युद्ध शब्द ही अमंगलकारी विभीषिका का संकेत है। युद्ध की कल्पना मात्र मानवता की दुर्दशा चित्रित करती है। महामारी से आक्रांत दुनिया युद्ध से कम त्रासदी नहीं झेल रही। ----- समसामयिक परिस्थितियों पर आपकी चिंतनशील रचनाएँ विचारणीय एवं सराहनीय है। सार्थक सृजन करते रहिये। सादर।
आज जिस अदृश्य शत्रु से युद्ध चल रहा है काश यह रणभूमि में होने वाले भीषण युद्ध के दुष्परिणाम से मनुष्य को पुनः अवगत करा कर समस्त देशों की युद्ध की लालसा को ही भंग कर दे और अमन की महत्ता सिखला दे। बहुत खूब लिखा आपने आदरणीय सर। यह रचना आज वर्तमान की आवश्यकता है। आपको और आपकी कलम को मेरा सादर प्रणाम 🙏
युद्ध कौन चाहता है सिवाय सत्त्लोलुप और विकृत मानसिकता वाले आततायी लोगों के | कोरोना काल ने मौत के सौदागरों को भी ,अपने भीषण म्रत्युदंश के भय से पस्त कर दिया है | मानवता को सताने के उनके षड्यंत्र रचे के रचे रह गये |सचमुच इतिहास ही इसका विश्लेषण करेगा | विचारणीय मार्मिक विषयात्मक रचना के लिए साधुवाद और शुभकामनाएं आदरणीय रवीन्द्र जी |
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युद्ध शब्द ही अमंगलकारी विभीषिका का संकेत है।
जवाब देंहटाएंयुद्ध की कल्पना मात्र मानवता की दुर्दशा चित्रित करती है। महामारी से आक्रांत दुनिया युद्ध से कम त्रासदी नहीं झेल रही।
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समसामयिक परिस्थितियों पर आपकी चिंतनशील रचनाएँ
विचारणीय एवं सराहनीय है।
सार्थक सृजन करते रहिये।
सादर।
आज जिस अदृश्य शत्रु से युद्ध चल रहा है काश यह रणभूमि में होने वाले भीषण युद्ध के दुष्परिणाम से मनुष्य को पुनः अवगत करा कर समस्त देशों की युद्ध की लालसा को ही भंग कर दे और अमन की महत्ता सिखला दे।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा आपने आदरणीय सर। यह रचना आज वर्तमान की आवश्यकता है। आपको और आपकी कलम को मेरा सादर प्रणाम 🙏
युद्ध कौन चाहता है सिवाय सत्त्लोलुप और विकृत मानसिकता वाले आततायी लोगों के | कोरोना काल ने मौत के सौदागरों को भी ,अपने भीषण म्रत्युदंश के भय से पस्त कर दिया है | मानवता को सताने के उनके षड्यंत्र रचे के रचे रह गये |सचमुच इतिहास ही इसका विश्लेषण करेगा |
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