तान वितान जब
नागफनी ने
घेरा पूरा खेत,
मरुभूमि ने
दिली सत्कार किया
विहँसी भूरी रेत।
इतरायी
नागफनी ख़ुद पर
जब बंध्या-धरती का
सलोना शृंगार हुई,
सूख गयी जब
हरियाली चहुओर
अकाल में पशुओं का
जीवनरक्षक आहार हुई।
तन्हा-तन्हा
जीती रहती नागफनी
जब खिली हुईं थीं
रंग-विरंगी फुलवारियाँ,
सुमन-गंध ग़ाएब हुई
सूख गयीं सारी
प्यारीं कोमल पंखुड़ियाँ
तब नागफनी ने
व्यथित मन बहलाया
कम से कम पानी में भी
दुर्दिन में जीवन जीने का
झंझावाती मार्ग सुझाया।
© रवीन्द्र सिंह यादव