व्यथा का तम
और कितना
सघन होगा?
अँधेरे-उजाले के मध्य
प्रतीक्षा के पर्वत के छोर पर
कब प्रभात के तारे का
सुखद आगमन होगा?
लोक-मानस में
अधीरता के आयाम
इतिहास की उर्वरा माटी पर
संप्रति
कोई तो
सर्जना के संवर्धन की
तबीयत समझ
लिखता जा रहा है
बहारों की आहट
अभी दूर है
वक़्त को यही मंज़ूर है
इस कठोरता को
रेखांकित कर दिया गया है।
© रवीन्द्र सिंह यादव