पृथ्वी की उथल-पुथल
उलट-पलट
कंपन-अँगड़ाई
परिवर्तन की चेष्टा
कुछ बिखेरा
कुछ समेटा
भूकंप
ज्वालामुखी
बाढ़
वज्रपात
सब झेलती है
सहनशीलता से
धधकती धरती
जीवन मूल्यों की
फफकती फ़सल
देख रहा है
आकाश मरती
पत्थर का कोयला
बनने में
पेड़ों को
करोड़ों वर्ष लगे
ओस को देखो
गेंहूँ की हरी पत्तियों पर
सुबह-सुबह सत्य-सी
धूप बढ़ते-बढ़ते
चेतना अदृश्य-सी
मानव रे!
तुम्हारा
कोई हिसाब है...
जीते जी
तुम्हें
पत्थर होने में
कितने वर्ष लगे?
©रवीन्द्र सिंह यादव