सोमवार, 28 अगस्त 2017

भारत की बेटी और प्रधानमंत्री का मौन

भारत की एक विवश त्रस्त बेटी ने 

मई 2002 में 

आख़िरी उम्मीद के साथ

पितातुल्य 

देश के रहबर / प्रधानमंत्री को 

गुमनाम ख़त में 

अपनी गरिमा और अस्मिता पर 

हुई लोमहर्षक बर्बरता

परिवार की अँधश्रद्धा

पारिवारिक विवशता 

ख़तरे में जान ख़ुद व परिवार  

साथियों पर हुए घोर अत्याचार 

धर्म के नाम पर काला कारोबार 

सब कुछ  तो लिख दिया था 

साफ़-साफ़

तीन दर्द से चीख़ते पन्नों में 

अपने नाम के  सिवा। 


बस उससे एक भारी भूल (?) हुई 

एक प्रति उसने 

न्यायालय  को भी भेज दी 

पीएमओ ख़ामोश रहा 

न्यायालय  ने 

उस ख़त में लिपटी चीख़ को 

शिद्दत से महसूस किया 

सीबीआई जाँच का आदेश दिया। 


भाई भी खोया इस समर में 

निडर / संवेदनशील पत्रकार की आहुति  हुई 

पिता भी चल बसे 

एक पीड़ित साथी  साथ आई  

केस में और जान आयी 

देते-देते गवाही 

झेलते-झेलते धमकियाँ

छिपाते-छिपाते आँचल में सिसकियाँ  

सामाजिक  दुत्कार 

घायल मन की चीत्कार

न्याय की उम्मीद के कटोरे रीत गए 

पंद्रह वर्ष बीत गए। 


25 अगस्त 2017 

सुकून का दिन आया 

जब  माननीय जज़  साहब ने

न्याय देकर  

अपराधी बाबा  को  

जेल भिजवाया

एक अपराधी को 

कोर्ट तक लाने में देश हिल गया

 मौत के सौदागरों ने 

38 घरों के चराग़ बुझा दिए

ये  कैसे इन्होंने  आपस में  

ख़ूनी  सौदे  किए ....?


चौंधिया जाती हैं आँखें 

तिलिस्म  के  रेलों  में

ख़बर  है  कि  रातभर 
 
मोबाइल फोन  बजते  रहे

लाशों  से  लिपटी  जेबों  में
 
अपनों के लिए उनके  

अपने तड़पते रहे

वीभत्स है मंज़र पंचकुला में

अब भी ये लाशें लावारिस पड़ी हैं

महिला, पुरुष, बच्चों कीं 

पड़ीं लाशें अधसड़ीं हैं।


एक कवि ह्रदय प्रधानमंत्री भी 

कितना मज़बूर/ संवेदनाशून्य (?) होता है 

कभी-कभी...!

घाघ चापलूसों से घिरा होता है 

हो सकता है 

वह ख़त उनकी नज़र से 

दूर ही रखा गया हो 

अब तो इस निर्लज्जता पर 

वक़्त  ने  खड़े  किए  सालते  सवालों  पर 

भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी (पूर्व प्रधानमंत्री भारत सरकार ) ही 

रौशनी डाल सकते हैं। 


क्या हम ऐसी जाँबाज़ बेटी 

और उसकी साथी को 

किसी सरकारी सम्मान की 

अनुशंसा कर सकते हैं ?

कदापि नहीं ! 

कभी नहीं !!

वे  तो जनता के दिलों पर राज करेंगीं!!

सदियों तक उनकी दिलेरी को भारत की मिट्टी याद करेगी !!!


ज़ुल्म-ओ-सितम के 

क़िले ढहा देनेवाले 

न्याय-युद्ध के सभी बहादुर योद्धाओं को 

मेरा  शत-शत नमन 

न्याय की ख़ुशबू से महकता रहे मेरा चमन।

#रवीन्द्र सिंह यादव 


नोट : प्रस्तुत रचना आज 28-08-2017 / 02:17 AM  पर पोस्ट की गई थी।  अब समाचार मिला है कि आज दोपहर ढलते अपराधी को 20 वर्ष के सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई गई है जिसका  न्यायप्रिय जनता ने स्वागत किया है साथ ही माननीय  न्यायाधीश  महोदय के प्रति अपना सम्मान जताया है।  सरकारी दावा है कि सभी लावारिस लाशों की शिनाख़्त हो चुकी है। 

गुरुवार, 24 अगस्त 2017

जिओ और जीने दो

ख़ुद  जिओ 

अपने जियें,

और 

काल-कवलित 

हो जायें। 




कितना नाज़ां / स्वार्थी  

और वहशी है तू ,

तेरे रिश्ते 

रिश्ते हैं 

औरों के फ़ालतू।




चलो अब फिर 

समझदार,

नेक हो जायें,

अपनी ज़ात 

फ़ना होने तक 

क्यों  बौड़म  हो जायें....?



क़ुदरत  की 

करिश्माई कृति = इंसान 

सृजन को 

विनाश के 

मुहाने पर 

लाने वाला =इंसान। 




महक फूलों की 

दिशा कब 

तय कर पाती,

आब -ओ - हवा 

सरहदों के

नक़्शे  कभी  न  पढ़ पाती।

अंडे रखने को 

तिनके 

चुनकर 

चिड़िया चोंच  में दबाकर ,

सीमांत  इलाक़ों  में    

कुछ  इधर  से 

कुछ  उधर  से  लाती। 




बहती है नदी

ख़ुद क्या ले पाती,

रौशनी सूरज की 

जगमगाती जग को,

तब हरी पत्तियां 

भोजन बनातीं,

शुभ्र चाँदनी  में  रातें 

 ख़ूब  खुलकर खिलखिलातीं । 




ऑक्सीजन 

देते-देते  पेड़

कभी न हारे हैं ,

इंसान तेरी 

पैसे  की  हवस ने 

कितने मज़लूम मासूम मारे हैं। 



तमसभरी  राह में 

कोई लड़खड़ा गया है,

अँधेरा बहुत 

अब  तो  गहरा गया है, 

घनेरा  आलोचा गया अँधेरा,

 अब दरवाज़े पर एक दीपक जलायें ,

उकता  गया  है  मन.......  चलो 

नींद आने तक दादी से सुनें कथाऐं। 

#रवीन्द्र सिंह यादव 


शब्दों के अर्थ / Word Meanings 


और = अन्य ,दूसरे,दूसरा ,अतिरिक्त /Others ,Another, And,More 

काल-कवलित = मृत ,मर चुका ,निष्प्राण / Dead

नाज़ां = घमंड में चूर ,गर्वित /Proud ,Arrogant

वहशी =जंगली , सनकी ,Crazy ,Wild

फ़ालतू = अनावश्यक ,अतिरिक्त / Extra ,over

नेक = दयालु ,भला /Kind , One who possess noble-nature

फ़ना = नष्ट होना , विनाश होना,नष्ट-भ्रष्ट होना ,तहस-नहस होना / Destruction,Ruin 

ज़ात = जाति ,नश्ल / Caste ,Race 

बौड़म = कुंद-दिमाग़,  मंद-बुद्धि ,सुस्त -दिमाग़ / Duffer ,Stupid , Awkward 

क़ुदरत = प्रकृति , ब्रह्माण्ड,काएनात  /Nature ,Universe ,World 

करिश्माई -कृति = अदभुत रचना ,अनुपम सृजन , Wonderful Creation 

सृजन = रचना करना ,निर्माण करना / Creation 

विनाश = समाप्त होना ,नाश /नष्ट होना , Destruction 

मुहाने पर = मुख पर (जैसे नदी का मुहाना )/ At the mouth ,Outfall 

आब -ओ -हवा =जलवायु ,परिवेश ,माहौल / Climate ,Environment 

सरहदों = सीमाओं, हदों /Borders ,Limits ,Boundaries 


चोंच = मुख  का अग्र , नुकीला,कठोर  भाग  जो भोजन आदि को पकड़ने  में सहायक होता है , थूथन ,थूथनी / Beak 


सीमांत = जहां सीमा का अंत हो, सीमावर्ती /Frontier 

शुभ्र = चमकीली /Bright

हवस = अंधी चाह ,वासना, / Desire ,Greed ,Curiosity 

मज़लूम =  दबा-कुचला ,पीड़ित , जिससे ग़लत व्यवहार किया गया हो / Oppressed ,Injured ,One who is  treated in  wrong manner 

मासूम = निरपराध ,निर्दोष / Innocent 

तमसभरी राह =अँधेरे में डूबा मार्ग ,Dark Path 

लड़खड़ा गया = जिसके क़दम डगमगा गए हों , क़दम  चूकना, पाँव टेड़े -मेढ़े पड़ना /Staggered 

घनेरा  आलोचा गया = सघन रूप से जिसकी आलोचना /बुराई की गयी हो / Intense Criticism 

उकता गया है = ऊब गया है / Fad up 

मन = जी ,जियरा ,जिया ,मानस ,चित्त , 40 किलो वज़न भार की नाप (Mound ), Mind ,Psyche

चोंच = मुख  का अग्र , नुकीला,कठोर  भाग  जो भोजन आदि को पकड़ने  सहायक होता है , थूथन ,थूथनी / Beak 
  

सोमवार, 21 अगस्त 2017

गुरु


डॉक्टर  को


उसके  गुरु


सिखाया  करते  थे-


"मौत से घृणा करो"


वे  आज


विश्वास के क़ातिल /


मौत के


सौदाग़र हो गए


पैसे के भारी


तलबग़ार हो गए।





नेता   को


उसके    गुरु


सिखाया करते थे-

"राजनीति का ध्येय

समाज-कल्याण है

उसूलों पर खरे उतरना "

वे आज

लाशों पर

रोटियां सेकने में

माहिर हो गए

भ्रष्टाचारी / अवसरवादी  दुनिया के 

मुसाफ़िर  हो  गए।





शिक्षक  को



उसके गुरु


सिखाया करते थे-


"चरित्र-निर्माण ही


राष्ट्र-निर्माण है"


वे  आज 


वैचारिक दरिद्रता के


क़ायल   हो  गए


अपनी ही शिक्षा के


तीरों से घायल हो गए ।





संत को 

उसके गुरु 

सिखाया करते थे -

"मोह माया से दूर रहो 


आध्यात्मिक ज्ञान से 


समाज-सुधार करो"


वे आज 


बड़े व्यापारी हो गए 

भोली जनता की 

गाढ़ी कमाई खाकर 


समाज पर 


बोझ भारी हो गए। 




कलाकार को 

उसके गुरु ने 

यह कहते हुए तराशा -

"कला का मक़सद 

सामजिक-चेतना को 

उभारना है

दरबारी कृपामंडल में 

चमकना नहीं 

रूह को वीरान 

होने देना नहीं

जितना तपोगे 

उतना निखरोगे "

वे आज 

भोगवादी विचार के  

शिकार हो 

विलासता में सिमट गये 

सरकारी ओहदे /अवार्ड / अनुदान की 

परिधि में 

कलात्मक -विद्रोह से 

महरूम हो 

सत्ता के हाथों 

लुट-पिट गये।  




नैतिक पतन के दौर में


हम अपनी ग़लतियों 

के  लिए  

प्रायश्चित नहीं करते 

न ही कभी

अपने भीतर झाँकते

परिणाम सामने हैं

दोषारोपण के और कितने

मील  के पत्थर गाढ़ने हैं ?

सामाजिक मूल्य गहरी नींद सो गए. ......!

गुरु क्यों अब अप्रासंगिक हो गए ?

#रवीन्द्र सिंह यादव


मंगलवार, 15 अगस्त 2017

इकहत्तरवां स्वाधीनता-दिवस



अँग्रेज़ी हुक़ूमत के

ग़ुलाम  थे  हम

15 अगस्त 1947 से पूर्व

अपनी नागरिकता

"ब्रिटिश-इंडियन"

लिखते थे हम

आज़ादी मिलने  से पूर्व।



ऋषि-मुनियों का

दिया परिष्कृत ज्ञान

शोध / तपस्या से

विकसित विज्ञान

राम-कृष्ण का

जीवन दर्शन

पतंजलि का योग-दर्शन

कपिल का साँख्य-दर्शन

नियत-नीति-न्याय  में

विदुर-चाणक्य का आकर्षण

बुद्ध-महावीर के अमर उपदेश

करुणा और अहिंसा के संदेश

जन-जन  तक न पहुँचा सके हम

सूत्र एकता का अटूट न बना सके हम।



अहंकार  के अस्त्र-शस्त्र

और स्वहित की परिधि

खींचते गये लकीरें सरहदी

बनते गये क़िले

बंटती रही झील-नदी

राष्ट्रीयता का भाव

रियासती हो गया

सूरमाओं का मक़सद

किफ़ायती हो गया

सरहदी मुल्क़ों  से

आक्राँता / लुटेरे आते-जाते रहे

कुछ बस गये 

कुछ माल-दौलत ले जाते रहे

कुछ जनता के अज़ीज़ हो गये 

कुछ  इश्क़  के  मरीज़ हो गये।

कारवाँ अनवरत

चलते  रहे

लोग वक़्त की

माँग में ढलते रहे

व्यथित जनमानस

को राह दिखाने

सूर-तुलसी-कबीर-चिश्ती-रहीम आये 

प्रेम और ज्ञान का

संदेश  लेकर

नानक-रैदास-मीरा-जायसी भी छाये।

चतुर विदेशी व्यापारी

देश के

हुक्मरान  हो गये 

हमारे जज़्बात भी

पहरों में

लहूलुहान हो गये 

कश्मीर की वादियों से

कन्याकुमारी में

समुंदर की लहरों तक

एक अंतः-सलिला  बही

स्वाधीनता की

क्रांतिमय  पावन बयार

देशभर में अलख जगाती रही।



यातना के दौर

आज़ादी के दीवानों ने सहे

अनगिनत क़िस्से हैं

अपने कहे-अनकहे

उपलब्धियों पर आज

फिर नाज़ होने लगा है

स्वराज के  मिशन पर

असमानता और चालाकी का

फिर  राज होने लगा है।



हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई

मिल जाओ सब छोड़ बुराई 

हो  गये  मुक़म्मल 

आज़ादी  के  सत्तर बरस

आओ मनाएँ  इकहत्तरवां 

स्वाधीनता-दिवस।


जय हिन्द !

@रवीन्द्र सिंह यादव

सोमवार, 14 अगस्त 2017

ग़रीब की अकाल मौत



सीवर / गटर में मौत

सरकारी अस्पताल में मौत

खेत -खलिहानों में मौत

जंगलों /अरण्यों में मौत

सरहद  पर मौत

सड़क  पर  मौत।




बच्चों की मौत

बुज़ुर्गों की मौत

अजन्मों की मौत

जवानों की मौत

मरीज़ों की मौत

पर्यटकों की मौत

श्रद्धालुओं की मौत

राहगीरों की मौत

गवाहों की मौत

नेताओं  की मौत

अभिनेताओं की मौत

नाम वालों की मौत

गुमनाम की  मौत

अपनों  की मौत

परायों की मौत।




शहरों में मौत

गावों में मौत

अफ़वाहों में मौत

दंगों में मौत

पंचायती फ़रमानों में मौत

अदालती आदेशों में मौत

आतंकी हमलों में मौत

युद्धों में मौत

हादसों में मौत।





षड़यंत्र में मौत

लापरवाही में मौत

सनक में मौत

हनक में मौत

सेल्फ़ी में मौत

लालच में मौत

स्वाभाविक मौत

असमय मौत

राजनैतिक मौत

बलिदानी मौत

बे-मौत मौत

बदले में  मौत

धोखे में मौत।




पृथ्वी  पर मौत

जल  में मौत

नभ  में मौत

अंतरिक्ष में मौत

झोपड़ी में मौत

महलों में मौत

पिंजड़े में मौत

कसाईखाने  में मौत

गलियों में मौत

घरों में मौत

एकल मौत

सामूहिक मौत।





शब्द की मौत

सपनों की मौत

रिश्तों की मौत

भावों की मौत

रोक पाया कोई  मौत ?

अटल सत्य है मौत!

बस न हो संवेदना की मौत !!

कचोटती है निरीह / ग़रीब की अकाल मौत !!!

#रवीन्द्र  सिंह यादव

रविवार, 6 अगस्त 2017

मित्रता -दिवस


दोस्त ! 
आपकी ज़िन्दगी 
ख़ुशियों  से 
रहे गुलज़ार 
राहें रौशन हों  सदा 
घर-आँगन रहे बहार। 


मनहर पयाम 
लाती  रहे  पवन 
बग़िया में 
क़ाएम  रहे 
फूल और 
माली-सी लगन
सुदूर तक 
ग़मों का 
साया न हो 
साँसें हैं अपनी 
तब तक 
जुड़ें रहें तार-बेतार । 



पिछला ज़माना 
याद है हमको 
जब उलझे थे 
तूफ़ानों में 
लाये थे हम 
खे कर कश्ती 
है कशिश कितनी 
अपने अफ़्सानों में  
आते हैं याद 
पल वो बार-बार। 


दोस्ती के लिए 
बाज़ारवाद ने 
मुक़र्रर  किया 
एक दिन 
हम करते हैं 
इक़रार 
बाबरा मन 
करता है याद 
सुबह-शाम 
हर घड़ी-पलछिन 
आबाद रहें 
रिश्तों के आशियाँ 
बहती रहे 
भावों की 
कल-कल धार। 

#रवीन्द्र सिंह यादव 

मंगलवार, 1 अगस्त 2017

कानों सुनी -आँखों देखी



आज शेरू बीमार है
तेज़ बुखार है
डॉग-क्लीनिक से
डॉक्टर आया
शेरू को 
आला लगाया
ब्लड / यूरिन टैस्ट
ज़रूरी बताया। 



शाम  तक 
रिपोर्ट आयी
यूटीआई....
टीएलसी हाई
डॉक्टर ने 
लिखी दवाई
शेरू ने 
बेमन  से  खाई।



बुखार धीरे-धीरे  
उतर गया
मालिक 
खुश हो गया
शेरू कुछ खाकर 
सो गया
मालिक उलझन में 
खो गया
समय अपनी चाल से  
बीत रहा  है
मालिक का चैन  
रीत रहा  है
नींद कोसों दूर 
खड़ी है
मालिक को सोने की 
पड़ी है।



बदलता रहा 
मालिक
रात दो बजे
तक करवटें
पड़तीं रहीं
बिस्तर में
सैकड़ों सिलवटें
मालिक को
हल्की-सी
नींद गयी
आसपास
नीरवता छा गयी।



तीन बजे अचानक
शेरू भौंकने लगा
सोते-जागते
मालिक चिढ़ने लगा
शेरू और तीव्रता से
भौंकने लगा
मालिक उठा
जब चौंकने लगा।



क्यों बेकार
चिल्ला रहे हो
आज सोने नहीं दोगे .. .
मालिक शेरू को
डांटते हुए बोला
गरमागरम गुस्से में 
शब्द-पर्स खोला। 



शेरू के इशारे पर
मालिक ने
खिड़की से 
पर्दा सरकाया
दूसरी ओर 
काला साया 
नज़र आया
धम्म-सी 
आवाज़ हुई
साया सड़क पर
दौड़ता नज़र आया
मालिक ने तुरत
सौ नंबर मिलाया। 




शेरू शांत हो गया 
मालिक का मन 

क्लांत हो गया
शेरू पर अब 
प्यार का सागर 
उमड़ आया
मालिक ने 
थपकी देकर
रुँधे गले से 
गले लगाया।

#रवीन्द्र सिंह यादव  

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