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रविवार, 22 नवंबर 2020

अपना-अपना आसमान



पसीने से लथपथ 

बूढ़ा लकड़हारा 

पेड़ काट रहा है

शजर की शाख़ पर 

तार-तार होता 

अपना नशेमन 

अपलक छलछलाई आँखों से 

निहार रही है

एक गौरैया

अंतिम तिनका 

छिन्न-भिन्न होकर गिरने तक 

किसी चमत्कार की प्रतीक्षा में 

विकट चहचहाती रही 

न संगी-साथी आए 

न लकड़हारे को थकन सताए 

चरचराती धवनि के साथ 

ख़ामोश जंगल में 

अनेक पीढ़ियों का साक्षी

कर्णप्रिय कलरव का आकांक्षी

एक विशालकाय पेड़ 

धम्म ध्वनि के साथ धराशायी हुआ 

और बेबस चिड़िया का 

नए ठिकाने की ओर उड़ जाना हुआ। 

© रवीन्द्र सिंह यादव   

रविवार, 8 नवंबर 2020

चुल्लूभर पानी

 तुम्हारे लिए 

कोई 

चुल्लूभर पानी 

लिए खड़ा है 

शर्म हो 

तो डूब मरो... 

नहीं तो 

अपनी गिरेबाँ में 

बार-बार झाँको 

ज़रा सोचो!

तुम्हारी करतूत 

इतिहास का 

कौनसा अध्याय 

लिख चुकी है?

पीढ़ियाँ 

जवाब देते-देते ऊब जाएँगीं।

© रवीन्द्र सिंह यादव