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मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

अवसान की अवधारणाएँ

जटिलताएँ जीवन कीं  

सापेक्ष आलोकित हैं 

अस्तित्त्व-वेदना का 
  
पराभवपरायण होना 

अनंत और विस्तृत है

अखिल व्योम में व्याप्त हैं 

अवसान की अवधारणाएँ 

मधु-मालती तो खिल उठी 

दुर्भावनाएँ आशंकाएँ परे रख 

बेरी पर बचा है बस एक बेर

बीतते बूढ़े बसंत का  

डाली झुका स्वाद चख। 

 ©रवीन्द्र सिंह यादव   

6 टिप्‍पणियां:

  1. उस बेर का खट्टा-मीठा स्वाद जीभ की तृषा नहीं आत्मा की कलुषिता मिटा दे यही प्रार्थना है प्रकृति से।
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    समसामयिक परिदृश्य से
    व्याकुलता कविमन की
    सकारात्मकता से भरी सुंदर अभिव्यक्ति।
    लिखते रहिये।
    सादर।

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  2. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार( 31-07-2020) को "जन-जन का अनुबन्ध" (चर्चा अंक-3779) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

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  3. बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर और सराहनीय बेहतरीन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. अखिल व्योम में व्याप्त हैं
    अवसान की अवधारणाएँ
    वाह!!!
    बीतते बूढे बसंत पर बचे एक बेर का स्वाद जाने किसकी नसीब में होगा....वही तो झुकायेगा डाली
    बाकियों का क्या होगा....
    बहुत सुन्दर सार्थक सृजन।

    जवाब देंहटाएं

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