नीले फूलों लदी
गर्वीली गुलमेहंदी
की
मोहक मुस्कान
मानसिक थकान को
सोख न सकी
तब
तिरस्कार की चुभन
तीव्र करती
श्वेत सुमन के साथ
इतराने लगी जूही
अंततः
केसरिया पुष्प धारण किए
आत्मविस्मृत
एकाकीपन में गुम गेंदे ने
उपेक्षा की दहलीज़ पर
स्वयं को समर्पित किया
क्षितिज पर दृष्टि गढ़ाए
कोई बढ़ गया आगे
कोमल फूलों को कुचलता हुआ!
किसी ने देखा...
मासूम महकता फूल
अनिच्छा से मिट्टी में मिलता हुआ?
© रवीन्द्र सिंह यादव