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रविवार, 20 जून 2021

पिता की स्मृति

 

6 फरवरी 2008 से 

अब तक 

एक अधूरापन 

मेरे भीतर 

घर कर गया है 

करते होंगे लोग 

बरसी पर स्मरण पिता को

मेरी स्मृति से 

वह पल जाता ही नहीं 

जब मुखाग्नि दी थी 

बड़े भैया ने चिता को

एक काया 

अपना सफ़र 

मुकम्मल कर रही थी   

देखते-देखते 

पिता जी की पार्थिव-देह 

पंचतत्त्व में विलीन हो गई थी

उन्हें लेकर गए थे 

सजी हुई उदास अर्थी पर  

शमशान-घाट

लौट आए थे 

उनकी स्मृतियों के साथ

बेबस बस ख़ाली हाथ

संस्कारों की फ़सल 

मूल्यों की अक्षय पूँजी

कुल के दायित्त्व

विश्वास का घनत्त्व  

इच्छाओं की गठरी 

बोध-कथाओं की लायब्रेरी

जीने की कलाओं का विस्तार 

देकर छोड़ गए हो संसार!  

आपकी स्मृति 

सघन परछाइयों में 

शून्य लिख जाती है

जिसके अर्थ तलाशता हुआ 

अपने पिता होने के 

अर्थ तलाशता हूँ

तस्वीर हो जाने के ख़याल में  

ख़ुद को खँगालता हूँ

नब्बे वर्ष की आयु 

निरोग जीवन जीकर

आपका महाप्रस्थान 

आपका साथी बूढ़ा नीम 

है अब मेरा मित्र महान। 

©रवीन्द्र सिंह यादव


मंगलवार, 8 जून 2021

करियर

          आज महक अपनी कहानी सोशल मीडिया पर साझा करते हुए बीते दिनों की कसक स्मरण करती है। ख़यालों में डूब जाती है और आक्रोशित मन में उठते अतीत और वर्तमान के प्रश्नों के मकड़जाल में उलझते हुए मुट्ठियाँ भींच लेती है।  

          महक टीवी एंकर रही थी एक प्रतिष्ठित मीडिया समूह के चैनल में। उसके कार्यक्रम के दौरान विचारोत्तेजक बहस में अपना पक्ष कमज़ोर होने पर सत्ताधारी पार्टी का नेता अहंकार में डूबकर महक पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए उसे उकसा रहा था। महक ने सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ता को शो छोड़कर चले जाने को कहा था। अगले दिन चैनल सरकारी कोप का भाजन बना था। 

         कुछ महीनों बाद महक को एक नामी विदेशी विश्वविद्यालय में अध्यापन हेतु प्रोफ़ेसर पद का प्रस्ताव आया था। महक उस अप्रत्याशित प्रस्ताव को पाकर आल्हाद से भर गई थी। सोच रही थी पिछले दिनों उसके कार्यक्रम के वायरल हुए वीडियो का असर हुआ है शायद...!

         महक नए अंतरराष्ट्रीय संस्थान में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने हेतु उतावली हो उठी थी। कार्यरत चैनल से स्वीकार हुए इस्तीफ़े के साथ महक ने सभी माँगे गए दस्तावेज़ संबंधित विदेशी संस्थान को प्रेषित कर दिए थे पूरी गोपनीयता बरतते हुए। चैनल से दिए महक के इस्तीफ़े से उसके निकट संबंधी और शुभचिंतक हैरान थे क्योंकि उसने अपनी योजना में किसी को शामिल नहीं किया था,नया प्रस्ताव देनेवाले संस्थान ने ऐसी शर्त भी रखी थी। 

        कई महीनों इंतज़ार के बाद महक ने उस देश में रहनेवाले मित्र से संस्थान में जाकर जानकारी लेने के लिए गुहार लगाई थी।  तब मित्र ने पत्राचार का विस्तृत विवरण उस विदेशी संस्थान में जाकर प्रस्तुत किया तो पाया कि यह सब उसकी नौकरी खाने के लिए फ़ेक आईडी से संपन्न किया गया सायबर अपराध के षड्यंत्र का हिस्सा था। महक को जब यह सब पता चला तो उसे काटो तो ख़ून नहीं...

©रवीन्द्र सिंह यादव


मंगलवार, 1 जून 2021

बहुत दुःख दिए तूने ऐ करोना

लॉक डाउन 

फिर भी व्यस्त सड़कें

शहर से लेकर गाँव तक 

कुछ साहसी-मजबूर 

दौड़ रहे हैं 

लिए दवाएँ-ऑक्सीजन 

ताकि सांसें टूट न सकें

करोना से जूझते 

वैज्ञानिक 

डॉक्टर 

सहायक स्टाफ़ 

सफ़ाईकर्मी

वाहन-चालक

सुरक्षाकर्मी

ज़मीनी-पत्रकार  

स्वयंसेवी आदि 

देखते जब   

मृत देहों का अंबार

सुनते जब  

संबंधियों-मित्रों शुभचिंतकों की 

चीख़ें और सिसकियाँ

छितराई परेशानी की लकीरें 

असहज पीपीई-किट फ़ेस-शील्ड से ढके 

बेचैन चेहरों पर 

रखते मन-मस्तिष्क पर क़ाबू  

रोककर अपने दिल का रोना 

जुट जाते दुगनी ऊर्जा से 

बचाने सांसों की टूटती डोर

थम रही है 

करोना की दूसरी लहर 

देखेंगे हम राहत का भोर 

किसी को भोगना है वैधव्य 

कोई हुआ अनाथ 

छूटा किसी के 

माता-पिता का साथ

बिछड़ गई किसी की संगिनी 

किसी को छोड़ गई भगिनी 

किसी ने प्यारी बेटी खोई

बेटे के वियोग में 

कोई आँख फूट-फूटकर रोई 

एक वायरस ने 

दे डाली दुनिया को चुनौती

शोध जारी है 

मुकम्मल इलाज के लिए 

काश!वैक्सीन की हालत 

एक अनार सौ बीमार-सी न होती

आशाओं के ग़ुंचे 

ज़रूर खिलखिलाएँगे

वक़्त के दिए ज़ख़्म 

धीरे-धीरे भर जाएँगे।  

© रवीन्द्र सिंह यादव