तेरी हर शय
तेरी हर शर्त
है क़बूल मुझे ,
ज़िन्दगी तू
अब सिखा दे
जीने का उसूल मुझे।
कोई गुज़रा
कोई मुक़रा
कोई सिमटा
अपने - अपने दायरों में ,
मैं भी एक गवाह हूँ सफ़र का
यों ही न भूल मुझे।
ज़िन्दगी तू
अब सिखा दे
जीने का उसूल मुझे।
दिल में
उतर जाता है कोई
तितली सी ज़हानत लिए,
पंख जाते हैं उलझ
काँटों में
कहता है कोई
बेमुरब्बत फूल मुझे।
ज़िन्दगी तू
अब सिखा दे
जीने का उसूल मुझे।
मंज़िल की ओर
कारवाँ बढ़ने का
सिलसिला चलता रहा ,
हासिल हो न हो
मक़सद
इंतज़ार का सिला
करना है वसूल मुझे।
ज़िन्दगी तू
अब सिखा दे
जीने का उसूल मुझे।
ले डूबेगा एक दिन
क़तरे को
दरिया बनने का शौक़ (?)
दामन से लिपटकर
एक दिन सुनाएगा
दास्तां अपनी शूल मुझे।
ज़िन्दगी तू
अब सिखा दे
जीने का उसूल मुझे।
वक़्त फिसला है
रेत की तरह
"रवीन्द्र " के हाथों से,
सज्दे में झुक गया हूँ
समझ न
पुल से गुज़रने का महसूल मुझे।
ज़िन्दगी तू
अब सिखा दे
जीने का उसूल मुझे।
@रवीन्द्र सिंह यादव