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गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

हत्यारे के घर में चाय-पानी

उस रोज़ 

सैर से लौटते हुए 

मित्र मुझे एक घर में 

अकारण ही ले गया

कोई काग़ज़ी लेनदेन था 

चाय-पानी के बाद 

हम अपने रास्ते पर आए। 


मैंने मित्र को छेड़ते हुए कहा-

"
जोड़ा बेमेल था।"

"
पहली 

इसके कुकर्मों के चलते 

आत्मदाह कर चल बसी 

दूसरी के हाथ 

पहली की हत्या की  

चिट्ठी हाथ लग गई

अब तलाक़ का 

केस चल रहा है

कइयों का घर 

झगड़े में पल रहा है  

यह जो तीसरी है 

दूसरी को 

तलाक़ की डिग्री 

मिलने पर 

विधिवत पत्नी हो जाएगी।"



मित्र की 

पहेलीनुमा बातें सुनकर 

मेरा सर 

चकरा गया

चलते-चलते 

लैम्प-पोस्ट से 

टकरा गया

सोचने लगा-

हत्यारे-

कलाप्रेमी

कलापारखी 

संगीतप्रेमी

प्रकृतिप्रेमी

पर्यावरणप्रेमी 

पक्षीप्रेमी

समाजसेवी

चेहरे पर 

शालीन मुस्कान लिए होते हैं!

उस घर में दिखी 

एक-एक वस्तु

मेरे ज़ेहन में 

ज़ोर-ज़ोर से 

हथौड़े-से 

निर्मम प्रहार करती हुई 

पूछ रही थी-

क्यों आए थे

एक हत्यारे के साथी के साथ 

हत्यारे के घर में?

©
रवीन्द्र सिंह यादव


14 टिप्‍पणियां:

  1. कबीरा कहे
    भाँति-भाँति के लोग यह संसार में

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 16 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (17-04-2020) को "कैसे उपवन को चहकाऊँ मैं?" (चर्चा अंक-3674) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है

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  4. दुनिया रंग रंगीली बाबा .....तरह-तरह के लोग यहाँ पर ,तरह-तरह का मेला...।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीय रवीन्द्र जी , सच के बिलकुल करीब एक संवेदनशील कवि ने जो कहना चाहा है वही इस दुनिया का कोरा और खरा सच है | सभ्य समाज भी बदमाशी को सलाम करता है | प्रायः सब कुछ जानकर भी लोग अनजान बने रहते हैं और खुद को ऐसे विवादित लोगों के सामने खरा साबित करते रहते हैं | शायद सामने वाले को पता हो भी सकता है कि उसे सब पता है और शायद वह गलतफहमी में रहता हो कि कोई उसकी असलियत नहीं जानता है | सामने वाला चुप और संयमित रह , उस गलफहमी में चार चाँद लगा देता है | पर तीसरा व्यक्ति [ जैसे कवि ] जिसका उससे किसी भी प्रकार का देनलेन का नाता नहीं , ग्लानिभाव से भर उठता है कि वह उस व्यक्ति से मिला ही क्यों ? पर तुलसी बाबा ने यही कहा है --
    | तुलसी यासंसार में, भांति भांति के लोग।
    सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग॥
    अपनी तरह की आप , एक अलग अंदाज की विचारपरक रचना | सादर शुभकामनाएं इस विद्वतापूर्ण प्रस्तुति के लिए |

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  7. 'रिश्तों की बदबू' याद आ गयी: -
    "खामोश!
    ये अभिजात्य वर्ग की 'स्टार' शैली है।
    संबंधो की अबूझ पहेली है।
    पिटर,दास, खन्ना,इन्द्राणी !
    और
    न जाने क्या-क्या
    गुफ्त-गु चल रही है।
    शीना की लाश से ,
    रिश्तों की बदबू निकल रही है।"

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  8. ओह!!!बड़ी विडम्बना है जब जानकर भी लोग ऐसे अनैतिक लोगों से घृणा न करके मेलजोल बनाए रखते हैं तो ऐसे लोगों का हौसला बुलन्द हो जाता है और हर कोई यही सोचता है कि सिर्फ मेरे करने से क्या फर्क पड़ता है....पर मेरा मानना है कि एक और एक ग्यारह भी बन सकते हैं अनजाने में तो कोई नहीं जब जान लिया तब ही सही आखिर समाजिक दण्ड भी कोई दण्ड होता है
    कम से कम इसे तो ये अपने पैसों से न खरीद पायें....।
    एक कटु सत्य बताती बहुत ही विचारोत्तेजक रचना।

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  9. दुनियां ऐसे ही है
    शानदार विश्लेषण

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  10. एक चेहरे पर कितने चेहरे हैं इंसान के ,
    बहुत ही संवेदनशील अंत है रचना का एक प्रश्न स्वयं के आचरण पर, चाहे अन्जाने ही हुवा हो ।
    चिंतन देती रचना।

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  11. एक इंसान कितने मुखौटो के आवरण में छिपा है हमारे लिए कल्पनातीत है। लाजवाब रचना ।

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