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रविवार, 25 सितंबर 2022

समय के साथ

युगों-युगों में 

समय के साथ 

समाज सभ्य हुआ 

सुसंस्कृत होने की प्रवृत्ति का 

सतत क्षय हुआ

आज अवांछित अभिलाषाओं का 

अनमना आलोक 

अभिशप्त यंत्रणा के 

अंधड़ में ढल गया है 

भव्यता,भौतिकता के 

विस्तार का बीज 

लालच के गर्भ में पल रहा है  

विवेकहीन मस्तिष्क 

भावविहीन ह्रदय

क्षत-विक्षत भावनाओं का 

अंबार लादे 

बैल-सा जुते रहने की 

मंत्रणा कर 

सो गए हैं

आस्तीन का सॉंप डसेगा  

तंद्रा टूटेगी

तब तक  

समय रेत-सा फिसलकर

भावी पीढ़ियों की 

आँखों की किरकिरी बन चुका होगा!

© रवीन्द्र सिंह यादव  


बुधवार, 14 सितंबर 2022

मिसरी की डली के लिए

आईना दिखाने वाले 

कहाँ ग़ाएब हो गए?

शायद वे 

घृणा का गान सुनते-सुनते 

लहू का घूँट पीते-पीते 

जान की फ़िक्र में पड़ गए...

ऐब तो दूसरे ही बता सकते हैं

इस कथन के भी पाँव उखड़ गए... 

हरा-भरा है देश हमारा 

फिर मिसरी की डली के लिए 

एक मासूम की आँखों में 

गहरी उदासी क्यों है?

कहते हो 

क़ानून का राज है देश में 

तो फिर 

हत्यारों, बलात्कारियों;दंगाइयों को 

मिल रही शाबाशी क्यों है? 

तुम आईना तोड़ भी दो

अपने इंतज़ामों से 

हम कदापि न घबराएँगे  

वक़्त गर्दन पकड़कर 

झुकाएगा एक दिन  

तुम्हारा वीभत्स चेहरा 

मक्कारियाँ उसकीं 

चुल्लूभर पानी में हम दिखाएँगे। 

© रवीन्द्र सिंह यादव