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गुरुवार, 28 मई 2020

कल-आज-कल / लघुकथा


         वह एक शांत सुबह थी जेठ मास की जब बरगद की छाँव में
स्फटिक-शिला पर बैठा वह सांस्कृतिक अभ्युदय की कथा सुना रहा था।
नए संसार के साकार होने का सपना अपने सफ़र पर था जो नए-नए
सोपान चढ़ता जा रहा था। मद्धिम होती जा रही थी बीती यामिनी के तमस
की तासीर और शांत क्षितिज की परतें वेधता हुआ उदीयमान सूरज उजाले
की कविता लिख रहा था। ताज़ा हवा के चंचल झोंके धवलकेशी सर पर
लहरें निर्मित कर रहे थे। 

       उसने एक गंभीर मननशील दृश्य उपस्थित किया-
"अतीत की डबडबाई आँखों में अव्यक्त वेदना समाई है जो शिकायती
लहज़े में शायद कहती है-
हे वर्तमान!
मैंने तो नहीं सौंपा था तुम्हें ऐसा हो जाने का सपना। मानवता की कैसी
मनवांछित परिभाषा आत्मसात कर ली है तुमने?
कला-संगीत-साहित्य के प्रति कैसी निहायत ही उथली समझ विकसित कर रहे हो। मैंने तो स्वयं को मिटाकर तुम्हें हर हाल में बेहतर होने के लिए गढ़ा है।
कल भविष्य जब तुम्हें नकारेगा, दुत्कारेगा; तुम्हारी मंशा पर उँगली
उठाएगा और तुम्हारे किए-धरे को ख़ारिज करेगा तब तुम क्या करोगे?"

      अनसुना करते हुए 
वर्तमान बेशर्मी से मुँह फेरकर अपने अस्तित्त्व के 
झंझावात में उलझ जाता है। सूर्य अब चढ़ आया था पीपल की फुनगी तक
श्रोता / अनुयायी-वृंद उठा भूख मिटाने के संघर्षमय प्रबंध में जुट गया।

©
रवीन्द्र सिंह यादव     


शब्दार्थ 

जेठ मास = ज्येष्ठ महीना 

स्फटिक-शिला = स्फटिक (QUARTZ / एक प्रकार का सफ़ेद चमकीला सुंदर पत्थर / खनिज ) पत्थर का बड़ा टुकड़ा या हिस्सा,पाषाण

 अभ्युदय = और बेहतर होने की स्थिति, उन्नति, वृद्धि, तरक़्क़ी                                          / AGGRANDIZEMENT, ELEVATION 

मद्धिम = अपेक्षाकृत कम, मंदा, मंद, धुँधला, निष्प्रभ, हल्का / DIMMING 

यामिनी = रात,रात्रि,रजनी,रैन,निशा,तमा,तमस्विनी,विभावरी / NIGHT 

धवलकेशी सर = जिस सर( मस्तक / HEAD) पर सफ़ेद बाल (WHITE                                   HAIRS) हों, जैसे- धवलकेशी न्यायाधीश,                                                   साहित्यकार,महात्मा, बुज़ुर्ग़ 

13 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ मई २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. आदरणीय रवींद्र जी,प्रणाम,आपकी लघुकथा पढ़ी। लघुकथा की दुनिया में आपका यह अनूठा प्रयोग निसंदेह ही क्रांति का बिगुल है। जहाँ एक तरफ पद और प्रशंसा की चाह में लेखक बने फिर रहे कलम तोडू लेखक ज़बर्दस्ती कथानक पैदा करने में असल मुद्दों और भय के कारण इधर-उधर छितराए दिल दहला देने वाले विषयों से कन्नी काटते नज़र आ रहे हैं वहीं आप जैसा लेखक लघुकथाओं के माध्यम से इस यथार्थ को प्रकाश में लाने की निरंतर कोशिश कर रहा है। मजे की बात यह है कि ये कलमतोड़ू लेखक समाज में पाखंडी गतिविधियाँ को अपनी काम चलाऊ लेखनी से विस्तार देने में निरंतर गतिमान है जिससे इनकी लघुकथाएं पूर्णतः मिथ्या-सी  और बनावटी प्रतीत होती हैं। ये पाखंडी वर्ग कभी देवी-देवताओं तो कभी खोखली मान्यताओं को हवा देता फिर रहा है परन्तु इसे यह ज्ञात नहीं कि साहित्य में किसी विशेष धर्म और पाखंड के लिए कदापि स्थान नहीं है और न ही भविष्य इन्हें स्मरण करेगा। ये किसी भी देवी-देवताओं की फोटो लगाकर उसे साहित्य बता लें परंतु सत्ता परिवर्तन के बाद इनकी हवा निकल जाएगी। इन्हें मैं साफ शब्दों में बता देना चाहता हूँ कि साहित्य केवल  तर्कऔर दर्शन पर गतिमान है न कि पाखंडी बातों पर। क्योंकि आज का साहित्य पूर्णतः सत्ता के आदेश पर लिखे जा रहे हैं और कहीं न कहीं इस प्रकार के ढोंगी साहित्यकार इन सत्ताधीशों से अच्छी-खासी रकम वसूल कर रहे हैं या इसके एवज में उच्च पद ग्रहण कर रहे हैं। न ही इन खोखले साहित्यकारों के पास प्रामाणिक इतिहास का ज्ञान है और न ही कोई तथ्य! ये कहते हैं रामायण काल में हवाई जहाज़ की खोज हो चुकी थी और सिंधु घाटी सभ्यता ( लोथल )जो कि समुद्र में डूब गई उसे ये द्वारिकापुरी बताते हैं। दो रुपये वाले आई टी सेल के फेस बुकिये ट्रोलर इन्हें इतिहास का वास्तविक सत्य नित्य ही उपलब्ध कराते हैं जिसे ये आँख- कान- नाक बंद करके फॉरवर्ड करते हैं। मुझे भी कल ही पता चला कि पिछले जन्म में मैं चंद्र गुप्त मौर्य था! अंत में इस यथार्थपरक लघुकथा को मेरा साधुवाद! सादर            

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  2. वाह!क्या बात है । सही में ऐसे वर्तमान का स्वप्न तो कोई नहीं देखता अनुज रविन्द्र जी ।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (३१-०५-२०२०) को शब्द-सृजन-२३ 'मानवता,इंसानीयत' (चर्चा अंक-३७१८) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  4. . वाकई में रविंद्र जी आपकी कलम की जादूगरी की दाद देनी पड़ेगी बेहद खूबसूरत शब्दों का प्रयोग किया है आपने जो मेरे लिए तो बिल्कुल ही नए है
    और लघु कथा में निहित संदेश भी बिल्कुल नए तरीके से आपने उजागर किया है बेहद उत्तम प्रयास किया है आपने अपनी इस लघु कथा के द्वारा मुझे सबसे अच्छी बात लगी कि इसमें जो सत आपने प्रयोग किए हैं उन सब को मुझे समझने में काफी टाइम लगा और यह मेरे लिए बहुत ही नई चीज़ सीखने की तरह है
    ..💐👌

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  5. अद्भुत प्रयोगात्मक शैली में गहन विचार मंथन देती शानदार लघुकथा।
    बहुत सुंदर,अभिनव।

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  6. मैंने तो स्वयं को मिटाकर तुम्हें हर हाल में बेहतर होने के लिए गढ़ा है। कल भविष्य जब तुम्हें नकारेगा, दुत्कारेगा; तुम्हारी मंशा पर उँगली उठाएगा और तुम्हारे किए-धरे को ख़ारिज करेगा तब तुम क्या करोगे?"
    तब तक वर्तमान सत्ताधारी हो चुका होगा वह सबको अनसुना कर सिर्फ अपनी कुर्सी पर ध्यान देगा....
    बहुत ही सुन्दर... विचारोत्तेजक लाजवाब लघुकथा
    अद्भुत बिम्ब एवं शब्दसंयोजन।

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  7. बहुत सुंदर सृजन, लघुकथा में सार्थक व्यंग्य भी है जिसे समझकर चेतने का समय आ चुका है। अभिव्यक्ति के साधन सर्वसुलभ क्या हो गए लोगों की वाचा फूट पड़ी...

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  8. बहुत गहरी बात, अतीत ने कभी सोचा नहीं था कि वर्तमान ऐसा होगा.

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  9. बेहतरीन रचना आदरणीय

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