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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

लॉकडाउन

उस ख़ामोश स्थितिप्रज्ञ 

पहाड़ी तक 

जाना चाहता हूँ 

उस चरवाहे की 

बाँसुरी की 

मद्धिम मधुर धुन  

सुनना चाहता हूँ 

भेड़-बकरियों के झुंड की 

हलचल देखना चाहता हूँ 

चरवाहे के कुत्ते की निष्ठा 

महसूसना चाहता हूँ

पहाड़ी की ऊँचाई से 

गहरी खाई में 

सूर्य-किरणों को चूमने 

गर्दन लंबी करते विशाल वृक्षों को 

निहारना चाहता हूँ 

सुदूर पहाड़ी से झरते 

श्वेताभ झरने से उठता 

रुपहला धुआँ

ह्रदय-कपाटों में 

उड़ेलना चाहता हूँ...   

क्योंकि 

नियति-चक्र 

अनवरत, अबाध, अविराम अपनी ड्यूटी पर 

मानव-ज़ात विज्ञान की सुझायी सलाह पर 

बस्तियों-बसेरों में क़ैद है  

काश!

लॉकडाउन ख़त्म होने का 

अनुकूल वक़्त हो! 

और मैं 

उस पहाड़ी पर पहुँचकर 

प्रकृति की गोद में 

सर रखकर 

सुकून की गहरी नींद सो जाऊँ

पुनः तर-ओ-ताज़ा होकर 

अपने कर्तव्य पर डट जाऊँ। 

© रवीन्द्र सिंह यादव 

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर

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  2. रविंद्र जी बता नहीं सकती हूं कितना सुकून महसूस किया आपकी इस कविता को पढ़कर मानो यूँँ महसूस हुआ तपती हुई रेत में चलते चलते समुद्र के ठंडे पानी ने मेरे पैरों को छू लिया.... आजकल कितनी सारी कविताएं पढ़ने को मिल रही है सब की कविताओं में एक ही तरह की बात होती है वही बोरियत लेकिन आपकी इस कविता ने बहुत ही शानदार प्रभाव स्थापित किया ...लॉक डाउन की स्थिती ने हमें घरों में कैद कर लिया लेकिन कवि के मन को कैद नहीं कर सकती कवि बावरा अपनी कलम को कल्पनाओं की दुनिया में सैर करा कर वापस लेकर आ सकता है उतनी ताकत है आपकी इस कविता में, आपने अब तक जितनी भी कविताएं लिखी है बिल्कुल अलग ही व्यक्तित्व उभर कर आया है एक बहुत ही ज्यादा परिपक्वता नजर आ रही है मुझे बेहद बेहद बेहद पसंद आई आपकी यह कविता..!

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  3. वाह!रविन्द्र जी ,बहुत सुंदर । जी ,जल्दी ही वो दिन आएगा 😊

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  4. वाह!
    आदरणीय सर बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति। लाजवाब सृजन। आपकी इन पंक्तियों ने तो सबके मन की बात कहकर सभी का मन मोह लिया। सादर प्रणाम 🙏

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१२-०४-२०२०) को शब्द-सृजन-१६'सैनिक' (चर्चा अंक-३६६९) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  6. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति सर ,काश ये जल्द ही सच हो जाए ,सादर नमन आपको

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  7. एक कवि चाहे वैज्ञानिक हो खोजी हो अन्वेषण हो वो एक कवि के भावों को नहीं दबा सकता ।
    कविता में कवि के व्यथित मन को प्रकृति में ही सुकून मिलता है अंततोगत्वा।
    सुंदर गहन मनोभाव उभारती शानदार रचना भाई रविन्द्र जी ।

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  8. वाह ! आदरणीय भाई रवीन्द्र जी , अगर कवि में ये अकुलाहट ना हो तो कवि कैसा !लॉक डाउन में भी भी मन बंजारा कहाँ रुक पाता है | कुच्छ और नहीं तो --उम्मीदें तो जगा ही लेता है -- सुदूर वादियों में भ्रमण करने की--- साथ में बांसुरी के मधुर स्वरों को आत्मसात करने की | बहुत ही प्यारी रचना जो एक भावपूर्ण कथा कहती मन को छू जाती है | सादर शुभकामनाएं आपके लिए |

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