क्षणिकाऐं
स्वप्न-महल
बनते हैं महल
सुन्दर सपनों के
चुनकर
उम्मीदों के
नाज़ुक तिनके
लाता है वक़्त
बेरहम तूफ़ान
जाते हैं बिखर
तिनके-तिनके।
सफ़र
जीवन के
लम्बे सफ़र में
समझ लेता है
दिल जिसे हमराही
दो क़दम
साथ चलकर
बिछड़ जाते हैं
बेड़ियाँ हालात की
बनती हैं कब सवाली।
जुदाई
मिलन के लम्हात
गुज़रे
पहलू में बैठे-बैठे
सुनते रहे
बुलबुल की सदायें
होंठों को दबाये-दबाये
जब मिला
जुदाई का ग़म
मतलब-ए-उल्फ़त को
समझ सके हैं हम।
#रवीन्द्र सिंह यादव