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सोमवार, 24 अगस्त 2020

किताब-ए-वक़्त

किताब-ए-वक़्त में

क्या-क्या

और लिखा जाने वाला है

किसी को ख़बर नहीं

कुछ नक़्शे बदल जाएँगे

अगर बचे

झुलसने से

चिड़ियों के घोंसले

रहेंगे वहीं के वहीं

ढोएगी मानवता

महत्त्वाकाँक्षी मस्तिष्कों की

कुंठित अराजकता

मनुष्य का

भौतिकता में

जकड़ा जाना

वक़्त का सच है

बुज़ुर्गों की उपेक्षा

मासूमों पर

क्रूरतम अत्याचार

संस्कारविहीन स्वेच्छाचारिता

समाज का सच है।

 ©रवीन्द्र सिंह यादव

15 टिप्‍पणियां:

  1. कटु लेकिन सत्य लिखा है ...
    समय क्या क्या बदलाव लाएगा ये किसी को नहीं पता ...
    गहरा लेखन ...

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  2. आज के समाज की कड़वी सच्चाई । बेहतरीन अभिव्यक्ति । हार्दिक बधाई ।

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  3. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 28-08-2020) को "बाँच ली मैंने व्यथा की बिन लिखी पाती नयन में !"
    (चर्चा अंक-3807)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

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  4. बहुत ही सुंदर सृजन सर।
    सादर प्रणाम

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  5. बुज़ुर्गों की उपेक्षा

    मासूमों पर

    क्रूरतम अत्याचार

    संस्कारविहीन स्वेच्छाचारिता

    समाज का सच है।
    बहुत सुंदर और सटीक रचना।

    जवाब देंहटाएं
  6. मनुष्य का

    भौतिकता में

    जकड़ा जाना

    वक़्त का सच है

    बुज़ुर्गों की उपेक्षा
    ... बहुत खूबसूरत रचना रवींंद्रजी

    जवाब देंहटाएं
  7. संस्कारविहीन स्वेच्छाचारिता ही आज के समाज का घिनौना प्रतिबिंब बन गया है- सच कहा है आपने!... सुन्दर कृतित्व!

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  8. बुज़ुर्गों की उपेक्षा/मासूमों पर /क्रूरतम अत्याचार /संस्कारविहीन स्वेच्छाचारिता /समाज का सच है।///
    जी , समाज की मर्मान्तक सच्चाई , जिससे कोई मुंह नहीं मोड़ सकता | सार्थक प्रयोगवादी सृजन | सस्नेह शुभकामनाएं और बधाई |

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  9. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 04 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  10. वाह!अनुज रविन्द्र जी ,बेहतरीन सृजन ।

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