तपकर तीव्र तपिश में
अपने सम्मोहनयोद्धा की
सभा से लौटे
हारे-थके पंछी
कुछ देर के लिए
छायादार वृक्षों की शरण में
ठहर गए हैं
सभा की सीख
और संदेश का पुनःस्मरण
अब बहस में बदल गया है
स्मृतिलोप और नाकारापन ने
भावी भय के भयावह सपने ने
विवेक कुंद कर डाला है
सहिष्णुता के सत्व को सुखाकर
आक्रामक और हिंसक
हो जाने का उकसावा
अस्तित्व बचाने के लिए दे डाला है
अपनी ही प्रजा का
शिकार करनेवाले सिंह का
मजबूरन महिमामंडन
चींटियों की
सामूहिक एकता का खंडन
समाज को
ग़ुलाम बनाए रखने के
चालाक उपक्रमों पर मंथन
जल के
वैकल्पिक स्रोतों का अन्वेषण
भावनात्मक आदर्शों का
चतुर संप्रेषण
हवा के सदियों पुराने स्वरुप को
बहाल करने की चिंताएँ
अपने-अपने संवैधानिक गणराज्य
स्थापित करने की चर्चाएँ
अपने-अपने नशेमन की ओर
उड़ान भरने से पहले पंछी
वैज्ञानिक शिक्षा पर
विमर्श करने लगे
हालाँकि आज उन्हें
स्वादिष्ट भोजन
सभा-स्थल पर ही
छककर खाने को मिला था
पंछियों की निरर्थक चिंतन-बहस से
जीभर उकताकर
वृक्ष की छाया में बैठी बूढ़ी गाय
रूखी-सूखी घास चरने
घाम से जलते खेत में चली गई।
© रवीन्द्र सिंह यादव