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सोमवार, 24 दिसंबर 2018

श्रद्धाँजलि

श्रद्धाँजलि !

जला दी गयी अंजलि !

ताँडव करती 

ख़ौफ़नाक बर्बरता 

चीख़ती-चिल्लाती 

कराहती मानवता 

ज्वाला में 

धधका होगा शरीर 

सही गयी होगी 

कैसे तपन-पीर

बेख़ौफ़ दरिंदे 

क्या संदेश देना चाहते हैं ?

स्त्री को कौन-सा 

सबक़ सिखाना चाहते हैं?

न्याय के लिये 

भटकते लाचारों को देख 

करते हैं अपराधी अट्टहास 

लचर व्यवस्था देख-देख!    

© रवीन्द्र सिंह यादव

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दुखदायी ! एक पुराना भारत-गौरव गीत याद आ रहा है किन्तु उसके शब्द किंचित बदल गए हैं -जहाँ गाँव-गाँव में, शहर-शहर में, बेटी ज़िन्दा जलतीं,
    वह भारत देश है मेरा !
    जहाँ न्याय, धर्म और मानवता की अर्थी नित्य निकलतीं,
    वह भारत देश है मेरा !

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  2. वाह्ह्ह भईया...। रचना में आग पूर्ण रूप से दिख रहा है..जैसे बर्दाश्त करने की हद अब पार हो चुकी है। श्रध्दांजलि सटीक शीर्षक है, रचना को प्रथम पंक्ति से अंतिम पंक्ति तक बांधे हुए है।
    "...
    न्याय के लिये
    भटकते लाचारों को देख
    करते हैं अपराधी अट्टहास
    लचर व्यवस्था देख-देख!"

    और इस लचर व्यवस्था के प्रति क्रोध, शुरू के पंक्ति को पढने से प्रदर्शित हो रहा है।

    "श्रद्धाँजलि !
    जला दी गयी संजलि !
    ताँडव करती
    ख़ौफ़नाक बर्बरता
    चीख़ती-चिल्लाती
    कराहती मानवता
    ..."

    इस रचना के प्रशंसा में हिन्दी में कहे तो 'खतरनाक'...और अंग्रेजी में कहे तो 'Awesome'.

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  3. वाह!!रविन्द्र जी..नि:शब्द हूँ ।
    .तांडव करती खौफनाक बर्बरता
    चीखती ,चिल्लाती ,कराहती मानवता ..
    यही है हमारी व्यवस्था .....।

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  4. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/12/102.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  5. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ३१ दिसम्बर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  6. सच है कब तक ...
    सुरसा सी बढती घटनाएं और न्याय दूर होता जा रहा है ...
    गहरा चिंतन है आपकी रचना में इस व्यवस्था का ...

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  7. ताँडव करती
    ख़ौफ़नाक बर्बरता
    चीख़ती-चिल्लाती
    कराहती मानवता
    समाज के कटु सत्य को उजागर करती उत्कृष्ट रचना...
    बहुत लाजवाब।

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