बुधवार, 13 नवंबर 2019

एहसासात का बे-क़ाबू तूफ़ान







दिल में आजकल 

एहसासात का  

बे-क़ाबू तूफ़ान 

आ पसरा है, 

शायद उसे ख़बर है 

कि आजकल 

वहाँ आपका बसेरा है।



ज़िंदगी में 

यदाकदा 

ऐसे भी मक़ाम आते हैं, 

कोई अपने ही घर में 

अंजान बनकर 

सितम का नाम पाते हैं।



कोई किसी को 

भूलता कहाँ है 

दर्द, गिला, ख़ता

यादों का सिलसिला

 हिज्र में नूर-ए-सहर है,

ज़िंदगी का यक़ीन 

मोहब्बत से ही तो हसीं है 

ज़माना कहता रहा 

कल से आज तक 

इक़रार का एतिबार 

पहर-दर-पहर है।  


ग़ुरूर तो पालो ज़रूर 

वक़्त गुज़रता है 

संग-ए-याद पर 

लिखती जाती है 

मख़मली उल्फ़त की कहानी,

चमन में उम्मीदों के ग़ुंचे

खिलते हैं बहार के इंतज़ार में 

फ़ासले बढ़ जाते हैं 

फ़साना-ए-दिल में ज़िक्र के लिए  

बचती है कसक की निशानी। 

© रवीन्द्र सिंह यादव 


15 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! आदरणीय रवींद्र जी वाह ! शब्दों की गरिमा का ध्यान रखना तो कोई आप से सीखे। क्या लिखा है ,ज़िन्दगी में 
    यदाकदा 
    ऐसे भी मक़ाम आते हैं, 
    कोई अपने ही घर में 
    अंजान  बनकर 
    सितम का नाम पाते हैं।
    आप के शब्द नहीं भाव बोल उठते हैं। सलाम आपके लेखनी के ज़ज्बे को। सादर 'एकलव्य' 

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह!
    बेहद खूबसूरत आदरणीय सर।
    सादर नमन 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. मुकेश का गाया हुआ एक बहुत ही मक़बूल नगमा है -
    'दिल जलता है तो जलने दे,
    आंसूं न बहा, फ़रियाद न कर ---'
    इस नग्मे पर अमल कीजिएगा तो अश्क़ बहने की परेशानी से आप निजात पा सकेंगे.

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!!रविन्द्र जी ,क्या बात है ,सुंदर भावाभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन सृजन आदरणीय.
    शब्द और अभिव्यक्ति लाज़बाब है.
    कल-कल झरने से बहते भाव यथार्थ को इंगित करते.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  7. चमन में उम्मीदों के गुंचे.. खिलते हैं बहार के इंतजार में"
    वाह बहुत ही बेहतरीन पंक्तियां वैसे तो कलम को आप रोज तकलीफ नहीं देते हैं... पर जब भी कलम को तकलीफ देने की शुरुआत करते हैं ! हमेशा एक खूबसूरत सी कविता बन ठन कर नये कलेवर में सामने आ जाती है हमेशा की ही तरह सुंदर भाव का प्रदर्शन करती हुई बेहतरीन रचना..!

    जवाब देंहटाएं
  8. जी बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना।बेहतरीन व खूबसूरत।

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन और लाजवाब सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  10. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-11-2019) को     "हिस्सा हिन्दुस्तान का, सिंध और पंजाब"     (चर्चा अंक- 3522)    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।--डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  11. चमन में उम्मीदों के गुंचे

    खिलते हैं बहार के इंतज़ार में

    फ़ासले बढ़ जाते हैं

    फ़साना-ए-दिल में ज़िक्र के लिये

    बचती है कसक की निशानी। ... वाह क्या खूब ल‍िखा है रवींद्र जी

    जवाब देंहटाएं
  12. दिल में आजकल
    एहसासात का
    बे-क़ाबू तूफ़ान
    आ पसरा है,
    शायद उसे ख़बर है
    कि आजकल
    वहाँ आपका बसेरा है।
    रचना की सभी पंक्तियाँ बहुत प्यारी और भावनाओं से भरी हैं । एक उदास मन का अपने आप से संवाद है ये रचना ,जो सघन भावनाओं से निकला मोती हैं। आपके चिरपरिचित अंदाज में इस भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें आदरणीय भाई रविंद्र जी। सादर 🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं

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