वह एक शांत सुबह थी जेठ मास की जब बरगद की छाँव में
स्फटिक-शिला पर बैठा वह सांस्कृतिक अभ्युदय की कथा सुना रहा था।
नए संसार के साकार होने का सपना अपने सफ़र पर था जो नए-नए
सोपान चढ़ता जा रहा था। मद्धिम होती जा रही थी बीती यामिनी के तमस
की तासीर और शांत क्षितिज की परतें वेधता हुआ उदीयमान सूरज उजाले
की कविता लिख रहा था। ताज़ा हवा के चंचल झोंके धवलकेशी सर पर
लहरें निर्मित कर रहे थे।
उसने एक गंभीर मननशील दृश्य उपस्थित किया-
उसने एक गंभीर मननशील दृश्य उपस्थित किया-
"अतीत की डबडबाई आँखों में अव्यक्त वेदना समाई है जो शिकायती
लहज़े में शायद कहती है-
हे वर्तमान!
मैंने तो नहीं सौंपा था तुम्हें ऐसा हो जाने का सपना। मानवता की कैसी
मनवांछित परिभाषा आत्मसात कर ली है तुमने?
कला-संगीत-साहित्य के प्रति कैसी निहायत ही उथली समझ विकसित कर रहे हो। मैंने तो स्वयं को मिटाकर तुम्हें हर हाल में बेहतर होने के लिए गढ़ा है।
कला-संगीत-साहित्य के प्रति कैसी निहायत ही उथली समझ विकसित कर रहे हो। मैंने तो स्वयं को मिटाकर तुम्हें हर हाल में बेहतर होने के लिए गढ़ा है।
कल भविष्य जब तुम्हें नकारेगा, दुत्कारेगा; तुम्हारी मंशा पर उँगली
उठाएगा और तुम्हारे किए-धरे को ख़ारिज करेगा तब तुम क्या करोगे?"
अनसुना करते हुए वर्तमान बेशर्मी से मुँह फेरकर अपने अस्तित्त्व के
झंझावात में उलझ जाता है। सूर्य अब चढ़ आया था पीपल की फुनगी तक,
श्रोता /
अनुयायी-वृंद उठा भूख मिटाने के संघर्षमय प्रबंध में जुट गया।
© रवीन्द्र सिंह यादव
शब्दार्थ
जेठ मास = ज्येष्ठ महीना
स्फटिक-शिला = स्फटिक (QUARTZ / एक प्रकार का सफ़ेद चमकीला सुंदर पत्थर / खनिज ) पत्थर का बड़ा टुकड़ा या हिस्सा,पाषाण
अभ्युदय = और बेहतर होने की स्थिति, उन्नति, वृद्धि, तरक़्क़ी / AGGRANDIZEMENT, ELEVATION
मद्धिम = अपेक्षाकृत कम, मंदा, मंद, धुँधला, निष्प्रभ, हल्का / DIMMING
यामिनी = रात,रात्रि,रजनी,रैन,निशा,तमा,तमस्विनी,विभावरी / NIGHT
धवलकेशी सर = जिस सर( मस्तक / HEAD) पर सफ़ेद बाल (WHITE HAIRS) हों, जैसे- धवलकेशी न्यायाधीश, साहित्यकार,महात्मा, बुज़ुर्ग़