जटिलताएँ जीवन कीं
सापेक्ष आलोकित हैं
अस्तित्त्व-वेदना का
पराभवपरायण होना
अनंत और विस्तृत है
अखिल व्योम में व्याप्त हैं
अवसान की अवधारणाएँ
मधु-मालती तो खिल उठी
दुर्भावनाएँ आशंकाएँ परे रख
बेरी पर बचा है बस एक बेर
बीतते बूढ़े बसंत का
डाली झुका स्वाद चख।
©रवीन्द्र सिंह यादव
सापेक्ष आलोकित हैं
अस्तित्त्व-वेदना का
पराभवपरायण होना
अनंत और विस्तृत है
अखिल व्योम में व्याप्त हैं
अवसान की अवधारणाएँ
मधु-मालती तो खिल उठी
दुर्भावनाएँ आशंकाएँ परे रख
बेरी पर बचा है बस एक बेर
बीतते बूढ़े बसंत का
डाली झुका स्वाद चख।
©रवीन्द्र सिंह यादव
उस बेर का खट्टा-मीठा स्वाद जीभ की तृषा नहीं आत्मा की कलुषिता मिटा दे यही प्रार्थना है प्रकृति से।
जवाब देंहटाएं-----
समसामयिक परिदृश्य से
व्याकुलता कविमन की
सकारात्मकता से भरी सुंदर अभिव्यक्ति।
लिखते रहिये।
सादर।
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार( 31-07-2020) को "जन-जन का अनुबन्ध" (चर्चा अंक-3779) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर और सराहनीय बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअखिल व्योम में व्याप्त हैं
जवाब देंहटाएंअवसान की अवधारणाएँ
वाह!!!
बीतते बूढे बसंत पर बचे एक बेर का स्वाद जाने किसकी नसीब में होगा....वही तो झुकायेगा डाली
बाकियों का क्या होगा....
बहुत सुन्दर सार्थक सृजन।