शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2023

भीड़

पढ़ा होगा आपने कभी 

नीड़ का निर्माण 

अब पढ़ते रहिए 

भीड़ का निर्माण 

मनोवैज्ञानिक

समाजशास्त्री 

करते रहे शोध 

भीड़ के चरित्र पर 

राजनीति ने लाद दी 

अपनी मनोकामनाएँ भीड़ पर

अंतर में छाए अँधेरों में 

उभरते हैं बिंब लिए उन्मादी उमंगें  

साझा सहमति से उभरती हैं 

विनाश की तीखी तीव्र तरंगें

या किसी और के द्वारा तय 

लक्ष्य की ओर 

मुड़ जाती है भीड़...

क्योंकि 

भीड़ का कोई धर्म नहीं होता 

बुध्दि, विवेक, मर्म नहीं होता।      

©रवीन्द्र सिंह यादव

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