शनिवार, 26 नवंबर 2022

फ़ासला

नवोदित पीढ़ी 

कुछ दशकों बाद 

पहचान लेगी

उसके दिल में 

नफ़रत और हिंसा के बीज 

किसने रोपे थे 

उसके भविष्य के लिए 

देश-विदेश में 

काँटे किसने बोए थे

तब तक

हमारे हृदय की तरह  

गंगा के तट 

और सिकुड़ चुके होंगे...

और प्रौढ़ पीढ़ी के लोग  

शर्म से निरुत्तर 

नज़रें झुकाए खड़े होंगे। 

© रवीन्द्र सिंह यादव 


11 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना बुधवार १४ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना बुधवार १४ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना बुधवार १४ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना बुधवार १४ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना बुधवार १४ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  6. बहुत ख़ूब कहा है तुमने मित्र !
    हमारी 16 रील की फ़िल्मों में खलनायक 15 रील तक मज़े करता है और हीरो को पीटता रहता है और आख़री रील में जा कर मारा जाता है.
    भारतीय लोकतंत्र में तो खलनायक के मरने के तीस साल बाद ही उसका कच्चा-चिटठा खोला जा सकता है और तभी उसकी राजनीतिक मौत भी होती है.
    तो इस कहानी से हमको यह सबक मिलता है कि जब तक है कुर्सी, तब तक लूट-मार में लगे रहो.

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  7. व्वाहहहहहहहहह
    बेहतरीन
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. इतिहास गवाह रह्ता है हर सम सामयिक विकृति का।भावी पीढियाँ आँकेगी आज का इतिहास।सार्थक रचना आदरनीय रवींद्र जी।सादर 🙏

    जवाब देंहटाएं

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