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गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

दास्तां



तेरी  हर शय

तेरी  हर  शर्त

है   क़बूल  मुझे ,

ज़िन्दगी  तू

अब  सिखा  दे

जीने  का उसूल  मुझे। 




कोई   गुज़रा

कोई  मुक़रा

कोई  सिमटा

अपने - अपने  दायरों में ,

मैं  भी एक गवाह  हूँ  सफ़र  का

यों   ही  न  भूल  मुझे।

ज़िन्दगी  तू

अब  सिखा  दे

जीने  का  उसूल  मुझे।  




दिल  में

उतर  जाता  है  कोई

तितली  सी  ज़हानत    लिए,

पंख  जाते   हैं  उलझ

काँटों  में

कहता  है   कोई

बेमुरब्बत   फूल   मुझे।

ज़िन्दगी  तू

अब  सिखा  दे

जीने  का  उसूल  मुझे।




मंज़िल  की  ओर

कारवाँ  बढ़ने  का

सिलसिला  चलता  रहा ,

हासिल  हो  न  हो

मक़सद

इंतज़ार  का   सिला

करना है वसूल मुझे।

ज़िन्दगी  तू

अब  सिखा  दे

जीने  का  उसूल  मुझे। 






ले    डूबेगा  एक  दिन

क़तरे    को

दरिया   बनने   का शौक़ (?)

दामन  से  लिपटकर

एक   दिन  सुनाएगा

दास्तां अपनी शूल मुझे।

ज़िन्दगी  तू

अब  सिखा  दे

जीने  का  उसूल  मुझे। 




वक़्त  फिसला  है  

रेत     की   तरह 

"रवीन्द्र "  के हाथों  से,

सज्दे  में झुक  गया  हूँ  

समझ   न 

पुल  से  गुज़रने  का महसूल  मुझे। 

ज़िन्दगी  तू

अब  सिखा  दे

जीने  का  उसूल  मुझे।  

@रवीन्द्र  सिंह  यादव


मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

ऐ हवा चल पहुँचा दे मेरी आवाज़ वहाँ


ताजमहल  को  देखते आगरा  क़िले  में क़ैद  मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने शायद  ऐसा  भी  सोचा  होगा...

                   ( मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब अपनी  क्रूरता के लिये  कुख्यात हुआ। बड़े भाई दारा शिकोह सहित अपने तीनों भाइयों ( दो अन्य शाह शुज़ा व मुराद बख़्श ) को मौत के घाट उतारकर वृद्ध पिता  शहंशाह शाहजहाँ को विलासता पर जनता का धन ख़र्चने ( ताजमहल का निर्माण सन् 1632 में प्रारम्भ  हुआ जो अगले 20 वर्षों  में पूरा हुआ ) के आरोप में सन् 1658 में आगरा  के लाल क़िले ( मुग़ल सम्राट अकबर  द्वारा निर्मित, 8 साल निर्माण कार्य चलने के बाद सन् 1573 में बनकर तैयार हुआ ) में क़ैदकर अतिमानव औरंगज़ेब गद्दी पर बैठा। शाहजहाँ द्वारा कराये गये ताजमहल के निर्माण का औरंगज़ेब  ने तीखा विरोध किया था।                  

             हालाँकि मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के बारे में उल्लेख मिलते  हैं कि वह अपने निजी ख़र्च के लिये टोपियाँ सिलने और क़ुरान की नक़ल ( कॉपी ) तैयार करने से हुई कमाई का उपयोग किया करता था।

             आगरा के लाल क़िले से दक्षिण-पूर्व दिशा में ( लगभग 3 किमी दूरी सड़क मार्ग से ) यमुना के किनारे स्थित ताजमहल स्पष्ट दिखायी   देता है। शहंशाह शाहजहाँ ने अपनी मृत्यु ( सन् 1666, आयु 74 वर्ष ) से पूर्व नज़रबंदी के लगभग साढ़े सात साल कैसे तन्हा रहकर गुज़ारे होंगे जिसने 30 साल तक ख़ुद शहंशाह का ताज पहनकर वक़्त की आती-जाती रौनकों को जिया हो...

जारी... 






             

           इंतक़ाल के बाद शाहजहाँ को भी ताजमहल में उनकी प्यारी बेग़म मुमताज़ महल (जो सन् 1631 में ख़ुदा को प्यारी हो गयी थीं ) की क़ब्र  के बग़ल में दफ़नाया गया।

             पेश  है  एक  नज़्म जिसे मैं अपने कल्पनालोक में शाहजहाँ के जज़्बात कहूँगा। त्रुटियों के लिए क़लम के सरताज, कला के क़द्र-दान क्षमा करें, उपयुक्त सुझाव दें...)


ऐ  हवा  चल 

पहुँचा    दे     मेरी    आवाज़  वहाँ,

मुंतज़िर   है   कोई

सुनने  को   मेरे   अल्फ़ाज़  वहाँ।   (1)


दूरियाँ  बन गयीं  

ज़माने   ने  ढाया   है  क़हर ,

मैं   यहाँ   क़ैद   क़िले   में  

दफ़्न   मेरी   मुमताज़   वहाँ ।

मुंतज़िर  है   कोई  

सुनने   को  मेरे  अल्फ़ाज़   वहाँ ।    (2)


गुज़रेंगे   लम्हात -ए -ज़िन्दगी  

अपनी   रफ़्तार   लिये ,

तराने  गुनगुनायेगी  ज़ुबां  

बजेंगे  धड़कनों   के  साज़  वहाँ । 

मुंतज़िर  है   कोई  

सुनने  को  मेरे  अल्फ़ाज़  वहाँ ।    (3)


लोग  ढूँढ़ेंगे  दर्द-ओ-सुकूँ 

मोहब्बत  की  इस  निशानी  में,

देखने   आयेगी   दुनिया  

साहिल -ए -जमुना खड़ा  है  ताज  वहाँ  । 

मुंतज़िर  है   कोई  

सुनने     को     मेरे    अल्फ़ाज़   वहाँ ।   (4)


वो   दिन   भी  आयेगा   

हज़ारों दिल मलाल से भर जायेंगे,

सहेजेगी   हुक़ूमत   मेरे   जज़्बात  

खड़ा        होगा      समाज   वहाँ।    

मुंतज़िर  है   कोई  

सुनने   को   मेरे   अल्फ़ाज़   वहाँ ।    (5)


मेरे  जज़्बे   को  सलाम  आयेंगे  

सराहेंगे   क़द्र-दान    शिल्पकारों  को,

प्यार   नफ़रत   से  बड़ा  होता  है 

कहेगा अफ़साना उनसे जो नहीं आज  वहाँ ।  

मुंतज़िर  है   कोई  

सुनने      को      मेरे    अल्फ़ाज़   वहाँ ।    (6)


लिख  देंगे  एक  प्यारी-सी  नज़्म 

देखकर  पुरकशिश पुरनूर  मंज़र ,

जब    भी   आयेंगे...तड़पेंगे 

क़लम     के     सरताज    वहाँ । 

मुंतज़िर  है   कोई  

सुनने   को   मेरे   अल्फ़ाज़   वहाँ ।   (7)


नज़र  भी  बेवफ़ा  हो  गयी  है  

आलम-ए -तन्हाई   में,

नये   चश्म -ओ -चराग़   होंगे 

ज़माना     करेगा    नाज़   वहाँ ।

मुंतज़िर  है   कोई  

सुनने   को   मेरे   अल्फ़ाज़   वहाँ ।   (8)


 जाने -अनजाने  गुनाहों  की  

सज़ा  मुझे  देना  मेरे  मौला,

तब  इश्क़  की मासूमियत   के 

खुलेंगे   धीरे-धीरे   राज़   वहाँ । 

मुंतज़िर  है   कोई  

सुनने   को   मेरे   अल्फ़ाज़   वहाँ ।    ( 9 ) 


पास   है  जो   ख़ज़ाना -ए -रौनक 

लगा  ले  दिल  से  अपने  ऐ  "रवीन्द्र ",

यादों   के  पहलू   में  आकर  

लोग  परखेंगे  वक़्त  का  मिज़ाज  वहाँ । 

मुंतज़िर  है  कोई  

सुनने     को     मेरे     अल्फ़ाज़   वहाँ । 

ऐ  हवा  चल 

पहुँचा    दे    मेरी    आवाज़   वहाँ,

मुंतज़िर   है   कोई

                         सुनने  को   मेरे   अल्फ़ाज़   वहाँ ।    (10 )                           

 @रवीन्द्र   सिंह  यादव 


इस रचना को सस्वर  सुनने के लिए   YouTube  लिंक -

https://youtu.be/CVM91hSgXXs

ऐ हवा चल पहुँचा दे मेरी आवाज़ वहाँ / Ai Hawa Chal Pahuncha De Meri Aawaaz Vahan. (UPDATED)


शब्दार्थ ( Word -Meanings )

मुंतज़िर = किसी के इंतज़ार में / Waiting for somebody 

अल्फ़ाज़ =  शब्द (लफ़्ज़ का बहुवचन) / Words 

क़हर =विपत्ति , Havoc 

लम्हात - ए -ज़िन्दगी  = ज़िन्दगी  के  लम्हे, क्षण  /                                                                        Moments of  life 

तराने = सुमधुर,सस्वर गीत / A kind of songs,symphony 

ज़ुबां = जीभ  / Tongue 

साज़ = वाद्य-यंत्र  / Apparatus  for  music 

दर्द-ओ-सुकूँ =  पीड़ा  और  चैन  / pain  & relief 

साहिल-ए-जमुना = यमुना नदी का किनारा/  Bank of river Yamuna 

ताज = मुकुट  / Crown 

मलाल  = दुःख / Grief 

हुक़ूमत  = सत्ता, शासन / Governance 

जज़्बात  = भाव  / Emotions 

जज़्बे = जज़्बा, भाव / Emotion 

क़द्र-दान = गुण, कला  आदि  परखनेवाला / One who appreciate 

शिल्पकार = कारीग़र, शिल्पी / Architect,

अफ़साना =क़िस्सा, कहानी / Tale,fiction, legend 

नज़्म = कविता, छंद, गीत, ग़ज़ल / Poetry, verse,

पुरनूर = बेहद  चमकदार / Filled with  light , very  bright 

मंज़र = दृश्य / Scene ,

क़लम = लेखनी / Pen 

क़लम  के  सरताज  = शब्दों  के  जादूगर 

( रचनाकार,शायर,कवि ,लेखक  आदि ) शब्द-शिरोमणि, अग्रगण्य /Leader, chief, Poet, Shayar )

आलम-ए-तन्हाई = अकेलेपन  की हालत, दशा, Stage of loneliness,  

चश्म-ओ-चिराग़ = सबसे  अधिक प्रिय / Loved one, Light of eyes.  

नाज़ = गौरव / Pride 

इश्क़ = प्यार  / LOVE ,

राज़ = रहस्य / Secret ,

मासूमियत = निर्विकार  भाव की  अवस्था  / Innocence,

ख़ज़ाना-ए-रौनक = ज़िन्दगी के ख़ूबसूरत व उजले पलों का भंडार/ TRESSURE OF GOODNESS, GLORIOUS DAYS,

                 Treasure  of good  time 

पहलू = पक्ष, सुखदायी  आश्रय / Side, Shade 

मिज़ाज =  स्वभाव/ Temperament