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शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

कन्धों पर सरहद के जाँबाज़ प्रहरी आ गये

मातम का माहौल है 

कन्धों पर सरहद के

जाँबाज़ प्रहरी आ गये 

देश में शब्दाडम्बर के 

उन्मादी बादल छा गये 

रणबाँकुरों का रक्त 

सड़कों पर बहा 

भारत ने आतंक का 

ख़ूनी ज़ख़्म सहा 

बदला! बदला!!

आज पुकारे देश हमारा

गूँज रहा है 

गली-चौराहे पर 

बस यही नारा 
 
बदला हम लेंगे 

फिर वे लेंगे....  

बदला हम लेंगे 

फिर वे लेंगे....

हम.... 

फिर वे......

केंडिल मार्च में 

भारी आक्रोशित मन होगा 
   
मातम इधर होगा

मातम उधर भी होगा

हासिल क्या होगा 

यह अंतहीन सिलसिला 

ख़त्म हो 

समाधान हो

विवेक जाग्रत हो 

सेना सक्षम हो

निर्णय क्षमता विकसित हो

स्टूडियो में एंकर लड़ते युद्ध

रैलियों में नेता भीड़ करते क्रुद्ध

लाल बहादुर शास्त्री से सीखो 

निर्णय लेना

जय जवान 

जय किसान 

तब इतराकर कहना

भय से मिलता वोट 

जिन्हें वे अब जानें  

मत समझो सस्ती हैं 

धरती के लालों की जानें !

दुश्मन को सक्षम सेना सबक़ सिखायेगी, 

बकरे की अम्मा कब तक ख़ैर मनायेगी। 

© रवीन्द्र सिंह यादव     

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

बसंत (वर्ण पिरामिड)

मन  भर  हुलास
आया मधुमास 
कूकी कोकिला
कूजे  पंछी    
बसंत 
छाया 
है। 

लो  
आया  
बसंत
ऋतुराज  
फूले पलाश 
मादक बयार  
है बसंत बहार।

हैं 
खेत
बंसती
जाग रही    
आम्र मंजरी
सोने चल पड़ी 
उदास शीत ऋतु।  
© रवीन्द्र सिंह यादव  

शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

आत्महीनता


विकास में पिछड़े 

तो आत्महीनता

घर कर गयी 

विमर्श में पतन हुआ 

तो बदलाभाव और हिंसा 

मन में समा गयी  

भूमंडलीकरण के 

मुक्त बाज़ार ने 

इच्छाओं के 

काले घने बादल 

अवसरवादिता की 

कठोर ज़मीन तैयार की 

सामाजिक मूल्यों की

नाज़ुक जड़ों में 

स्वेच्छाचारिता के   

संक्रमणकारी वायरस की  

भयावह दस्तक!

ख़ुशी के बदलते पैमाने 

नक़ली फूल-पत्तियों से 

सजती निर्मोही दीवार  

मनोरंजन मीडिया करते 

भावबोध पर प्रचंड प्रहार 

यह पॉपुलर-कल्चर 

हमें कहाँ ले जा रहा है ? 

© रवीन्द्र सिंह यादव

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

स्टोन क्रशर


पथरीले हठीले 

हरियाली से सजे पहाड़ 

ग़ाएब हो रहे हैं,

बसुंधरा के श्रृंगार  

खंडित हो रहे हैं। 


एक अवसरवादी 

सर्वे के परिणाम पढ़कर 

जानकारों से मशवरा ले, 

स्टोन क्रशर ख़रीदकर 

एक दल में शामिल हो गया। 


चँदा भरपूर दिया 

संयोगवश / धाँधली करके 

हवा का रुख़ 

सुविधानुसार हुआ, 

पत्थर खदान का ठेका मिला 

कारोबार में बरकत हुई,  

कुछ और स्टोन क्रशर की 

आमद हुई।  


खदान पर कार्यरत मज़दूर 

घिरे हैं गर्द-ओ-ग़ुबार से 

पत्थरों को तोड़कर, 

बनती पृथक-पृथक आकार की

बेडौल गर्वीली गिट्टी,

पत्थर होते खंड-खंड 

महीन से महीनतर, 

फिर महीनतम होती

चूरा-चूरा गिट्टी,

मज़दूरों की साँसों के रास्ते 

फेफड़ों में जमा हो रही है, 

और दौलत!

तथाकथित नेता की 

तिजोरियों में!


अगले चुनाव तक 

ठेकेदार नेता हो जायेगा 

और मज़दूर

भगवान को प्यारा हो जायेगा!

© रवीन्द्र सिंह यादव