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मंगलवार, 14 जुलाई 2020

अनाड़ी नाविक

एक अनाड़ी नाविक

उतरा नदी में

इस यक़ीन के साथ

कि पार लग जाएगा

माहौल से बेपरवाह

मौसम के पैटर्न से अनभिज्ञ

मझधार तक पहुँचा

क्रुद्ध हवा ने

अचानक आकर

विश्वासघात किया

छूने लगी नीर नदी का

मनमानी ताक़त से

उठती-गिरती

तीव्र लहरों में

नाव का बैलेंस

डगमगा गया

अकेली नाव

दूर बहती दिखाई दी!

©रवीन्द्र सिंह यादव 

5 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार
    (17-07-2020) को
    "सावन आने पर धरा, करती है श्रृंगार" (चर्चा अंक-3765)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

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  2. आदरणीय सर,
    सादर प्रणाम।
    कुछ दिनों से रोज़ पांच लिंकों के आनंद पर आ रही हूँ।
    आज आपकी प्रस्तुति पढ़ी। बहुत ही सुंदर और प्रेरणादायक प्रस्तुति थी। बहुत कुछ सीखने को मिला।
    वहीं ओर आपका नाम मिला और मैं आपमे ब्लॉग र आ गई। आपकी यह कविता हम सब को बहुत आवश्यक सन्देश देती है कि बिना जानकारी कोई भी कार्य करना घातक सिद्ध होता है। विशेष कर हम युवाओं के लिए ध्यान में रखने की बात है।
    सर आपसे एक अनुरोध है। मैं अपनो स्वरचित कविताएं अपबे ब्लॉग काव्यतरंगिनी पर डालती हूँ। कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आयें। लोंक कॉपी नहीं कर पा रही पर यदि आप नेरे नाम पर जायें तो आप मेरे प्रोफाइल पर पहुंच जाएंगे। वहाँ नेरे ब्लॉग के नाम पर क्लॉक करियेगा, वो आपको मेरव ब्लॉग तक ले जाएगा। आपके आशीष व प्रोत्साहन के लिए आभारी रहूँगी।
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. गहन विचार वर्तमान समजिक स्थिति को व्यक्त करती कविता

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुंदर एवं सराहनीय सृजन.समय परिवेश का यथार्थ चित्रण नाविक को हवाओं का ज्ञान समय रहते होता तब शायद परिस्थिति कुछ और होती.क्षोभ दर्शाती हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति आदरणीय सर .

    जवाब देंहटाएं

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