चित्र: महेन्द्र सिंह
जिसे पूजा
तब वह पत्थर था न था
पता न था
अगाध श्रद्धा ने
गाढ़ दिए
सफ़र में मील के पत्थर
दीवानगी की हद तक पूजा उसे
एक दिन फ़ैसले की घड़ी आई
जब उसके पुजारी ने
अत्याचार की हदें पार कर दीं
माँगा इंसाफ़
तो देवता
पत्थर होकर
मूक हो गया
इंसाफ़ का सवाल
खाक़ हो गया
याचक ने ख़ुद को
पत्थरों से घिरा पाया।
© रवीन्द्र सिंह यादव