पसीने से लथपथ
बूढ़ा लकड़हारा
पेड़ काट रहा हैशजर की शाख़ पर
तार-तार होता
अपना नशेमन
अपलक छलछलाई आँखों से
निहार रही है
एक गौरैया
अंतिम तिनका
छिन्न-भिन्न होकर गिरने तक
किसी चमत्कार की प्रतीक्षा में
विकट चहचहाती रही
न संगी-साथी आए
न लकड़हारे को थकन सताए
चरचराती धवनि के साथ
ख़ामोश जंगल में
अनेक पीढ़ियों का साक्षी
कर्णप्रिय कलरव का आकांक्षी
एक विशालकाय पेड़
धम्म ध्वनि के साथ धराशायी हुआ
और बेबस चिड़िया का
नए ठिकाने की ओर उड़ जाना हुआ।
© रवीन्द्र सिंह यादव