बुधवार, 20 मार्च 2019

हाँ! मैं पुण्य प्रसून बाजपेयी हूँ!


हाँ! मैं पुण्य प्रसून बाजपेयी हूँ!
हाँ! मैं जनता के प्रति
एक नन्हीं-सी जवाबदेही हूँ।  

पूँजी की आक्रामकता के दौर में
पाखंड, अहंकार, दम्भ और दमन रोकने  
हाँ! मैं एक कठोर-सी देहरी हूँ। 

पलायन, लाचारी, बेकारी के तूफ़ान में
पत्रकारिता के मानदंड और आत्मा
बचाये रखने हेतु
हाँ! मैं एक सजग प्रहरी हूँ।

देखता हूँ दारिद्र्य और देहात भी
एक हक़ीक़त-भरी ख़ुशबू हूँ बेताब बिखरने के लिये
आपको आगाह करता
हाँ! मैं एक शहरी हूँ।

मेरी नौकरी के पीछे पड़ी है
डरपोक सत्ता
सालभर में तीसरी नौकरी से जा रहा हूँ मैं
हाँ! मैं लोकतंत्र के सवालों की दहकती दुपहरी हूँ
हाँ! मैं पुण्य प्रसून बाजपेयी हूँ!  
© रवीन्द्र सिंह यादव 

रविवार, 3 मार्च 2019

कविता और न्याय

 समाचार आया है -

"अदालत ने हत्या के अपराधी की कविताएँ पढ़कर मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदला"


सर्वोच्च न्यायालय का 

न्याय सुनो 

मख़मली भावों की 

ख़ूबसूरत क़ालीन बुनो 

22 वर्ष की आयु में 

मासूम बच्चे का अपहरण 

फिर हत्या कर डाली 

क़ानून के लम्बे हाथों ने 

ले गिरफ़्त में 

बेड़ियाँ कसकर डालीं 

उच्च न्यायालय से 

फाँसी का 

फ़रमान हुआ

अपराधी घबराकर 

हलकान हुआ

रेयरेस्ट ऑफ़ द रेयर/

दुर्लभ से दुर्लभतम मामला 

आख़िरी अदालत तक आ पहुँचा 

18 साल कारावास में रहकर 

पढ़ते-पढ़ते बी.ए. तक आ पहुँचा 

पश्चाताप और प्राश्यचित की 

ज्वाला में धधक उठा 

कल्मष हृदय से साफ़ हुआ 

संवेदना का परिंदा चहक उठा 

सृजन की 

रसमय निर्मल रसधार बही

हृदय परिवर्तन की 

मर्मस्पर्शी बयार बही

आत्मग्लानि आत्मवंचना से 

उबरूँ कैसे 

उमड़े विचार 

कैसे-कैसे    

अपराधी की क़लम ने 

रच डाला कविताओं का सुन्दर संसार

छूआ न्यायाधीशों के मर्म को बार-बार 

सज़ा-ए-मौत      

आजीवन कारावास में तब्दील हुई

कविता और न्याय की 

सुरभित गरिमा 

अपराधी को फ़ील हुई।  

© रवीन्द्र सिंह यादव  

पाठकों से अपील: इस रचना को एक अबोध बच्चे के हत्यारे का महिमामंडन न समझा जाय बस कविता के महत्त्व पर विचार किया जाय।      

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