बीते वक़्त की
एक मौज लौट आयी,
आपकी हथेलियों पर रची
हिना फिर खिलखिलायी।
मेरे हाथ पर
अपनी हथेली रखकर
दिखाये थे
हिना के ख़ूबसूरत रंग,
बज उठा था
ह्रदय में
अरमानों का जलतरंग।
छायी दिल-ओ-दिमाग़ पर
कुछ इस तरह
भीनी-भीनी महक-ए-हिना,
सारे तकल्लुफ़ परे रख
ज़ेहन ने
तेज़ धड़कनों को
बार-बार गिना।
अदृश्य हुआ
रेखाओं का
ताना-बाना बुनता
क़ुदरत का जाल,
हथेली पर
बिखेर दिया
हिना ने अपना
रंगभरा इंद्रजाल।
शोख़ निगाह
दूर-दूर तक गयी,
स्वप्निल अर्थों के
रंगीन ख़्वाब लेकर
लौट आयी।
लबों पर तिरती मुस्कुराहट
उतर गयी दिल की गहराइयों में,
गुज़रने लगी तस्वीर-ए-तसव्वुर
एहसासात की अंगड़ाइयों में।
एक मोती उठाया
ह्रदय तल की गहराइयों से,
आरज़ू के जाल में उलझाया
उर्मिल ऊर्जा की लहरियों से।
उठा ऊपर
आँख से टपका
गिरा...
रंग-ए-हिना से सजी
ख़ूबसूरत हथेली पर,
उभरा अक्स उसमें
फिर उमड़ा
अश्क का रुपहला धुआँ
लगा ज्यों
चाँद उतर आया हो
ज़मीं पर...!
© रवीन्द्र सिंह यादव
एक मौज लौट आयी,
आपकी हथेलियों पर रची
हिना फिर खिलखिलायी।
मेरे हाथ पर
अपनी हथेली रखकर
दिखाये थे
हिना के ख़ूबसूरत रंग,
बज उठा था
ह्रदय में
अरमानों का जलतरंग।
छायी दिल-ओ-दिमाग़ पर
कुछ इस तरह
भीनी-भीनी महक-ए-हिना,
सारे तकल्लुफ़ परे रख
ज़ेहन ने
तेज़ धड़कनों को
बार-बार गिना।
अदृश्य हुआ
रेखाओं का
ताना-बाना बुनता
क़ुदरत का जाल,
हथेली पर
बिखेर दिया
हिना ने अपना
रंगभरा इंद्रजाल।
शोख़ निगाह
दूर-दूर तक गयी,
स्वप्निल अर्थों के
रंगीन ख़्वाब लेकर
लौट आयी।
लबों पर तिरती मुस्कुराहट
उतर गयी दिल की गहराइयों में,
गुज़रने लगी तस्वीर-ए-तसव्वुर
एहसासात की अंगड़ाइयों में।
एक मोती उठाया
ह्रदय तल की गहराइयों से,
आरज़ू के जाल में उलझाया
उर्मिल ऊर्जा की लहरियों से।
उठा ऊपर
आँख से टपका
गिरा...
रंग-ए-हिना से सजी
ख़ूबसूरत हथेली पर,
उभरा अक्स उसमें
फिर उमड़ा
अश्क का रुपहला धुआँ
लगा ज्यों
चाँद उतर आया हो
ज़मीं पर...!
© रवीन्द्र सिंह यादव
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१४ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सादर आभार श्वेता जी रचना को मान देने के लिये। "पाँच लिंकों का आनन्द" जैसे प्रतिष्ठित पटल पर रचना प्रदर्शित होना फ़ख़्र की बात है।
हटाएंबहुत ही भावुक...
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत कविता।
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं......🎂🎂🎂आदरणीय।
बहुत-बहुत आभार रवीन्द्र जी प्रतिक्रिया एवं शुभकामनाओं के लिये।
हटाएंरवीन्द्र सिंह यादव जी, बहुत सुन्दर लेकिन बहुत खतरनाक रोमांटिक कविता !
जवाब देंहटाएंअगर ये मेहँदी लगे हाथ आपके घर को आज भी महका रहे हैं तब तो ठीक है लेकिन इनकी महक कहीं और है और वह किसी और का दिल चहका रही है, बहका रही है तो आपके लिए बड़ी मुश्किल खड़ी होने वाली है.
सादर नमन सर।
हटाएंआपकी आत्मीयता से लबरेज़ टिप्पणी मेरे लिये अनमोल उपहार है। प्रस्तुत रचना मेरी प्रतिनिधि रचना नहीं है बल्कि इसे एक मित्र के आग्रह पर प्रकाशित किया। अब आप यह मत पूछियेगा कि मित्र महिला है या पुरुष...!(गुस्ताख़ी माफ़ )।
हालाँकि मेरे ब्लॉग पर यह सर्वाधिक लोकप्रिय रचना है। आपके कहे अनुसार यह हिना मेरे घर में ही महक रही है। आप जैसे सहृदय अभिभावकों ने जो संस्कार दिये उन्हें आत्मसात करते हुए भारतीय जीवन संस्कृति के महान मूल्यों में अपनी आस्था रखता हूँ और परिवार को ऐसी किसी प्रकार की आशंका से सर्वथा मुक्त रखने का प्रयास करता हूँ।
सादर आभार सर जीवनोपयोगी सलाह देती प्रतिक्रिया के लिये।
एक मोती उठाया
जवाब देंहटाएंह्रदय तल की गहराइयों से,
आरज़ू के जाल में उलझाया
उर्मिल ऊर्जा की लहरियों से।
अनमोल शब्द ,प्रशंसा से परे मान्यवर ,जन्म दिन की ढेरो शुभकामनाये
सादर आभार कामिनी जी शुभकामनाओं एवं मोहक प्रतिक्रिया के लिये।
हटाएंवाह बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण संयोजन कसक लिये।
सादर आभार कुसुम जी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिये।
हटाएंहथेली पर
जवाब देंहटाएंबिखेर दिया
हिना ने अपना
रंगभरा इंद्रजाल।
रंग ए हिना...बहुत ही लाजवाब....
अद्भुत शब्दविन्यास...बहुत ही अप्रतिम....
वाह!!!
जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
बहुत ही शानदार लाजवाब भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंअद्भुत शब्दविन्यास....
वाह!!!
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं रविन्द्र जी...
एक लाजवाब रोमांटिक कविता जो कल्पना के सुखद संसार की यात्रा पर ले जाती है। आपकी कल्पनाशक्ति और शब्द-विन्यास कमाल के हैं।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन आदरणीय,
जवाब देंहटाएंसादर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-11-2019) को "यूं ही झुकते नहीं आसमान" (चर्चा अंक- 3506) " पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
-अनीता लागुरी 'अनु'
---
वाह सुन्दर भाव।
जवाब देंहटाएंशृंगार में मेंहदी और मेंहदी में शृंगार रस वाह्ह्ह्
जवाब देंहटाएंअभिनव सृजन मोहक सरस भाई रविन्द्र जी।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 21 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंवाह !लाज़वाब सराहना से परे काफ़ी बार पढ़ी है यह रचना।
जवाब देंहटाएंसादर
रंग-ए-हिना से सजी
जवाब देंहटाएंख़ूबसूरत हथेली पर,
उभरा अक्स उसमें
फिर उमड़ा
अश्क का रुपहला धुआँ
अपनी तरह की आप रचना, जो जितनी बार पढ़ी, उतनी बार हृदय को स्पर्श करती है। सुंदर शृंगार रचना जो आपकी सबसे सुंदर रचनाओं में से एक है। एक बार फिर से पढ़कर बहुत अच्छा लगा भाई रवीन्द्र जी। सस्नेह शुभकामनायें 🙏🙏💐🙏🙏
वाह!अनुज रविन्द्र जी ,क्या बात है !!हृदयस्पर्शी रचना ।
जवाब देंहटाएंहिना के माध्यम से जो आपने भावों को शब्दों में पिरोया है ,अद्भुत है ।