साहित्य समाज का आईना है। भाव, विचार, दृष्टिकोण और अनुभूति का आतंरिक स्पर्श लोकदृष्टि के सर्जक हैं। यह सर्जना मानव मन को प्रभावित करती है और हमें संवेदना के शिखर की ओर ले जाती है। ज़माने की रफ़्तार के साथ ताल-सुर मिलाने का एक प्रयास आज (28-10-2016) अपनी यात्रा आरम्भ करता है...Copyright © रवीन्द्र सिंह यादव All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
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मूल्यविहीन जीवन
चित्र: महेन्द्र सिंह अहंकारी क्षुद्रताएँ कितनी वाचाल हो गई हैं नैतिकता को रसातल में ठेले जा रही हैं मूल्यविहीन जीवन जीने को उत्सुक होत...
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मानक हिंदी और आम बोलचाल की हिंदी में हम अक्सर लोगों को स्त्रीलिंग - पुल्लिंग संबंधी त्रुटियाँ करते हुए ...
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कविता! तुम्हें फिर ज़िंदा होना होगा घृणा का सागर पीने हेतु प्रेम और वैमनस्य के बीच बनना होगा पुनि-पुनि सेतु पथराई संवेदना पर बिछानी होगी...
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चित्र:महेन्द्र सिंह सर्दी तुम हो बलवान कल-कल करती नदी का प्रवाह रोकने भर की है तुम में जान जम जाती है बहती नदी बर्फ़ीली हवाओं को तीखा ब...
आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )
जवाब देंहटाएं'बुधवार' १८ मार्च २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/03/blog-post_18.html
https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'