बुधवार, 28 फ़रवरी 2024

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह 


अहंकारी क्षुद्रताएँ 

कितनी वाचाल हो गई हैं 

नैतिकता को 

रसातल में ठेले जा रही हैं

 मूल्यविहीन जीवन जीने को 

उत्सुक होता समाज 

अपने लिए काँटे बो रहा है

अथवा फूल

यह तो समय देखेगा 

पीढ़ियों को कष्ट भोगते हुए

मूल्यविहीनता का क़र्ज़ उतारते हुए।  

©रवीन्द्र सिंह यादव

शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

सर्दी

 

चित्र:महेन्द्र सिंह 

सर्दी तुम हो बलवान 

कल-कल करती नदी का प्रवाह 

रोकने भर की है तुम में जान

जम जाती है बहती नदी 

बर्फ़ीली हवाओं को तीखा बनाने 

आती हो निरीह को सहना सिखाने  

तुम जब कोहरे के पंख लेकर 

उतरती हो धरा पर 

दृष्टि क्षमता घट जाती है जीव की

चिड़िया भी उड़ नहीं पाती पर पसार कर   

अदृश्य हो जाते हैं भानु,शशि और सितारे

भौतिक जीवन चलता है तकनीक के सहारे 

एक ह्रदय है 

धड़-धड़ धड़कता रहता है जीवनभर अनवरत 

जमने नहीं देता धमनियों-शिराओं में बहता रक्त

इसके भी अपने मौसम हैं 

अंगों के सह-अस्तित्त्व को सहेजे  

कुछ मनचीते 

कुछ बोझिल-से!    

©रवीन्द्र सिंह यादव




शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

भेड़ की ऊन

चित्र: महेन्द्र सिंह 

मासूम भेड़ की ऊन 

आधुनिक मशीनों से 

उतारी जा रही है

भेड़ की असहमति 

ठुकराई जा रही है

ज़बरन छीना जा रहा है   

सौम्य कोमल क़ुदरती कवच

है कैसा इंसानी बुद्धिमत्ता का सच   

तौहीन सहते-सहते 

गुज़ारेगी ठंड का मौसम 

कोसते काँपते-ठिठुरते हुए

कोई लुत्फ़ उठा रहा होगा

सर्दी के मौसम में इच्छित उष्णता का  

ऊनी रज़ाई ओढ़ते हुए!

 ©रवीन्द्र सिंह यादव

 

रविवार, 24 दिसंबर 2023

बादल को बरस जाना है

चित्र: महेन्द्र सिंह 

दो गर्वोन्नत अहंकारी बादल

बढ़ा रहे थे असमय हलचल 

मैंने भी देखा उन्हें

नभ में  

घुमड़ते-इतराते हुए

डराते-धमकाते हुए

आपस में टकराए  

बरस गए

बहकर आ गए 

मेरे पाँव तले

नदी की ओर बह चले

लंबा सफ़र तय करेंगे 

सागर में जा मिलेंगे।  

 ©रवीन्द्र सिंह यादव      

शनिवार, 2 दिसंबर 2023

अँधेरा-उजाला और भूख

चित्र:महेन्द्र सिंह 

रात का काजल कितना काला 

भोर प्रतीक्षा-सा हुआ निवाला  

देती चिड़िया चूजों को आश्वासन

सूरज निकले तब मिलेगा राशन

अनमनी रवीनाएँ ले-ले जम्हाई

बिखरा देंगीं धूप जो है अलसाई

भूख से लड़ने भरेंगे पंख उड़ान

किसके माफिक हुआ है जहान?

©रवीन्द्र सिंह यादव 


शब्दार्थ:

1. निवाला (हिंदी) = कौर,गस्सा,ग्रास 

2. राशन / RATION (English) = खाद्यान्न आदि का निश्चित व नियंत्रित मात्रा में वितरण,रसद (अरबी,फ़ारसी)

3. अनमनी (हिंदी) = बेमन से, अप्रसन्न

4.रवीनाएँ = सूरज की किरणें,रश्मियाँ 

5.जम्हाई (हिंदी)  = उबासी, जागते समय मुँह के खुलने की स्वाभाविक प्रक्रिया,जँभाई (देशज), उच्छ्वास (संस्कृत) 

6. अलसाई (हिंदी) = आलसयुक्त,आलस से भरी, सुस्त

7.माफिक (संस्कृत) = अनुकूल,अनुसार, मुवाफ़िक़ (अरबी) 

8.जहान/जहाँ (फ़ारसी) = संसार,दुनिया,लोक,जगत्


     

सोमवार, 20 नवंबर 2023

झाड़ी और शिशु

झाड़ी हाँफ रही थी 

उस रात 

जब 

ख़ुशी मनाने की सनक

ऐसी कि धमाके की क्रूर ध्वनि  

दूर-दूर तक पहुँचे

ख़ुशी दीवाली की हो 

या मैच जीतने की 

बारूद का धुँआँ 

झाड़ी की पत्तियों के 

स्टोमेटा का

मुख अवरुद्द करता 

कुछ दिन उपरांत 

झाड़ी सूख जाती है 

बारूदी धुँएँ के महीन कण 

मासूम बच्चों के फेफड़ों में 

जबरन धँस जाते हैं 

उनकी तड़प बढ़ा देते हैं

श्वास-प्रश्वास का विधान 

विकृत कर देते हैं 

जिसे सुनकर  

समझदार लोग

एयर प्यूरीफायर लगे घर से 

मुख पर मास्क लगाकर   

बस इतना ही कहते हैं- 

बच्चा भूखा होगा...     

©रवीन्द्र सिंह यादव

शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2023

भीड़

पढ़ा होगा आपने कभी 

नीड़ का निर्माण 

अब पढ़ते रहिए 

भीड़ का निर्माण 

मनोवैज्ञानिक

समाजशास्त्री 

करते रहे शोध 

भीड़ के चरित्र पर 

राजनीति ने लाद दी 

अपनी मनोकामनाएँ भीड़ पर

अंतर में छाए अँधेरों में 

उभरते हैं बिंब लिए उन्मादी उमंगें  

साझा सहमति से उभरती हैं 

विनाश की तीखी तीव्र तरंगें

या किसी और के द्वारा तय 

लक्ष्य की ओर 

मुड़ जाती है भीड़...

क्योंकि 

भीड़ का कोई धर्म नहीं होता 

बुध्दि, विवेक, मर्म नहीं होता।      

©रवीन्द्र सिंह यादव

शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

मदद के लिए गुहार आठ किलोमीटर!

चीख़ती चलती चली गई 

वह किशोरी 

माँगती हुई मदद दर-दर दर्द से कराहती 

पैदल भागती आठ किलोमीटर

उज्जैन का वह पथ 

थी ख़ून से लथपथ 

वह बलात्कार पीड़िता

हाय! फुक गया है 

समाज की संवेदना का मीटर 

एक नेक युवा पुजारी ने 

अनेक किंतु-परंतुओं को 

विराम देते हुए 

पीड़िता की मदद की

खींची लकीर इंसानियत की 

गुफाओं से निकलकर 

भव्य अट्टालिकाओं में आ बसा

आधुनिक स्वार्थी समाज 

संवेदना को मारकर

आज कितना सभ्य हुआ है?

सामाजिक मूल्यों का कैनवास

कितना भव्य हुआ है?

अफ़सोस!

हमारी गुफा में अंधकार

अब और गहरा गया है

हमारे अंतस में घृणा को

किरायेदार बनाकर कोई ठहरा गया है!

©रवीन्द्र सिंह यादव 

सोमवार, 24 जुलाई 2023

दो विवाहित औरतें

 दो विवाहित औरतें

भारत के विखंडन को

आईना दिखा रही हैं,

इतिहास

इन्हें अवश्य याद रखे

यही तो कह रही हैं l

अपने-अपने देशों में

घृणा बढ़ानेवाला इतिहास

मासूम बच्चों को

पढ़ानेवालो सावधान!

सीमा हैदर की

अपने चार बच्चों सहित 

भारत में अवैध घुसपैठ पर

अंजू का वीज़ा के साथ

पाकिस्तान में प्रवेश

नहीं है अंतिम समाधान!

©रवीन्द्र सिंह यादव




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शनिवार, 22 जुलाई 2023

मोर और साँप

 मोर तुम सुंदर हो,

मनमोहक हो,

मृदुल कंठ निराला शबाब है, 

तुम्हारा नृत्य तो लाजवाब है,

तुम साँप खाते हो... 

फिर भी ज़हरीले नहीं!

बोलो कोई जवाब है?

©रवीन्द्र सिंह यादव





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