पढ़ा होगा आपने कभी
नीड़ का निर्माण
अब पढ़ते रहिए
भीड़ का निर्माण
मनोवैज्ञानिक
समाजशास्त्री
करते रहे शोध
भीड़ के चरित्र पर
राजनीति ने लाद दी
अपनी मनोकामनाएँ भीड़ पर
अंतर में छाए अँधेरों में
उभरते हैं बिंब लिए उन्मादी उमंगें
साझा सहमति से उभरती हैं
विनाश की तीखी तीव्र तरंगें
या किसी और के द्वारा तय
लक्ष्य की ओर
मुड़ जाती है भीड़...
क्योंकि
भीड़ का कोई धर्म नहीं होता
बुध्दि, विवेक, मर्म नहीं होता।
©रवीन्द्र सिंह यादव