6 फरवरी 2008 से
अब तक
एक अधूरापन
मेरे भीतर
घर कर गया है
करते होंगे लोग
बरसी पर स्मरण पिता को
मेरी स्मृति से
वह पल जाता ही नहीं
जब मुखाग्नि दी थी
बड़े भैया ने चिता को
एक काया
अपना सफ़र
मुकम्मल कर रही थी
देखते-देखते
पिता जी की पार्थिव-देह
पंचतत्त्व में विलीन हो गई थी
उन्हें लेकर गए थे
सजी हुई उदास अर्थी पर
शमशान-घाट
लौट आए थे
उनकी स्मृतियों के साथ
बेबस बस ख़ाली हाथ
संस्कारों की फ़सल
मूल्यों की अक्षय पूँजी
कुल के दायित्त्व
विश्वास का घनत्त्व
इच्छाओं की गठरी
बोध-कथाओं की लायब्रेरी
जीने की कलाओं का विस्तार
देकर छोड़ गए हो संसार!
आपकी स्मृति
सघन परछाइयों में
शून्य लिख जाती है
जिसके अर्थ तलाशता हुआ
अपने पिता होने के
अर्थ तलाशता हूँ
तस्वीर हो जाने के ख़याल में
ख़ुद को खँगालता हूँ
नब्बे वर्ष की आयु
निरोग जीवन जीकर
आपका महाप्रस्थान
आपका साथी बूढ़ा नीम
है अब मेरा मित्र महान।
©रवीन्द्र सिंह यादव