बुधवार, 23 मई 2018

लोगों को इंसाफ़ कैसे मिलेगा ?

दादा (पोते से ): कोई नया समाचार हो तो सुनाओ.....

पोता : सब बासी समाचार हैं, हाँ एक ताज़ा समाचार है।

दादा : क्या है, सुनाओ।

पोता : तमिलनाडु में कॉपर प्लांट का विरोध कर रही भीड़ पर पुलिस ने
            गोली चलाई,कई घायल; 11 मरे !

दादा : राम-राम !!! लोग क्यों कर रहे थे विरोध ?

पोता : फैक्टरी प्रदूषण फैला रही है। लोगों का जीना दूभर हो गया है। 

दादा : लोगों का विरोध तो जाएज़ है तो गोली क्यों चलाई पुलिस ने ?

पोता : पुलिस का कहना है कि भीड़ हिंसक होकर अनियंत्रित हो गयी थी।

दादा : हिंसक प्रदर्शन तो ना-जाएज़ है लेकिन पुलिस गोली चलाने के अलावा
           कोई और विकल्प क्यों नहीं अपनाती ?

पोता : हाँ, किन्तु लोग 100 दिन से प्लांट बंद करने की शांतिपूर्ण माँग कर रहे थे।
          प्लांट तक जाने से पुलिस ने  लोगों को रोका क्योंकि हाई कोर्ट ने प्लांट की
          सुरक्षा का आदेश दिया है।

दादा : वाह ! नागरिकों  की सुरक्षा का क्या?  सरकार अहिंसक आन्दोलनों की आवाज़
          नहीं सुनती तो लोग धैर्य खोने लगते हैं परन्तु हिंसा पर उतर आना किसी
          समस्या का हल नहीं है।

पोता : सरकार ने मुआवज़े की घोषणा कर दी है। मृतक  के परिजन को
           सरकारी नौकरी  और 10 लाख रुपये।

दादा : लोगों की जान लेकर सरकार राहत की घोषणा क्यों करती है ?

पोता: मामले को ठंडा करने और लोगों का क्रोध शांत करने के लिए।

दादा : जब सरकार को मालूम है कि प्लांट प्रदूषण फैला रहा है तो
           बंद क्यों नहीं करवाती ?

पोता :बहुराष्ट्रीय कम्पनी का प्लांट है।

दादा : तो क्या हुआ, लोगों की ज़िन्दगी से खिलवाड़ की इजाज़त उसे किसने दी ?

पोता : यह बड़ा खेल है।

दादा : कुछ समझाओ भी।

पोता : ऐसी कम्पनियाँ अधिकारियों को रिश्वत देती हैं और राजनैतिक दलों
          (सत्तापक्ष और विपक्ष ) को मुँह भरकर चंदा देती हैं तथा कुछ नेताओं
          की सिफ़ारिश पर होशियार-मज़बूर, चतुर-चालाक और  धूर्त लोगों को
           नौकरियाँ देती हैं। बदले में सरकारों से ना-जाएज़ सहूलियतें हासिल करती हैं।

दादा : फिर लोगों को इंसाफ़ कैसे मिलेगा ? चंदा सरकारों को लाचार बना देता है।

पोता : कुछ लोग एनजीओ के ज़रिये अपना और देश का हित साध रहे हैं,
           मानवाधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। अब तो भारत सरकार ने क़ानून बना
           दिया है -
          "सन 1976 से अब तक राजनैतिक दलों द्वारा स्वीकार किये गये अवैध
           विदेशी चंदे की कोई जाँच नहीं होगी।"

दादा : तुम्हारी बातों से मेरा मन व्यथित हो चला है। अब मुझे अकेला छोड़ दो
          ताकि उन बिलखते  परिवारों, घायलों और  जान क़ुर्बान करने वालों के
          लिए प्रार्थना कर सकूँ।

( दादा जी ध्यानमग्न हो गये , पोता सोशल मीडिया पर ऑनलाइन प्रतिक्रिया लिखने में व्यस्त हो गया। )

#रवीन्द्र सिंह यादव       

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

अभिभूत

बालू की भीत बनाने वालो  अब मिट्टी की दीवार बना लो संकट संमुख देख  उन्मुख हो  संघर्ष से विमुख हो गए हो  अभिभूत शिथिल काया ले  निर्मल नीरव निर...