शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

उल्टे-सीधे वर्ण पिरामिड


ईवीएम का द्वंद्व 
दल दलदल 
 भोली जनता 
 लोकतंत्र 
चुनाव 
छल 
है? 

है 
दावा  
अपना  
धर्म जाति 
साम्प्रदायिक 
बाण-तूणीर
छलनी  करेंगे 
मतदाता का मान। 
© रवीन्द्र सिंह यादव 

मंगलवार, 22 जनवरी 2019

नारियल और बेर


नारियल बाहर भूरा

अंदर गोरा पनीला,

बाहर दिखता रुखा

अंदर नरम लचीला।


बाहर सख़्त खुरदरा

भीतर उससे विपरीत,

दिखते देशी, हैं अँग्रेज़

है कैसी जग की रीत।


युग बीत गये बहुतेरे

बदला न मन का फेर,

अंदर कठोर बाहर रसीला

मिलता खट्टा-मीठा बेर।


हैं क़ुदरत के खेल निराले

जीवन का मर्म सरल-सा,

दृष्टिकोण और मंथन में

आ रहा उबाल गरल-सा।

© रवीन्द्र सिंह यादव



गुरुवार, 17 जनवरी 2019

सड़क पर प्रसव


वक़्त का विप्लव 

सड़क पर प्रसव 

राजधानी में 

पथरीला ज़मीर 

कराहती बेघर नारी 

झेलती जनवरी की 

सर्दी और प्रसव-पीर 

प्रसवोपरांत 

जच्चा-बच्चा 

अट्ठारह घंटे तड़पे 

शहरी सड़क पर 

ज़माने से लड़ने 

पहुँचाए गए 

अस्पताल के बिस्तर पर

चिड़िया चहचहायी होगी 

विकट विपदा देखकर 

गाड़ियाँ और लोग

निकले होंगे मुँह फेरकर 

हालात प्रतिकूल 

फिर भी टूटीं नहीं 

लड़खड़ातीं साँसें

करतीं रहीं 

वक़्त से दो-दो हाथ  

जिजीविषा की फाँसें   

जब एनजीओ उठाते हैं 

दीनहीन दारुण दशा का भार 

तब बनता है 

एक सनसनीखेज़ समाचार।  

© रवीन्द्र सिंह यादव 

सोमवार, 7 जनवरी 2019

चुनावी दौर


मदारी

एक बार फिर

व्यस्त हैं सजाने में

अपना-अपना पिटारा

कोई सजा रहा है

भव्य भड़काऊ रथ

कोई झाड़ रहा है

अपनी गाड़ी ज़ंग खायी खटारा


पैने हो रहे हैं

सवालों के तीखे तीर

कोई दोहरायेगा

रटे जवाबों की 

घिसी-पिटी लकीर

होगा कोई सॉफ्ट...

कोई एकदम हार्ड...

खेलेगा अभिनय करते

कोई विक्टिम कार्ड


दाल में हो कुछ काला

आस्तीन में साँप काला

है कोई पाला बदलने वाला

या फिर हो घोटाला गड़बड़झाला

कहीं डूबेगी नैया

कहीं खुलेगा क़िस्मत का ताला


अपराधियों-आरोपियों-लम्पटों का

लफ़्फ़ाज़ीमय रंगारंग शो

देख-देख ख़ुद को कोसेगी जनता

कॉरपोरेट-पार्टी-मीडिया

गठजोड़ को अब कौन नहीं जानता


बेरोज़गारों को मिलता 

भरपूर मौसमी काम

नयी सरकार देती जनता को

तोहफ़ा बढ़ाकर चीज़ों के दाम  


चुनावी हिंसा में

कुछ घरों के 

चराग़ बुझाते हुए

गुज़र जायेगा

एक और चुनावी दौर

हम तलाशते रहेंगे

पुनः अपने-अपने

पाँवों के नीचे ठौर।

© रवीन्द्र सिंह यादव


ज़ंग = RUST

शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

महिलाओं का मन्दिर प्रवेश


महिलाओं के 

प्रवेश के बाद 

मन्दिर का 

शुद्धिकरण !

समानता के 

अधिकार से 

ऊपर झूलता है 

आस्था का 

अँधानुकरण !!

भावनात्मक 

तनाव-दोहन

कामयाबी का 

सपाट शार्ट-कट! 

है आसान 

अज्ञानियों पर 

रौब-शासन

भव्यता की आड़ में  

ख़ज़ाना सफ़ा-चट!! 

आस्था की जलावन 

भावना के अलाव में 

सरकायी हर बार! 

रूढ़ियों / वर्जनाओं के 

तोड़कर बैरियर 

बदलती सोच 

अभिमान से 

पहुँची उस पार!!

© रवीन्द्र सिंह यादव  

विशिष्ट पोस्ट

मूल्यविहीन जीवन

चित्र: महेन्द्र सिंह  अहंकारी क्षुद्रताएँ  कितनी वाचाल हो गई हैं  नैतिकता को  रसातल में ठेले जा रही हैं  मूल्यविहीन जीवन जीने को  उत्सुक होत...