रविवार, 27 मई 2018

तीन क्षणिकाऐं

क्षणिकाऐं 


स्वप्न-महल  

बनते हैं महल 
सुन्दर सपनों के 
चुनकर 
उम्मीदों के 
नाज़ुक तिनके 
लाता है वक़्त 
बेरहम तूफ़ान 
जाते हैं बिखर 
तिनके-तिनके। 


सफ़र 

जीवन के 
लम्बे सफ़र में 
समझ लेता है 
दिल जिसे हमराही  
दो क़दम 
साथ चलकर 
बिछड़ जाते हैं 
बेड़ियाँ हालात की 
बनती हैं कब सवाली। 

जुदाई 

मिलन के लम्हात 
गुज़रे 
पहलू में बैठे-बैठे 
सुनते रहे 
बुलबुल की सदायें 
होंठों को दबाये-दबाये 
जब मिला 
जुदाई का ग़म 
मतलब-ए-उल्फ़त को 
समझ सके हैं हम।   
#रवीन्द्र सिंह यादव 

बुधवार, 23 मई 2018

लोगों को इंसाफ़ कैसे मिलेगा ?

दादा (पोते से ): कोई नया समाचार हो तो सुनाओ.....

पोता : सब बासी समाचार हैं, हाँ एक ताज़ा समाचार है।

दादा : क्या है, सुनाओ।

पोता : तमिलनाडु में कॉपर प्लांट का विरोध कर रही भीड़ पर पुलिस ने
            गोली चलाई,कई घायल; 11 मरे !

दादा : राम-राम !!! लोग क्यों कर रहे थे विरोध ?

पोता : फैक्टरी प्रदूषण फैला रही है। लोगों का जीना दूभर हो गया है। 

दादा : लोगों का विरोध तो जाएज़ है तो गोली क्यों चलाई पुलिस ने ?

पोता : पुलिस का कहना है कि भीड़ हिंसक होकर अनियंत्रित हो गयी थी।

दादा : हिंसक प्रदर्शन तो ना-जाएज़ है लेकिन पुलिस गोली चलाने के अलावा
           कोई और विकल्प क्यों नहीं अपनाती ?

पोता : हाँ, किन्तु लोग 100 दिन से प्लांट बंद करने की शांतिपूर्ण माँग कर रहे थे।
          प्लांट तक जाने से पुलिस ने  लोगों को रोका क्योंकि हाई कोर्ट ने प्लांट की
          सुरक्षा का आदेश दिया है।

दादा : वाह ! नागरिकों  की सुरक्षा का क्या?  सरकार अहिंसक आन्दोलनों की आवाज़
          नहीं सुनती तो लोग धैर्य खोने लगते हैं परन्तु हिंसा पर उतर आना किसी
          समस्या का हल नहीं है।

पोता : सरकार ने मुआवज़े की घोषणा कर दी है। मृतक  के परिजन को
           सरकारी नौकरी  और 10 लाख रुपये।

दादा : लोगों की जान लेकर सरकार राहत की घोषणा क्यों करती है ?

पोता: मामले को ठंडा करने और लोगों का क्रोध शांत करने के लिए।

दादा : जब सरकार को मालूम है कि प्लांट प्रदूषण फैला रहा है तो
           बंद क्यों नहीं करवाती ?

पोता :बहुराष्ट्रीय कम्पनी का प्लांट है।

दादा : तो क्या हुआ, लोगों की ज़िन्दगी से खिलवाड़ की इजाज़त उसे किसने दी ?

पोता : यह बड़ा खेल है।

दादा : कुछ समझाओ भी।

पोता : ऐसी कम्पनियाँ अधिकारियों को रिश्वत देती हैं और राजनैतिक दलों
          (सत्तापक्ष और विपक्ष ) को मुँह भरकर चंदा देती हैं तथा कुछ नेताओं
          की सिफ़ारिश पर होशियार-मज़बूर, चतुर-चालाक और  धूर्त लोगों को
           नौकरियाँ देती हैं। बदले में सरकारों से ना-जाएज़ सहूलियतें हासिल करती हैं।

दादा : फिर लोगों को इंसाफ़ कैसे मिलेगा ? चंदा सरकारों को लाचार बना देता है।

पोता : कुछ लोग एनजीओ के ज़रिये अपना और देश का हित साध रहे हैं,
           मानवाधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। अब तो भारत सरकार ने क़ानून बना
           दिया है -
          "सन 1976 से अब तक राजनैतिक दलों द्वारा स्वीकार किये गये अवैध
           विदेशी चंदे की कोई जाँच नहीं होगी।"

दादा : तुम्हारी बातों से मेरा मन व्यथित हो चला है। अब मुझे अकेला छोड़ दो
          ताकि उन बिलखते  परिवारों, घायलों और  जान क़ुर्बान करने वालों के
          लिए प्रार्थना कर सकूँ।

( दादा जी ध्यानमग्न हो गये , पोता सोशल मीडिया पर ऑनलाइन प्रतिक्रिया लिखने में व्यस्त हो गया। )

#रवीन्द्र सिंह यादव       

शनिवार, 19 मई 2018

आओ! राष्ट्रीय-चरित्र पर मंथन करें.....

आओ!
मनगढ़ंत, मनपसन्द, मन-मुआफ़िक, मन-मर्ज़ी का 
इतिहास पढ़ें, 
अज्ञानता का विराट मनभावन 
आनंदलोक गढ़ें। 
आओ! 
बदल डालें 
सब इमारतों, गलियों, शहरों, सड़कों, संस्थानों के नाम, 
लिख दें बस अपने-अपनों के नाम। 
आओ! 
बदल डालें 
कुछ क़ानून-क़ाएदे भी, 
होंगे दूरगामी फ़ाएदे भी।  
आओ! 
पाठ्यक्रम भी बदल डालें,
अपनों को उपकृत करें और बौद्धिक विकास में भी ख़लल डालें।  
आओ! 
पेपर लीक कर लें,
प्रतिभा को रौंदकर अपनी तिजोरी भर लें। 
आओ! 
 कॉर्पोरेट के तलवे चाटें, 
राष्ट्रीय सम्पदा लुटाएँ और चंदे की ख़ैरात को आपस में बाँटें।  
आओ!
बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक खेल खेलें,
काटें नफ़रत से उगाई फ़सल व बेलें। 
   
आओ!
राष्ट्रवाद का नगाड़ा बजाएँ, 
शून्य से मुद्दों को पैदाकर अखाड़ा बनाएँ।  
आओ!
नई पीढ़ी का भविष्य सँवारें,  
किंतु कैसे ?
परिष्कृत ज्ञान और दक्षता के लिये  
कब तक विदेश के पाँव पखारें ?
आओ!
राष्ट्रीय-चरित्र पर मंथन करें, 
कल के लिये आत्मावलोकन करें।   

#रवीन्द्र सिंह यादव  

शनिवार, 12 मई 2018

मेहमान को जूते में परोसी मिठाई.....

समाचार आया है-

"इज़राइली राजकीय भोज में जापानी प्रधानमंत्री को 
जूते में परोसी मिठाई!" 
ग़ज़ब है जूते को  
टेबल पर सजाने की ढिठाई !!

दम्भ और आक्रामकता में डूबा 
एक अहंकारी देश 
भूल गया है 
मेहमान-नवाज़ी का पाक परिवेश 

परोसता है मिठाई मेहमान को 
चॉकलेट से बने जूते में 
आधुनिकता की अंधी दौड़ में 
इस रचनात्मक (?) मज़ाक़ के 
सांस्कृतिक निहितार्थ समझना 
नहीं है इनके बूते में ! 

#रवीन्द्र सिंह यादव 

शब्दार्थ /WORD  MEANINGS 
ग़ज़ब  = क्रोध, प्रकोप, ग़ुस्सा / ANGER, FURY, RAGE 

ढिठाई = धृष्टता, ढीठपन, गुस्ताख़ी / AFFRONT, ARROGANCE 

दम्भ = पाखण्ड, ढोंग, कथनी-करनी का अलग-अलग होना  /                                  HYPOCRISY 

मेहमान-नवाज़ी = अतिथि-सत्कार  / HOSPITALITY 

पाक = पवित्र, शुद्ध / PURE, HOLY

परिवेश =  माहौल, वातावरण, परिधि / SURROUNDING 

रचनात्मक = निर्माण / रचना सम्बन्धी / CREATIVE,                                                CONSTRUCTIVE 

मज़ाक़ = परिहास, खिल्ली / TEASE  

शुक्रवार, 4 मई 2018

बैसाख में मौसम बेईमान





कहीं बादल रहे उमड़
कहीं आँधी रही घुमड़
अब आ गयी धूप 
चुभती चिलचिलाती
अब सूखे कंठ से 
चिड़िया गीत न गाती


कोयल को तो मिल गया 
आमों से लकदक  बाग़
कौआ ढूँढ़ रहा है मटका 
गाता फिरे बेसुरा राग




चैतभर काटी फ़सल  
बैसाख में खलिहान 
आसमान को ताकता 
बेबस निरीह किसान 

बदला  रुख़  आसमान का 
आँधी-पानी का हो-हल्ला
उड़ जाता  भूसे का ढेर 
गीला होता सारा  गल्ला

आँधियाँ ले लेती हैं 
कितनों की जान 
क़ुदरत कब होगी मेहरबाँ?
कठिन दौर में होता अक़्सर
क्यों मौसम भी बेईमान ?
#रवीन्द्र सिंह यादव 

शब्दार्थ / WORD MEANINGS 
खलिहान = वह स्थान जहाँ फ़सल को काटकर एकत्र किया जाता है / BARN  
गल्ला = अनाज , अन्न / FOOD GRAINS 

गुरुवार, 3 मई 2018

नींद


बचपन में समय पर

आती थी  नींद,

कहानी दादा-दादी की 

लाती थी नींद। 

अब आँखों में

किसी की तस्वीर बस गयी है,

नींद भी क्या करती

कहीं और जाकर बस गयी है।

#रवीन्द्र सिंह यादव



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