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रविवार, 7 मई 2017

सत्ता


जनतंत्र में अब 
कोई राजा नहीं
कोई मसीहा नहीं
कोई महाराजा नहीं
बताने आ रहा हूँ मैं,
सुख-चैन से सो रही सत्ता
 जगाने आ रहा हूँ मैं।  

तेरे दरबार में इंसान 
कुचला पड़ा है,
तेरे रहम-ओ-करम पर
क़ानून बे-बस खड़ा है,
तेरे विराट वैभव की
चमचमाती चौखट की चूलें
हिलाने आ रहा हूँ मैं,
सुख-चैन से सो रही सत्ता
 जगाने आ रहा हूँ मैं ।  

संवेदना को रौंदकर
बस शोर के ज़ोर को  
आगे बढ़ाती जा रही है तू,
भीड़ को उन्माद का रस  
क्यों पिलाती जा रही है तू,
तेरी औक़ात-ओ -शान को     
दर्पण दिखाने आ रहा हूँ मैं,
सुख-चैन से सो रही सत्ता
 जगाने आ रहा हूँ मैं।   

देखे हैं अब तक मैंने 
तेरे यार-दोस्त सभी,
इनमें होते नहीं शामिल
दुखियारा-दुखियारी कभी,
पूरी जाँघ कट जाने पर 
कमर से लकड़ी बाँधकर
हल जोतते किसान की पीड़ा
सुनाने आ रहा हूँ मैं,
सुख-चैन से सो रही सत्ता
 जगाने आ रहा हूँ मैं।    


मेरा हक़ मारकर 
छकों को दे रही है तू
नाव-पतवार हमारी 
बैठाकर किसे खे रही है तू...?
भूख से व्याकुल औलाद की 
तड़प न सह पाने पर 
एक विवश माँ के आग में 
जल जाने की जलन-तपन
महसूस कराने आ रहा हूँ मैं,
सुख-चैन से सो रही सत्ता
 जगाने आ रहा हूँ मैं।   

बेकारी के दौर में  
दर-दर भटकते
मायूस हैं युवामन,
नैराश्य के ख़ंजर ने 
घायल कर दिए यौवन,
अभावों में मचलते 
स्वभावों का गणित
पढ़ाने आ रहा हूँ मैं,
सुख-चैन से सो रही सत्ता
 जगाने आ रहा हूँ मैं।  

दरिंदों की हवस ने
जीवन तबाह कर डाले हैं कई,
स्त्री-जीवन में क्यों 
रोज़ चुभते हैं भाले कई,
रोज़ मर-मरकर जीने की  
टीस और दर्द का एहसास
सुनाने आ रहा हूँ मैं,
सुख-चैन से सो रही सत्ता
 जगाने आ रहा हूँ मैं।  

राज करने का लायसेंस  
तेरा क़ाएम रहे तो...       
लड़ाती-भिड़ाती है हमें 
आपस में बैर रखने को, 
कहती है होकर ज़ालिम तू
मज़लूम पर पैर रखने को,
अरे! तेरी मर चुकी ग़ैरत 
ज़िंदा कराने आ रहा हूँ मैं,
सुख-चैन से सो रही सत्ता
 जगाने आ रहा हूँ मैं।  

तेरे आत्ममुग्धी फ़ैसलों से 
जनता तकलीफ़ में पड़ती जा रही है,
किसी का घर भर दिया तूने
ग़रीबों से रोज़ी बिछड़ती जा रही है,
तेरी बदमाशियों का कच्चा-चिट्ठा
लटकाने ललाट पर तेरे आ रहा हूँ मैं,
सुख-चैन से सो रही सत्ता
 जगाने आ रहा हूँ मैं।   


झौंक दिया सारा जीवन 
औरों के सुख की चाह में,
 देश का निर्माण करने 
गढ़ गया हूँ थाह में,
श्रेय लेने की बे-हयाई तुझे मुबारक   
स्वराज के मर्म का परचम
लहराने आ रहा हूँ मैं।
सुख-चैन से  सो रही सत्ता
 जगाने आ रहा हूँ मैं।   
© रवीन्द्र सिंह यादव


शब्दार्थ / Word  Meaning 
जनतंत्र   = लोकतंत्र, जनतंत्र / Democracy
 मसीहा  = दुःख - दर्द हरने वाला / Healer
रहम-ओ -करम = मेहरबानी /Grace & favour, MERCY & KINDNESS
बे-बस = शक्तिहीन / Powerless
वैभव=शान-शौकत, भव्यता / Wealth , Grandeur
चौखट = किवाड़ों की चौखट /  Door frame
चूलें = जोड़, Dovetail, Joints
उन्माद = ज़ुनून, सनक, पागलपन / Hysteria, Madness, Mania
औक़ात-ओ -शान = क्षमता और गर्व  / Status /Capacity &Pride
जाँघ  = जंघा / Thigh
छकों = छके हुए, मन भरकर खाए-पीए हुए,तृप्त ,संतृप्त // Fulfillment, Saturated, wealthy persons
ख़ंजर= कटार /  DAGGER
खे = नाव खेने (Moving Boat ) की क्रिया
अभाव = कमी , अनुपलब्धता,Scarcity ,Unavailability
ज़ालिम = दुष्ट ,cruel
मज़लूम = घायल /पीड़ित , Injure ,Oppressed
आत्ममुग्धी = ख़ुद को प्रसन्न करने वाले ,Self pleasant
महरूम = वंचित /Deprived, Prohibited
ललाट = माथा / Forehead
थाह =गहराई ,Depth
बे-हयाई   = बेशर्मी   ,निर्लज्जता ,धृष्टता , Being Shameless
परचम =ध्वज ,झंडा ,Flag

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-12-2019) को    "यीशू को प्रणाम करें"  (चर्चा अंक-3560)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 21 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. झौंक दिया सारा जीवन
    औरों के सुख की चाह में ,
    देश का निर्माण करने
    गढ़ गया हूँ थाह में,
    श्रेय लेने की बे-हयाई तुझे मुबारक़
    स्वराज के मर्म का परचम
    लहराने आ रहा हूँ मैं।
    सुख-चैन से सो रही सत्ता
    जगाने आ रहा हूँ मैं । वाह!! बेहतरीन रचना।

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  4. वर्तमान परिवेश का साधती बेहतरीन रचना।
    वाह!

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  5. जब कवि का स्वर गूंजता है है तो जड़ समाज में चैतन्य का संचार होता है।रचना जो समसामयिक विद्रूपताओं पर सशक्त प्रहार करती है।।

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  6. जाँघ कट जाने पर
    कमर से लकड़ी बाँधकर
    हल जोतते किसान की पीड़ा
    सुनाने आ रहा हूँ मैं ।
    सुख-चैन से सो रही सत्ता
    जगाने आ रहा हूँ मैं ।
    सत्ता तक जब आवाज पहुंचे तब न....
    पर आज नहीं तो कभी ही सही कवि अपनी सशक्त लेखनी से सत्ता को जगाने का प्रयास जारी रखे एक दिन कई आवाजें साथ होंगी तब सत्ताधारियों के नींद चैन सब गायब होंगे।
    लाजवाब सृजन।🙏🙏🙏🙏🙏

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  7. वाह!!,शानदार सृजन । सत्ता सोई पडी है ,किसी की तकलीफ से उसे कोई फर्क नहीं पडता ..चलिए ,साथ मिलकर जगाते है ।

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आपकी टिप्पणी का स्वागत है.