बुधवार, 20 मार्च 2019

हाँ! मैं पुण्य प्रसून बाजपेयी हूँ!


हाँ! मैं पुण्य प्रसून बाजपेयी हूँ!
हाँ! मैं जनता के प्रति
एक नन्हीं-सी जवाबदेही हूँ।  

पूँजी की आक्रामकता के दौर में
पाखंड, अहंकार, दम्भ और दमन रोकने  
हाँ! मैं एक कठोर-सी देहरी हूँ। 

पलायन, लाचारी, बेकारी के तूफ़ान में
पत्रकारिता के मानदंड और आत्मा
बचाये रखने हेतु
हाँ! मैं एक सजग प्रहरी हूँ।

देखता हूँ दारिद्र्य और देहात भी
एक हक़ीक़त-भरी ख़ुशबू हूँ बेताब बिखरने के लिये
आपको आगाह करता
हाँ! मैं एक शहरी हूँ।

मेरी नौकरी के पीछे पड़ी है
डरपोक सत्ता
सालभर में तीसरी नौकरी से जा रहा हूँ मैं
हाँ! मैं लोकतंत्र के सवालों की दहकती दुपहरी हूँ
हाँ! मैं पुण्य प्रसून बाजपेयी हूँ!  
© रवीन्द्र सिंह यादव 

5 टिप्‍पणियां:

  1. देखता हूँ दारिद्र्य और देहात भी
    एक हक़ीक़त-भरी ख़ुशबू हूँ बेताब बिखरने के लिये
    आपको आगाह करता
    हाँ! मैं एक शहरी हूँ।....बहुत ख़ूब सर
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. वाहह्हह... वाहह्हह... बेहद प्रभावशाली सृजन..सराहनीय बंध..👍👍👍
    रवींद्र जी समसामयिक विचारोत्तेजक रचना के लिए बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. एक सच्चे पत्रकार को संघर्ष से गुजरना पड़ता है और जो जमीर बेच देते हैं वे मजे करते हैं। दुःखद है यह।

    जवाब देंहटाएं
  5. पलायन, लाचारी, बेकारी के तूफ़ान में
    पत्रकारिता के मानदंड और आत्मा
    बचाये रखने हेतु
    हाँ! मैं एक सजग प्रहरी हूँ।
    बहुत ही सुन्दर, सार्थक एवं सारगर्भित रचना...

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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