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रविवार, 8 अक्टूबर 2017

करवा चौथ


कार्तिक-कृष्णपक्ष  चौथ का चाँद 
देखती हैं सुहागिनें 
आटा  छलनी  से....  
उर्ध्व-क्षैतिज तारों के जाल से दिखता चाँद 
सुनाता है दो दिलों का अंतर्नाद। 


सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प 
होता नहीं जिसका विकल्प 
एक ही अक्स समाया रहता 
आँख से ह्रदय तक 
जीवनसाथी को समर्पित 
निर्जला व्रत  चंद्रोदय तक। 


छलनी से छनकर आती चाँदनी में होती है 
सुरमयी   सौम्य सरस  अतीव  ऊर्जा 
शीतल एहसास से हिय हिलोरें लेता 
होता नज़रों के बीच जब छलनी-सा  पर्दा।  


बे-शक चाँद पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह है
उबड़-खाबड़  सतह  पर  कैसा ईश अनुग्रह है ? 
वहां जीवन अनुपलब्ध  है 
न ही ऑक्सीजन उपलब्ध है 
ग्रेविटी  में छह गुना अंतर है 
दूरी 3,84,400 किलोमीटर है 
फिर भी चाँद हमारी संस्कृति की महकती ख़ुशबू है 
जो महकाती है जीवन पल-पल जीवनभर अनवरत......! 


#रवींद्र सिंह यादव 

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (28-10-2020) को   "स्वच्छ रहे आँगन-गलियारा"    (चर्चा अंक- 3868)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  2. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय सर।

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  3. आदरणीय रवींद्र सिंह यादव जी, नमस्ते👏! बहुत सुंदर रचना है । आपकी कल्पनाशीलता के लिए साधुवाद!
    चाँद हमारी संस्कृति की महकती ख़ुशबू है
    जो महकाती है जीवन पल-पल जीवनभर अनवरत......!सुंदर पंक्तियाँ!--ब्रजेन्द्रनाथ

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