उस दिन बिटिया नाराज़ हुई थी
तब चौथी कक्षा में पढ़ती थी
भूगोल की परीक्षा में
नक़्शा बनाने के भी नंबर थे
नक़्शे बनाते-बनाते
उसे ग़ुस्सा आया
मेरे पास आयी
हाथ में थे कई काग़ज़
जिन पर बने थे कई नक़्शे
लेकिन नहीं थे बनाने जैसे
बालसुलभ तमतमाहट के साथ
पूछा मुझसे-
ये नक़्शे टेढ़े-मेढ़े क्यों होते हैं ?
बड़े होकर समझना
नक़्शों का बदलना
नक़्शों का मिटना
नक़्शों में समायी भावना
नक़्शों में निहित संभावना
तिरोहित होती है भाईचारे की भावना
क़ुदरत ने दिया था
बस एक ही नक़्शा भूमि-जल से चहकता
घुसेड़ दी है हमने नक़्शे में
विस्तारवादी / संकीर्ण मानसिकता
राजनीति रणनीति और सुरक्षा
नक़्शे की जड़ में छिपी है महत्त्वाकांक्षा
नक़्शों में सिमटी है आज दुनिया
सुनते-सुनते गंभीर हुई मुनिया।
© रवीन्द्र सिंह यादव
तब चौथी कक्षा में पढ़ती थी
भूगोल की परीक्षा में
नक़्शा बनाने के भी नंबर थे
नक़्शे बनाते-बनाते
उसे ग़ुस्सा आया
मेरे पास आयी
हाथ में थे कई काग़ज़
जिन पर बने थे कई नक़्शे
लेकिन नहीं थे बनाने जैसे
बालसुलभ तमतमाहट के साथ
पूछा मुझसे-
ये नक़्शे टेढ़े-मेढ़े क्यों होते हैं ?
बड़े होकर समझना
नक़्शों का बदलना
नक़्शों का मिटना
नक़्शों में समायी भावना
नक़्शों में निहित संभावना
तिरोहित होती है भाईचारे की भावना
क़ुदरत ने दिया था
बस एक ही नक़्शा भूमि-जल से चहकता
घुसेड़ दी है हमने नक़्शे में
विस्तारवादी / संकीर्ण मानसिकता
राजनीति रणनीति और सुरक्षा
नक़्शे की जड़ में छिपी है महत्त्वाकांक्षा
नक़्शों में सिमटी है आज दुनिया
सुनते-सुनते गंभीर हुई मुनिया।
© रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत प्यारी सी कविता लिखी है रवींद्र जी आपने..बचपन की मासूमियत से लेकर बौद्धिक क्षमता के विकास की यात्रा का सजीव चित्रण..अति सुंदर गहन भाव लिये सराहनीय सृजन👍👍👌👌
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह आदरणीया सर क्या अद्भुत रचना प्रस्तुत की है आपने
जवाब देंहटाएंजहाँ बाल मन की मासूमियत रचना का सौंदर्य है तो वही इसका गूढ़ संदेश इसकी आत्मा
लाजवाब पंक्तिया 👌
सादर नमन आपको और आपकी कलम को
शुभ रात्रि
क़ुदरत ने दिया था
जवाब देंहटाएंबस एक ही नक़्शा चहकता
घुसेड़ दी नक़्शे में हमने
विस्तारवादी / संकीर्ण मानसिकता....
बेहतरीन रचना आदरणीय
सादर
ये नक्शे टेढे मेढ़े क्यों होते हैं ?
जवाब देंहटाएंबालसुलभ मासूमियत में गंभीर बात पूछ गई मुनिया !!!
क़ुदरत ने दिया था
जवाब देंहटाएंबस एक ही नक़्शा चहकता
घुसेड़ दी नक़्शे में हमने
विस्तारवादी / संकीर्ण मानसिकता
नक़्शों में सिमटी है आज दुनिया
बहुत ही लाजवाब रचना ...
बालसुलभ मुनिया के माध्यम से नक्शे के टेढ़ेपन पर प्रश्न....बहुत ही सुन्दर...
वाह!!!
वाह!!रविन्द्र जी ,लाजवाब!!कुदरत के दिए नक्शे की हम इंसानों ने निहित स्वार्थों के कारण क्या हालत बना दी है ,इसका अंदाजा शायद हमें अभी नहीं है ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१५ -०३-२०२०) को शब्द-सृजन-१२ "भाईचारा"(चर्चा अंक -३६४१) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
सुंदर सीख देती बेहतरीन रचना ,सादर नमन सर
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