ष की जड़ों में 

ईर्ष्या 

राग-द्वेष 

बदलाभाव 

अहंकार 

घृणा

अपमानित करने की मंशा

असफलता से उत्पन्न कुंठा

नकारात्मक बारम्बारता 

स्वयं को सही सिद्ध करने की ठेठ ज़िद 

ग़लत को सही कहने का ढीठपन 

न जाने कब समझेगा इंसान 

क्रोध भी सकारात्मक चादर ओढ़ लेता है 

जब 

खड़ा हो जाता है 

पीड़ित पक्ष के साथ

ताकतवर पर क्रोध करके

निरीह का थाम लेता है हाथ

क्रोध को वृहद उद्देश्यों में

ढलते हुए 

हमने पाया है

क्रोध कुछ सार्थक कथाएँ भी लाया है 

शिव का राजा दक्ष पर क्रोध  

ऋषि वाल्मीकि का

क्रोंच पक्षी के जोड़े से

एक को मारते बहेलिए पर क्रोध

ब्रह्मऋषि विश्वामित्र का महर्षि वशिष्ठ पर क्रोध 

क्रोधी-ऋषि दुर्वासा के श्राप-वरदान में लिपटा क्रोध 

राम का सागर और लक्ष्मण पर क्रोध

रावण का विभीषण पर क्रोध

ऋषि मुचुकुंद का कालयवन पर क्रोध 

कृष्ण का शिशुपाल, दुर्योधन और अश्वास्थामा पर क्रोध 

धृतराष्ट्र का भीम के लौह पुतले पर क्रोध

विद्योत्मा का कालिदास पर क्रोध

रत्नावली का तुलसीदास पर क्रोध

चाणक्य का राजा घनानंद पर क्रोध

कबीर का पाखंडियों पर क्रोध

दंगाइयों का निरीह नागरिकों पर क्रोध 

सम्राट अशोक का कलिंग युद्ध में हाहाकार! 

दिल्ली में नादिर शाह का चालीस दिनों तक नरसंहार!!

इन क्रोधों की कहानियाँ 

साथ लिए फिरता है समाज

फिर भी क्रोध के अंधकूप में बैठा है आज  


बस...बस...बस...!

फ़सादात में 

समाज के सतत उलझते-झगड़ते लड़ते रहने से  

लाभ की पोटली कौन उठा रहा है?

वो जो छिपकर तुम्हें क्रोधी बना रहा है 

अपने लिए अनुकूल माहौल बना रहा है 

तुम तो फटेहाल कंगाल हो जाओगे! 

और क्रोध के कारण को जानकर 

अंत में ख़ुद को ही कोसते रह जाओगे...

© रवीन्द्र सिंह यादव