बुधवार, 31 जनवरी 2018

बसंत (हाइकु )







छाया बसंत 
है बसंत-बहार 
मुदित जिया 


महका बाग़ 
चहकी कली-कली 
कूकी कोयल 



बौराये आम 
फूली पीली सरसों 
हँसे किसान  

मस्त फ़ज़ाऐं 
गुनगुनी है धूप 
हरे शजर 

ढाक-पलाश 
सुर्ख़ हुआ जंगल 
महके फूल 







खिला बाग़ीचा 
फूलों पे चढ़ा रंग
रंगी है भोर

दिल की लगी 
यक़ीं-वफ़ा के गीत 
भाये मन को  

सूनी है साँझ
चंदा चुपचाप क्यों
रोया चकोर 

बुझते दिये 
मायूसियों के साये 
आ जाओ पिया 

# रवीन्द्र  सिंह यादव 


रविवार, 28 जनवरी 2018

पुस्तक समीक्षा:प्रिज़्म से निकले रंग


https://swetamannkepaankhi.blogspot.in/2018/01/blog-post_26.html

पुस्तक समीक्षा:प्रिज़्म से निकले रंग


 ISBN978-93-86352-79-8 


पुस्तक समीक्षा

काव्य संग्रह-प्रिज़्म से निकले रंग


कवि         -  रवीन्द्र सिंह यादव

प्रकाशक     - ऑन लाइन गाथा
मूल्य          - ५० रुपये

                     ISBN978-93-86352-79-8 



"रवीन्द्र जी की मौलिक रचनाएँ"
रवीन्द्र जी बहुत ज़्यादा नहीं लिखते, बे-वजह नहीं लिखते हैं पर जो भी लिखते हैं  उसमें कुछ न कुछ सार्थक संदेश अवश्य छुपा होता है।
उनकी लेखनी के प्रिज़्म से निकल कर शब्द किरणें इंद्रधनुषी रंग की कविताओं में बदल गयीं। जीवन के विविध रंगों को समेटे आदरणीय "रवीन्द्र सिंह यादव" जी की पहली कृति "काव्य-संग्रह" में  उनकी अभिव्यक्ति अनुपम छटा बिखेर रही है। मौलिकता और सौम्य भावों से लबरेज़ समाज के चिंतनीय विषयों को हर कविता छूती नज़र आती है।
प्रकृति,अतीत और वर्तमान में अद्भुत साम्य कवि की विराट सोच को दर्शाता है।


इस कविता संग्रह में कुल ३४ रचनाएँ हैं जिनमें जीवन के हर रंग को उकेरा गया है।

सर्वप्रथम माँ वागीश्वरी की सुंदर प्रार्थना में समाहित भाव माँ के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित कर लोककल्याणकारी भाव मुखर होकर कवि के विचारों की उत्कृष्टता का एहसास करा जाते हैं। जब वो कहते है-

हे   माँ !
उन   मस्तिष्क   का  विवेक
जाग्रत   रखना
जिनकी   अँगुलियों   को
भोले  जनमानस   ने
परमाणु - बटन   दबाने  का  अधिकार  सौंप  दिया  है ,


माँ वीणा वादिनी से यह कहना कि -

उन  दीन -दुखी , निबल, जर्जर   को  संबल  देना

जो       मूल्यों     की     धरोहर     सहेजे  हैं,

निज स्वार्थ से ऊपर उठकर सर्व मंगल-मांगल्य की भावना से भरी यह प्रार्थना सही मायने में एक सदविचारयुक्त प्रार्थना है।
           संपूर्ण नारी जाति को सम्मानीय और सर्वोच्च शिखर पर बिठाकर पूजने वाले,औरतों की तरफ़ से उनकी समस्याओं पर गंभीर सवाल करते,उनकी दयनीय दशा पर तीखे व्यंग्य करते बेहद प्रभावशाली-  
"सिर्फ़ एक दिन नारी का सम्मान शेष दिन.....?" गद्य और पद्य की  मिश्रित शैली में  महिला दिवस के अवसर पर लिखी गयी रचना विचारणीय है।
औरतों पर हो रहे अत्याचारों से मन को विचलित करती रचना-
 "मैं वर्तमान की बेटी हूँ " में -
बेटी   ख़ुद   को  कोसती   है,
विद्रोह   का  सोचती    है ,
पुरुष-सत्ता  से  संचालित  संवेदनाविहीन  समाज  की ,
विसंगतियों  के   मकड़जाल  से   हारकर ,
अब  न लिखेगी   बेटी -
"अगले  जनम  मोहे   बिटिया  न  कीजो  ,
  मोहे    किसी    कुपात्र     को   न  दीजो  "।
ऐसी भावपूर्ण पंक्तियाँ  कवि के  संवेदनशील मनोभाव को इंगित करते हैं।
और "ममता" भी सोचने पर मज़बूर करती है जिसमें स्त्री-सुलभ गुणों से परे जाती एक स्त्री का ज़िक्र है।
        देशभक्ति के  जज़्बे से भीगी हुई "सैनिक", "सैनिक की जली हुई रोटियाँ" में -
हमने  तो  सिर्फ़
अपना  मन  मसोस  लिया,
ख़ुद  को तिलमिला  लिया,
राष्ट्रीय-सुरक्षा   के  गंभीर  सवालों  से,
ख़ुद   को  खदबदा  लिया।

एक आम जन की बे-बसी को शब्द देती रचना आम पाठक के मन तक पहुँचती है।
इन रचनाओं में जहाँ सैनिकों की पीड़ा को बारीकी से बुना गया है वहीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की देशभक्ति और और उनकी  मृत्यु के रहस्य पर अनेक प्रश्न पूछती विचारणीय कविता भी मौजूद है जिसकी पंक्तियाँ हैं-

स्वतंत्रता  का  मर्म  वह  क्या  जाने,  
जो  स्वतंत्र  वातावरण  में  खेला   है,  
उस   पीढ़ी   से  पूछो! 
जिसने   पराधीनता   का  दर्द   झेला   है!! 

      इतिहास और वैदिक साहित्य जैसे अछूते विषय पर कविता लिखना आसान नहीं कवि की सृजनशीलता और बेबाक लेखन "जलंधर" में मुखर हो जाती है।
"जलंधर"एक पौराणिक पात्र के माध्यम से चमत्कृत करती शैली में बेहद सराहनीय रचना जिसे बार-बार पाठकों को पढ़ने का मन करे। कुछ ख़ास पंक्तियाँ-
                          
                                  सहज     संतुलन   सृष्टि    का
रखने   को    विष्णु- लीला   है 

पीते-पीते   तीक्ष्ण     हलाहल

शिव- कंठ  अभी  तक नीला है

छल, दम्भ, झूठ, पाखण्ड सभी 

छाये   हैं    सत्य    दबाने    को 

आज  जलंधर   फिर  आया  है

हाहाकार      मचाने         को।


"आज   जलंधर   फिर  आया  है" एक लंबी कविता होने के बाबजूद कहीं लय नहीं टूटती यही ख़ासियत है कवि की शैली की।

"प्रकृति" , "उत्सव","जीवन की विसंगतियों पर लिखी रचनाओं में जहाँ एक ओर जीवन के ख़ूबसूरत रंग हैं वहीं सामाजिक ढाँचे और वर्तमान परिदृश्य से रोष भी जताया है। जहाँ होली और बसंत के माधुर्य से भरी शब्द रचना सुंदर कल्पनालोक की परी कथा जैसे कोकिल तान मन में रागिनी घोलते हैं  वहीं कविता के अंत तक आते-आते कवि यथार्थ का आईना दिखलाना नहीं भूलते। कहीं-कहीं यथार्थ कविता की कल्पनाशीलता और  उसके माधुर्य पर हावी हो जाता  है जो कि पाठक को अटपटा लग सकता है। इनकी लगभग हर कविता में एक सार्थक चिंतनशीलता और संदेश दृष्टिगोचर होता है।

"नोटबंदी", "पूँजीवाद का शिकंजा" कविताओं में गंभीर सामाजिक और समसामयिक चिंतन और ज्वलंत प्रश्न करते संवेदनशील कविमन की विह्वलता समाज के एक जागरूक बुद्धिजीवी वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है।

"ओस" कविता में एक बच्ची के कौतुक को शांत करते आधुनिक परिवेश का चित्रण करते हुये जब कहते हैं-



सवालों-जवाबों  के  बीच  पहुँचे  पार्क,


चमका   रही    थीं  ओस - कणों   को,


भोर           की     मनहर      रवीना,


           ये   क़ुदरत   के आँसू   हैं  या  पसीना........?


तो ओस की बूँदें अनायास ही नगीने-सी आँखों के सामने छा जाती हैं।

                                   संवेदना शून्य होते समाज  का/ यह  सच/ अब   किसी   आवरण   में  नहीं   ढका   है /अंतर्मन  आज    सोच-सोचकर   थका    है,/  अपनी   ही  लाश  ढोता  आदमी/  अभी   नहीं  थका   है।
पिता" के लिए लिखी गयीं इन पंक्तियों में भावनाओं की सरिता में गोते लगाने से आप ख़ुद को नहीं रोक पायेगें।


गद्य और पद्य की  मिश्रित शैली में लिखी एक बेहद दिलक़श कविता जो किसी भी दिल को छू ले -

लोग  ढूँढ़ेंगे   दर्द-ओ-सुकूं   

मोहब्बत  की इस  निशानी  में,

देखने   आएगी  दुनिया  

साहिल -ए -जमुना खड़ा  है  ताज  वहां । 

मुंतज़िर  है   कोई  

सुनने      को      मेरे     अल्फ़ाज़   वहाँ ।   


         ये रचना निश्चय ही आप के जे़हन से दिल की वादियों में उतर जायेगी  आपके होंठ अनायास ही गुनगुना पड़ेंगे।

"फूल से नाराज़ होकर तितली सो गई", "ये कहाँ से आ गयी बहार है", "धीरे-धीरे ज़ख़्म सारे अब भरने को आ गये", "दोपहर बनकर अक्सर न आया करो", "नयी सुबह" जैसी कई  कविताएँ हैं  जिन्हें आप गुनगुनाये बिना नहीं रह सकेंगे। उर्दू के शब्दों का कलात्मक प्रयोग कविताओं के लालित्य में चार चाँद लगाता है। पाठकों की सुविधा का ध्यान रखते हुये उर्दू / हिंदी के कठिन शब्दों के अर्थ भी कवि ने लिखे हैं  ताकि एक आम पाठक रचनाओं का आस्वादन आसानी से कर सके। छंदात्मक और मुक्त छंद शैली में लिखी  गयीं कविताएँ सहज पाठक को आकर्षित करती हैं।
"विश्वास" और "अप्रैल फूल" में राजनीति के धुंरधरों का चरित्र-चित्रण व्यंगात्मक लहज़े में बेहद सटीक है। बेबाकी से सत्य लिखना कवि की निडरता और साहसी होने का परिचायक है।

अंत के भागों में हमारे दैनिक जीवन में आसपास बिखरे पात्रों पर रची गयी "मैं मजदूर हूँ", "मदारी" "लकड़हारा"और "बहुरुपिया" जैसे विरल विषयों पर लिखना आसान नहीं,निश्चय ही कवि की सूक्ष्म दृष्टि सराहनीय है।

कुल मिलाकर विविध विषयों पर सराहनीय शब्द रचना लिये रवींद्र जी की पुस्तक साहित्य प्रेमियों और समाज के लिए अमूल्य उपहार हैं।
कृपया आप भी अवश्य इन सारगर्भित कविताओं का आस्वादन करें।

  

यह ई-बुक ऑनलाइन गाथा के उपलब्ध कराये बुक स्टोर्स पर आसानी से खरीदा जा सकता है। 
इस लिंक पर खरीदने की पूरी जानकारी उपलब्ध है।

शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

"प्रिज़्म से निकले रंग" भाग 1


आपको यह सूचना देते हुए मन हर्षित है कि ऊपर दिया गया लिंक लेखक के तौर पर मेरे प्रथम काव्य संग्रह "प्रिज़्म से निकले रंग" का है जिसे ऑनलाइनगाथा पब्लिकेशन की ओर से प्रकाशित किया गया है। 
  
अधिक जानकारी के लिये नीचे दिया गया लिंक क्लिक कीजिये -


Prism Se Nikle Rang

बुधवार, 17 जनवरी 2018

चाहा था एक दिन ...

माँगी थीं 
जब बिजलियाँ,  
उमड़कर 
काली घटाएँ आ गयीं। 

देखे क्या जन्नत के 
दिलकश ख़्वाब,
सज-धजकर  
गर्दिश की बारातें आ गयीं।  

चाही हर शय 
हसीं जब  भी, 
बेरहम हो 
आड़े 
वक़्त की चालें आ गयीं। 

इंतज़ार था 
कि आँखों से बात हो, 
तिनकों के साथ 
ज़ालिम हवाऐं आ गयीं। 

दर्द-ए-जिगर से 
राहत माँगी थी एक दिन 
नश्तरों की ज़ख़्म पर 
बौछारें आ गयीं।   

चाहा था एक दिन 
पीना ठंडा पानी ,
लेकर वो तश्तरी-ए-अश्क़ में 
सुनामी लहरें आ गयीं।  

# रवीन्द्र सिंह यादव 

रविवार, 14 जनवरी 2018

कोई रहगुज़र तो होगी ज़रूर ....


चलते-चलते 

आज यकायक 

दिल में 

धक्क-सा हुआ 

शायद आज फिर 

बज़्म में आपकी 

बयां मेरा अफ़साना हुआ



फ़क़त मेरे दिल में हों 

बेताबियाँ 

ऐसा भी तो नहीं 

ख़्वाब में आप भी 

कूचा-कूचा 

तलाशते हो मुझे 



राहत की बात है 

हमने अब तक 

कुछ तो बचाये रखा है 

चिलमन में 

लेकर ख़्याल मेरा 

न झाँकना आईने में 

शैदा ख़ुद पे होने से 

ख़ुद को 

कैसे रोक पाओगे .....?



मुतमइन बैठा हूँ 

मैं तो घने पेड़ की छाँव में 

डूबने को जब सूरज हो 

सुनसान राहों पर 

ख़ुद को बचाकर चलना

कोई रहगुज़र-ए-दिल   

तो होगी ज़रूर 

जो ले आएगी मुझ तक.........?  

#रवीन्द्र सिंह यादव 


शब्दार्थ / WORD  MEANINGS 

1.  यकायक = अचानक / All of a sudden 
2.  बज़्म= गोष्ठी ,महफ़िल / Meeting , Feast 
3.   फ़क़त= सिर्फ़ / Only 
4.  कूचा= गली / Lane , Narrow Street 
5.  चिलमन= पर्दा ,Curtain 
6.  शैदा= मुग्ध,आसक्त  / Enamored  
7.  मुतमइन = संतुष्ट ,शांतचित्त, Satisfied, Secure,Quiet 
8.  रहगुज़र-ए-दिल =  दिल तक पहुँचने वाली राह / Path Of  Heart 
     


सोमवार, 8 जनवरी 2018

हवा गर्म हो रही है....


कैसा दौर आया है
आजकल
जिधर देखो उधर
हवा गर्म हो रही है
आया था चमन में
सुकून की साँस लेने
वो देखो शाख़-ए-अमन पर
फ़ाख़्ता बिलख-बिलखकर रो रही है।

दोस्ती का हाथ
बढ़ाया मैंने फूलों की जानिब
नज़र झुकाकर फेर लिया मुँह
शायद नहीं है वक़्त मुनासिब
सितम दम्भ और दरिंदगी के 
सर चढ़कर बोल रहे हैं
पगडंडियों की रेत
अंगारे सर्दियों में हो रही है।

ये ज़र्द सितारे
जो फ़लक से आ गिरे हैं 
ज़ख़्मी ज़मीं पर 
आओ इनमें रौशनी की
शाश्वत किरण ढूँढ़ते हैं
इंसानियत के सूखते
समुंदर में
देखो फिर बरसात हो रही है... !!!
#रवीन्द्र_सिंह_यादव 

शब्दार्थ / Word Meanings -
1. दौर = समय ,युग ,परिधि  / Era ,Age ,Circumference 
2. चमन = फूलों की बग़िया / Flower Garden 
3. सुकून = शान्ति ,चैन ,आराम, निस्तब्धता / Peace ,Rest, Feel Good,                   Tranquility  
4. साँस  = श्वांस, / Breath 
5. शाख़-ए-अमन= शान्ति की डाली / ऐसी शाखा जिस पर शान्ति हो,                               जीवन रूपी  वृक्ष में शान्ति एक शाखा है / Bough of peace
6. फ़ाख़्ता= शांति का प्रतीक कबूतर / कबूतरी  / Dove 
7. जानिब= ओर, तरफ़, सू  / Towards, Side, From, Direction 
8. वक़्त= समय / Time 
9. मुनासिब = उपयुक्त,सही, उचित / Suitable , Proper 
10. सितम= अत्याचार, ज़ुल्म, अन्याय / Injustice ,Outrage ,Oppression
11. दंभ = अहंकार, दर्प, घमंड, मद / Ego 
12. दरिंदगी = ख़ौफ़नाक आचरण ,वहशीपन ,पाशविक आचरण/               Barbarism, Bestiality 
13. सर चढ़कर बोलना = जिसे किसी प्रकार से छिपाया न जा सके / 
Tough to hide 
14. पगडंडियाँ = पैदल चलने के लिए सँकरे रास्ते / 
Foot Paths, By-Ways 
15. रेत = बालू / Sand 
16. अंगारे= शोले / Heated Coals 
17. ज़र्द = पीला / Yellow, Pale 
18. फ़लक = आकाश, नभ, आसमान / Sky ,Heaven 
19. ज़ख़्मी = घायल, चोटिल / Wounded, Hurt 
20. ज़मीं = धरती, धरा, पृथ्वी / Earth, Land 
21. शाश्वत= न मिटने वाला, जो सदा से चला आ रहा हो / Eternal,                             Ageless 
22. इंसानियत = मानवता / Humanity 

23. समुंदर = समुद्र, सागर  / Sea 

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