कविवर विष्णु नागर जी के शब्दों में-
'पत्नी से बड़ा कोई आलोचक नहीं होता
उसके आगे नामवर सिंह तो क्या
रामचंद्र शुक्ल भी पानी भरते हैं
अब ये इनका सौभाग्य है
कि पत्नियों के ग्रंथ मौखिक होते हैं, कहीं छपते नहीं '
वहीं दूसरी ओर वे जीवन को कविता कहते हैं-
'जीवन भी कविता बन सकता है
बस उसे लिखना आना चाहिए '
निष्पक्ष और सख़्त आलोचक
पत्नी जैसा हो
पत्नी जैसा हो
आपके साथ हो
तो निस्संदेह
कविता नज़र आयेगी
काव्य-कर्म के उत्तुंग शिखर पर
कविता नज़र आयेगी
काव्य-कर्म के उत्तुंग शिखर पर
कविता में सामाजिक सरोकारों का
सार्थक समावेश
अन्याय का मुखर विरोध
समूह की बर्बर तानाशाही का
सक्षम सबल प्रतिरोध
सार्थक समावेश
अन्याय का मुखर विरोध
समूह की बर्बर तानाशाही का
सक्षम सबल प्रतिरोध
मनोरंजन की स्वीकार्य मर्यादा
ट्रोल से दूर रहने का सच्चा वादा
किसी भी देश को जानने के लिये
उस दौर के शासक को
नहीं चाहेंगे लोग जानना
साहित्य-कर्म के ज़रिए
उचित है सृजनात्मक तारीख़ को
वास्तविकता में जानना।
वास्तविकता में जानना।
कविता का कादम्बरी कद
जीवन की कतिपय
विद्रूपताओं-विसंगतियों के
विद्रूपताओं-विसंगतियों के
सहज समावेश से ऊँचा उठता है
प्रेमी / प्रेमिकाओं के साथ कविता में
संयोग और वियोग शृंगार के
मानकों की पराकाष्ठा उभरती है
शृंगार रस में पगी कविता
दिल की गहराइयों में उतरती है।
प्रेम में भाव गूँथने के लिये
बहुतेरे शब्द ज़रूरी होते हैं
पाठक को सांगोपांग अनुभव कराने हेतु
पत्नी का दिया फ़ॉर्मूला कहता है-
थोड़े में ज़्यादा कहो
अपनी कालजयी कविता में
सरोकार, स्वस्थ मनोरंजन, ज्ञान,
सामयिक सच और विचार भरो!
आत्मचेतस लेखक न बनो,
पीड़ित मानवता का दर्द लिखो!
सोये समाज का मर्म लिखो!
व्यक्ति का महिमामंडन नहीं,
क़लम का स्वधर्म लिखो!
© रवीन्द्र सिंह यादव
Wow such great and effective guide
जवाब देंहटाएंThank you so much for sharing this.
BhojpuriSong.in
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (31-08-2019) को " लिख दो ! कुछ शब्द " (चर्चा अंक- 3444) पर भी होगी।
---
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
वैसे सत्य कहूँ तो रवींद्र जी आपकी लेखनी के समक्ष मैं स्वयं को भी सूक्ष्म समझने लगता हूँ क्योंकि आपकी पारखी नज़र वहाँ भी पहुँचने में सक्षम है जहाँ हम साधारण लेख़क विचार भी नहीं कर सकते। जहाँ एक ओर कालजयी लेखिका परम आदरणीया अमृता प्रीतम जैसी शख़्सियत को हमारे अल्प ज्ञानी, वर्तमान साहित्यकार का झूठा चोला पहनने वाले छदम लेख़क लानते भिजवाते हैं और देश का बंटाधार करने वाले राजनेताओं का महिमामंडन करते एवं उनके द्वारा किये गए पापों का सारा बोझ स्वयं की ख़च्चर रूपी लेखनी पर लादते नज़र आते हैं, वहीं आप समाज में सत्य विचारों का प्रचार-प्रसार करते नज़र आते हैं। अमृता प्रीतम जैसी महान शख़्सियत पर कीचड़ उछालने से पहले लोग स्वयं की बुराईयाँ तलाश करें जो अज्ञानतावश स्वयं ही गोदीसाहित्यकार बन बैठे हैं। और इससे ज़्यादा मैं क्या कहूँ। इतिहास इनके कृत्य को अवश्य स्मरण करेगा। नमन है आपको और आपकी लेखनी को। सादर "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंप्रिय ध्रुव . पक्ष और विपक्ष समानांतर चलते हैं | हमें दुसरे पक्ष की बात भी धैर्य से सुननी चाहिए | निर्विवाद रूप से अमृता प्रीतम का लेखन कालजयी है | पर शायद वर्जनाओं को तोड़ने की उनकी अव्छ्न्द प्रवृति परम्परावादियों को कभी नहीं सुहाई , पर उनके लेखन पर प्राय सभी लोग एकमत हैं | और सबको अपनी बात कहने का अधिकार है | यही स्वस्थ चर्चा को आगे बढ़ता है | सस्नेह-
हटाएंकृपया स्वछन्द पढ़ें
हटाएंऔर एक बात, कालजयी लेखिका परम आदरणीया अमृता प्रीतम जैसी शख़्सियत तो दूर इन लेखकों को हिंदी भाषा का भी ज्ञान नहीं और न ही हिंदी व्याकरण का और सभई हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि धारण किये हुए महाज्ञाता हैं। भाई पहले दस रुपये वाली एक-एक हिंदी व्याकरण की पुस्तक ख़रीद लो फ़िर मिल-जुलकर इन महान साहित्यकारों पर कीचड़ उछालते हैं। नहीं तो वहाँ भी चन्द्रबिंदु और नुक़्ता लगाना भूल जाओगे। सादर
जवाब देंहटाएंकितना अच्छा लिखते हो आप और आपकी कलम की सबसे बड़ी ताकत त्रुटि विहीन लेखनी नमन आपको
जवाब देंहटाएंकितना अच्छा लिखते हो हर शब्द मानो शुद्धता के घोल में डूबकर निकला हो कहीं भी छोटी सी भी गलतियां नहीं मिलती है आपके लेखनी में नमन आपको
जवाब देंहटाएंवाह ,बहुत ही सटीक और सुन्दर रचना,नमन आपकी लेखनी को
जवाब देंहटाएंवाह आदरणीय सर एक एक शब्द उचित है और प्रस्तुति निराली
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना
सादर नमन
लाजवाब
जवाब देंहटाएंवाह!रविन्द्र जी ,🙏🙏 शानदार सृजन !सही मेंं आप थोडे मे बहुत कुछ कह जाते हैं ।
जवाब देंहटाएंसराहना से परे पत्नी के प्रति आत्मीयता झलकाती बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत कुछ कहती है |
जवाब देंहटाएंथोड़े में ज़्यादा कहो
अपनी कालजयी कविता में
सरोकार, स्वस्थ मनोरंजन, ज्ञान,
सामयिक सच और विचार भरो!
आत्मचेतस लेखक न बनो,
पीड़ित मानवता का दर्द लिखो!
सोये समाज का मर्म लिखो!
व्यक्ति का महिमामंडन नहीं,
क़लम का स्वधर्म लिखो!....निशब्द हूँ
प्रणाम
सादर
पत्नियों के ग्रंथ मौखिक होते हैं, कहीं छपते नहीं ...
जवाब देंहटाएंये प्रकाशित भी हो, इसकी जिम्मेदारी पति परमेश्वर की होनी चाहिए, ताकि हमारे जैसे अविवाहित लोग भी इस ग्रंथ में वर्णित उपदेश से लाभान्वित हो सके।
सादर प्रणाम।
आदरणीय भाई रवीन्द्र जी , कविता पर पत्नी के लिए सूत्र पर एक कवि पति के भाव लाजवाब हैं | एक पत्नी से बड़ा कोई प्रबन्धक नहीं हो सकता | शायद इसी लिए , कि उसे पता होता है , कि उसे कब कौन सा काम करना है | गृहस्थी की गाड़ी को तीव्र गति से चलाने में उसकी भूमिका अतुलनीय है तो क्यों ना कविता में भी उन्ही का फार्मूला चले | थोड़े में ज्यादा कहना , सामयिक सच्चाईयों का अनावरण , स्वस्थ मनोरंजन से साथ ज्ञान , सरोकार , मानवता का दर्द और सोये समाज का मर्म --- वाह -- यदि पत्नी के ये सार्थक सूत्र और पति की कुशाग्र , विलक्षण बुद्धि का मणिकांचन योग बन जाए तो कविता को पंख लगेंगे और वह भावों पर सवार हो उन्मुक्त उड़ान भरेगी | सुंदर सार्थक और अपनी तरह का आप सृजन !! जिसके लिए हार्दिक शुभकामनायें और बधाई |
जवाब देंहटाएंसभी चित्र अत्यंत मनमोहक हैं |
जवाब देंहटाएंसुन्दर सटीक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंपत्नी का दिया फ़ॉर्मूला कहता है-
जवाब देंहटाएंथोड़े में ज़्यादा कहो
अपनी कालजयी कविता में
सरोकार, स्वस्थ मनोरंजन, ज्ञान,
सामयिक सच और विचार भरो!
आत्मचेतस लेखक न बनो,
पीड़ित मानवता का दर्द लिखो!
सोये समाज का मर्म लिखो!
व्यक्ति का महिमामंडन नहीं,
पत्नी का फार्मूला तो लाजवाब है परन्तु ये लेने वाले पर डिपेंड करता है कि उसने किस रूप में लिया....जिसने ले लिया समझों उसने अपने पाठकों को सांगोपांग अनुभूति दे दी...वैसे पत्नी के इस परफेक्ट फार्मूले के जरिए आपने अपने फॉलोअर्स को हमको लेखन का मूलमंत्र दिया है और इस क्षेत्र में सफल होने की राह भी सुझायी है
इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
पत्नी एक सूत्रधार है ... संचालित करती है जीवन को ... रेखांकित करती है लम्हों को ...
जवाब देंहटाएंऔर सबसे आगे ... क्या न कुछ लिखवा भी जाती है अपनी धुरी से लिपटे हुए ... अच्छी रचना ...
पत्नी का दिया फ़ॉर्मूला कहता है-
जवाब देंहटाएंथोड़े में ज़्यादा कहो
अपनी कालजयी कविता में
सरोकार, स्वस्थ मनोरंजन, ज्ञान,
सामयिक सच और विचार भरो!
आत्मचेतस लेखक न बनो,
पीड़ित मानवता का दर्द लिखो!
सोये समाज का मर्म लिखो!
व्यक्ति का महिमामंडन नहीं,
क़लम का स्वधर्म लिखो!
वाह बहुत सुंदरता से आपने रचनाकार और क़लम का स्वधर्म
समझाया ।
सही है क़लम-कार को सदा सामायिक परिस्थितियों पर गहरी दृष्टि रख कर काव्य सृजन करना उसका समाज और देश के प्रति दायित्व है ।
सोच विस्तृत हो, निष्पक्ष हो और देश हित में हो तो ऐसा कलमकार सच उपलब्धि होता है उस समय और उस राष्ट्र का ।
एक संवेदनशील विषय को सहजता का सुंदर बाना पहनाती सुंदर रचना ।
पत्नी के प्रति आत्मियता दर्शाती बहुत ही सुंदर रचना।
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