शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

सूखा पेड़ काटने हेतु आवेदन ...


माननीया /माननीय  सक्षम अधिकारी महोदया / महोदय (The Tree Officer),
महानगर पालिक निगम / लोक निर्माण विभाग / बाग़वानी विभाग
सदाबहार नगर, नई दिल्ली 1100 **, भारत

विषय: सूखा पेड़ काटने हेतु आवेदन

महोदया / महोदय,

         सविनय निवेदन है कि  हमारी कॉलोनी (जो एक  पॉश कॉलोनी है ) की मुख्य 
सड़क के किनारे उत्तर से दक्षिण की ओर (ब्लॉक- ) जाते हुए दाहिनी ओर मकान  
क्रमांक -125 के बाहर एक बहुत पुराना पेड़ सूख गया है। अब यह पेड़ जानमाल,
वाहनों, कॉलोनीवासियोंमकानों, बिजली के तारों, राहगीरों, बच्चों, पशुओं आदि के 
लिए ख़तरा बन चुका है।
       
         आँधी-तूफ़ान में किसी दिन...!
       
कृपया जनहित में शीघ्र फैसला लेने की कृपा करें। किसी हादसे का इंतज़ार करें।

सधन्यवाद।

दिनाँक : 28 जुलाई 2017

                                                                                               आवेदक
                                                                        समस्त ग्रीन पार्क एन्क्लेव निवासी


संलग्न - 1. सूखे पेड़ के छायाचित्र-4 
                                                    
            2. स्थानीय विधायक की अनुशंसा

            3. स्थानीय निगम पार्षद की अनुशंसा

            4. आर डब्ल्यू अध्यक्ष की अनुशंसा

..................................................................................................................................

1. 
एक दिन
यकायक तेज़ हवा बही
सूखे पेड़ की छाल का सड़ा टुकड़ा
छायाविहीन कुरूप शजर के नीचे खड़ी
लग्ज़री-कार की
छत पर गिरा
नुकसान नहीं हुआ
आवाज़ सुनकर
हुज़ूम घिरा।

2.
 लोगों ने
सूखे पेड़ को
नीचे से ऊपर तक घूरा
किसी ने कहा -
इसका तो अब
हो चुका समय पूरा
कार-मालिक के घर में
चार और महँगी  कारें  हैं
सबकी अपनी-अपनी कारें हैं
चोटिल चॉकलेटी रंग की
उपेक्षित कार के लिए 
घर  में  जगह  की  तंगी  है
शहरों में भौतिकता पसरी है
सहेजते हैं जो चीज़ महँगी है।

3. 
कॉलोनीवासियों को
कर लिया एकत्र
चतुर कार-मालिक  ने
गर्मागरम छिड़ी बहस में
सूखे पेड़ को कटवाने का 
पारित करा लिया प्रस्ताव
अपनी-अपनी राय देते
सयाने ख़ूब खा रहे थे भाव।

4. 
आवेदन लिखने की
बारी आई 
"" बोला -
आजकल
हिंदी बहुत है चर्चा में
समझ नहीं पाएँगे 
अधिकारी
क्या लिखा है पर्चा में
"" बोला -
अर्ज़ी का मज़मून
समझ नहीं आता है जब
सरकारी अमला करता है
कार्रवाई अति शीघ्र तब
"" बोला -
हिंदी में
असरदार आवेदन
लिखेगा कौन ?
"" बोला -
व्हाट्सएप पर
मेसेज़ घुमाते हैं
हिंदी-गुरु को बुलाते हैं
"" ने कहा -
गूगल से
तर्जुमाँ करवाते हैं
"" बोला -
क्या अर्थ का
अनर्थ करवाना है ?
"" ने पूछ लिया -
इस पेड़ का नाम क्या है ?
अलंकरणविहीन वृक्ष का नाम.....?
कोई उत्तर नहीं मिला....
पेड़  की  पहचान
तो क्या पत्ते,फूल-फल, बीज होते हैं?

5. 
तलाश पूरी हुई
अर्ज़ी  तैयार हुई
रौब से
अँग्रेज़ी में किए 
सबने हस्ताक्षर
मोती / जलेबी  जैसे
आँग्ल-भाषा-आखर 
आवेदन चला
कार में होकर सवार
साथ  चले 
युवा उत्साही दो-चार।

6. 
ऑपरेशन की
देख-सुन तैयारी
सहमा सूखा-सिकुड़ा
बे-नूर दरख़्त
हुआ बहुत बेचैन
तेज़  हवा  को
कोसता कहता-
है तेरी ही यह देन
चहुँओर घिर आई 
विकट निराशा को
नहीं पा रहा खदेड़
अतीत की स्मृतियों में
खो गया सूखा  पेड़।

7. 
मैं एक नर्सरी में
अँकुरित  हुआ
सलोनी धूप पाकर
 विकसित हुआ
एक क़द्र-दान--क़ुदरत
ले आया था अपने घर
रोपा था उसने
खिली तबियत से
घर के बाहर
पहुँच पशुओं की 
हो मुझ तक
ईंटों का मेरे आसपास 
घेरा बनाया जालीदार
खाद-पानी देता
छिड़कता दवा दीमकमार
लाता गुड़-गोबर
सूखी पत्तियों का कम्पोस्ट
अब कहाँ मिलेगा
वो प्यारा हमदर्द दोस्त?

8. 
मैं बड़ा होने लगा
वो मेरी
बेडौल शाख़ों की
छँटाई करता
मुझे रूपवान होता देख
आल्हादित होता गया
आहिस्ता-आहिस्ता
मैं गबरू जवान हो गया।

9. 
डालियाँ  फैलीं
इठलाकर तनकर
करने लगीं गुफ़्तुगू 
नीले अम्बर से
तना तनते-तनते
सख़्त और चौड़ा हो गया
पत्तियाँ घना साया लेकर
आच्छादित हुईं
साँझ की धूप
मुझपर ठहरती
मानो ढका हूँ
पीले अम्बर से।

10. 
धूप-चाँदनी
बादल-घटाएँ,
फ़लक  से ज़मीं तक
छाने लगीं
चँचल फ़ज़ाएँ  
झूमती डालियों की
आहें-अदाएँ
सुनहरी कोंपलों की
 नज़ाकत भरी हलचल
पशु-पक्षी
कीट-पतंगों
और इंसान को
रिझाने  लगीं
फ़सल--बहार की
मनोरम आहटें
लुभाने लगीं
नाज़--अंदाज़ से 
इतराता 
मेरा अनुपम सौंदर्य
हसीं साज़-सा 
बजता
कोंपलों-पल्लवों का
रसमय माधुर्य
मुझे आत्ममुग्ध करता।

11. 
मुझे पाल-पोशकर
बड़ा करने वाला
एक दिन
कहीं और रहने
चला गया
कुछ वर्ष पहले
मेरे साथ सेल्फ़ी ले गया
वर्षों से देखा नहीं
पता नहीं उसे क्या हुआ
करता हूँ उसके
चंगे रहने की
दिन-रात दुआ।


12. 
मैं गवाह हूँ
बहुतेरे खट्टे-मीठे
कसैले क़िस्सों का
मेरे साये  में
चैन से बैठकर
कितनी मौलिक कहानियाँ
कही गईं 
प्यार और दर्द के
अनसुने अफ़्साने सुने
वेदना से कराहते
लोगों की आहें-चीख़ें 
सोचो!
मुझसे कैसे सही गईं...!

13. 
मेरी छाँव में
कभी चोर अपना
हिसाब लगाता था
ट्रैफ़िक-पुलिस का सिपाही
जनता से लूटी
कमाई गिनता था   
कभी कोई साधनहीन 
रोटी को व्याकुल
रोज़ी की आस लिए  
बैठता था
तो कोई
नंगे पाँव
तवा-सी तपती
सुनसान सड़क पर
सरपट चलकर आता 
छाया में सुकून पाता था
बस्तियाँ आबाद हुईं मेरे साथ
कितनों ने पींगें बढ़ायीं झूलों पर
कितने मर-मिटे डटे रहे अपने उसूलों पर 
अगाध श्रद्धा ने बाँध दिये कितने रंग-बिरंगे धागे
मनौती के साथ "वृक्ष-देवता" का मान-सम्मान  देकर
देता रहा हूँ ठंडक अनवरत बिना बल बिजली लेकर
सबको मुफ़्त में दी ऑक्सीजन प्राणवायु
ख़ुद ग्रहण की ज़हरीली
कार्बन-डाई-ऑक्साइड
हों  सभी सर्वथा दीर्घायु

14. 
साक्षी हूँ समय का
बढ़ती पीढ़ियों का
निर्विवाद इतिहास
मुझसे आकर पूछो
सभ्यता की सीढ़ियों का
दफ़्न हैं मेरे सीने में
कई राज़
ज़ुल्म--दुर्घटनाओं के
संगीन जुर्म--वारदात के
उत्सव-समारोहों के 
आम--ख़ास के  
जन्म--जनाज़ों के   
पुलिस की तफ़तीश में
मेरा ज़िक्र होता है
क़ानून भी अब
मेरी रखवाली का
भार ढोता है।

15. 
हे मनुष्य
तुम कितने ख़ुद-ग़रज़ हो ?
अपने हित-लाभ के लिए  
रोपते-सहेजते हो मुझे
अपनी सहूलियत-सुविधा हेतु  
बेरहमी से उजाड़ते हो मुझे।

16. 
आज भी घर लौटते
थकानभरी
लंबी उड़ान से हाँफते
 हारे-थके पक्षी
मेरी सूखी जर्जर काया पर
विश्राम करते हैं
बग़ल में हरे-भरे वृक्षों में
घात लगाये छिपे
शिकारियों के डर से
लरज़ते हैं।

17. 
घरघराती आवाज़ के साथ 
एक ट्रैक्टर आकर रुका
कुछ आदमी उतरे
रस्सी, कुल्हाड़ी, आरी, दराँती लिए  
"लकड़ी तो काम की है!"
कसाई-निगाहों से
सूखे पेड़ को कूतते हुए
एक ने कहा
और दूसरे ने
तने को ज़ोर से थपथपाया
थर-थर काँपा बेचारा
देख नज़ारा
सूखा पेड़ 
सपने से बाहर आया।

18. 
कटते-कटते
कराहते हुए
सोच रहा है
बे-बस सूखा पेड़ -
मुझमें अब भी
बाक़ी है आग ही आग
लकड़ी आएगी काम
संसार की भलाई में
वर्षों छिपी रहेगी आग
मेरी लकड़ी से बनी
दिया-सलाई में
मेरी लकड़ी से
बनी गर कुर्सी-मेज़
तो कुर्सी पर
बैठने वाला
एक ऐसा भी होगा
जिसका ज़मीर
ज़रूर जागेगा
उठाएगा मेज़ से
 कागज़-क़लम और लिखेगा-
कविता, कहानी, लेख, उपन्यास, वार्ता, ख़बर ,
रेखाचित्रग़ज़ल, निबंधनज़्मनाटक...
जिनमें संवेदना  की चाबियाँ 
खोलेंगीं वृक्षों को  रोपने / सहेजने  के  लिए  
आदमी  के  दिमाग़  के  ताले और फाटक...

19. 
हे परमात्मा !
सुनो मेरी निदा 
सुनो मेरी जुस्तुजू
नादान मनुष्य को 
माफ़ करना...!
मुझ मजबूर मूक जीव ने...
इच्छा-मृत्यु  के लिए...
कभी अप्लाई नहीं किया था...!

 ©रवीन्द्र सिंह यादव 

इस रचना का नाट्य रूपांतर (काव्य-नाटिका) अनीता लागुरी 'अनु' जी, आँचल पाण्डेय जी के साथ मेरे स्वर में प्रस्तुत किया गया है। 
YouTube.com पर देखने-सुनने के लिए लिंक-


सूखा पेड़ काटने हेतु आवेदन

#सूखा_पेड़_काटने_हेतु_आवेदन : #काव्य_नाटिका






4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-11-2019) को    "आज नहाओ मित्र"   (चर्चा अंक- 3517)  पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।  
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. एक कविता जिसमें एक सूखा पेड़ अपनी मार्मिक आत्मकथा कहता है। रविंद्र जी! कमाल है इस कविता का जो एक आवेदन-पत्र से आरम्भ होकर जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का विस्तृत वर्णन करते हुए अंत में 'इच्छा मृत्यु' जैसे पेचीदा विषय पर संवेदनशील विचार पेश करती है। लाजवाब सृजन के लिये बहुत-बहुत बधाई आपको। ऐसी ही अनेक रचनाओं के सृजन की आशा है आपसे जो साहित्य को अधिक समृद्ध कर सकें। कविता लंबी ज़रूर है किंतु पाठक को मर्म की तह तक ले जाती है।

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  3. आदरणीय सर सादर प्रणाम 🙏
    बूढ़े बरगद के माध्यम से आपकी यह कविता कितने ही संदेशों को पाठक तक पहुँचा रही है। अक्षरों के माध्यम से वर्तमान में ' हिंदी ' की दशा, आधुनिकता के रंग,वृक्षा का महत्व,जीवन चक्र, इच्छा मृत्यु आदि कितने ही विषयों पर आपकी यह रचना प्रकाश डाल रही। वाह! अद्भुत,उत्तम,लाजवाब सृजन। सराहना के परे आपकी इस रचना हेतु आपको हार्दिक बधाई और कोटिशः प्रणाम 🙏

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  4. हृदय स्पर्शी सृजन.
    सादर

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