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रविवार, 17 दिसंबर 2017

शातिर पड़ोसी और हम ....



विस्तारवादी सोच का 

एक देश 

हमारा पड़ोसी है 

उसके यहाँ चलती तानाशाही  

कहते हैं साम्यवाद,

हमारे यहाँ 

लोकतांत्रिक समाजवाद के लबादे में 

लिपटा हुआ पूँजीवाद। 



इंच-इंच ज़मीं के लिए 

उसकी लपलपाती जीभ 

सीमाऐं लांघ जाती है, 

हमारी सेना 

उसकी सेना को बिना हथियार के 

उसकी सीमा में धकेल आती है। 



कविवर अटल जी कहते हैं-

"आप मित्र बदल सकते हैं  पड़ोसी नहीं",

शीत-युद्ध समाप्ति के बाद 

दुनिया में अब दो ध्रुवीय विश्व राजनीति नहीं। 



शातिर पड़ोसी ने 

भारत के पड़ोसियों को 

निवेश के नाम पर सॉफ़्ट लोन बांटे 

ग़ुर्बत  में लोन और भारी हो गए / हो जायेंगे 

सॉफ़्ट  से व्यावसायिक लोन हो गए / हो जायेंगे 

लोन न चुकाने पर 

शर्तें बदल गयीं / बदलेंगीं 

लीज़ के नाम पर कब्ज़ा होगा 

चारों ओर से भारत को घेरने का 

व्यावसायिक कारोबार के नाम पर 

युद्धक रणनीति का इरादा होगा 

और हम 

सांप्रदायिक उन्माद और नफ़रत के छौंक-बघार  लगी 

ख़ूनी-खिचड़ी चाव से खा रहे होंगे .... 

क्योंकि बकौल पत्रकार अरुण शौरी -

"इस देश की वर्तमान सरकार ढाई लोग चला रहे हैं।"

हैं ख़ुद मज़े में ढाई, जनविश्वास को धता बता  रहे हैं। 

# रवीन्द्र सिंह यादव  

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-12-2019) को    "पत्थर रहा तराश"  (चर्चा अंक-3541)    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।  
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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