शनिवार, 28 मार्च 2020

21 दिवसीय लॉक डाउन के बाद कराहती मानवता

चल पड़े हो
तो कट ही जाएगा
धीरे-धीरे दुरूह सफ़र,
विचलित है हृदय
देखकर
21 दिवसीय लॉक डाउन के बाद
घर की ओर जाते
पैदल ग़रीबों की ख़बर। 

कमाल की हिम्मत है
हालात और
कोरोना वायरस से लड़ने की,
तुम्हें कौन समझाए
नियम-क़ानून, जुगत
महामारी से लड़ने की। 

तुम हो भारत की
तथाकथित शान,
सरकार के समक्ष
अपनी बेबसी का
क़िस्सा न सुनाकर
बचाए रखते हो
अपना अमूल्य स्वाभिमान। 

हो तुम वंचित
साधनहीन सर्वहारा
ग़रीब मेहनतकश,
तुमसे समाज का
साधनसंपन्न वर्ग
हद तक नफ़रत करता है
तड़कती है उसकी नस-नस। 

तुम्हें मिलनेवाली
सरकारी राहत का
विरोध करता है
कहता है-
तुम बोझ हो पृथ्वी पर 
तुम गंदगी-बीमारी-अपराध
फैलाते हो,
अर्थव्यवस्था पर
बोझ बढ़ाते हो। 

और हाँ!
मैं भी तुम्हारी
नशाखोरी, अशिक्षा
जनसंख्या वृद्धि
अनावश्यक शौक
ग़ुलामी की आदत
फिज़ूलख़र्ची की प्रवृत्ति से 
बहुत चिढ़ता हूँ,
मन ही मन ख़ूब कुढ़ता हूँ। 

आज मैं लानत भेजता हूँ
सरकार
एनजीओ
समाजसेवियों
तथाकथित
देशभक्तों को
विदेश में फँसे
भारतियों को लाने हेतु
हवाई जहाज़ उपलब्ध है,
अफ़रातफ़री के माहौल में
घरों को लौटते
सैकड़ों किलोमीटर के
दुस्साहसी सफ़र पर 
महानगरों से पैदल निकले
बच्चे, बूढ़े, जवान
कँधों पर लादे बच्चे-सामान
इन्हें पुलिस का
डंडाराज उपलब्ध है। 

मत चलना 
सरकारी सड़क पर
सड़क छील देगी
पाँवों की खाल
पुलिस उधेड़ देगी
भूखे-सूखे तन की चमड़ी,
क्योंकि तुम्हारे पास नहीं है
धेला-दमड़ी। 

सड़क से उतरकर
चलना मिट्टी-घास पर
सूनी सपाट
पगडंडियों पर
एक-दूसरे से 
कुछ मीटर की दूरी पर 
राह में ज़रुर मिलेंगे कुछ लोग
पूछेंगे रोटी-पानी
बच्चों को दूध
हालचाल
भात-दाल 
करते रहना हाथों की धुलाई
लंबी है लड़ाई 
कोरोना महामारी,
मुसीबत में रखना नंबर साथ 

+91-11-23978046
जीत लेंगे बाज़ी हम भी
मानवता अब तक न हारी। 

©रवीन्द्र सिंह यादव 

शुक्रवार, 27 मार्च 2020

पतझड़ को दया न आयी

बसंत बहार का यौवन थे

अनुपम अद्भुत श्रृंगार थे  

ये पीतवर्ण सूखे फूल-पत्ते,

पर्णविहीन टहनियों पर 

लटके रह गये हैं अब 

मधुमय मधुमक्खी के छत्ते।
  

अब पेड़ों के नीचे 

बिस्तर से बिछ गये हैं

वृक्ष के अलंकरण,

इनमें समाया है दर्द, 

आह-मिलन के एहसास 

प्रश्न जीवन-मरण। 


ख़ुशनुमा फ़ज़ाओं में 

सुनहले किसलय बने थे 

मधुमास की उमंगें,

सजल नत नयन नियति 

धरती-अंबर में लहराती 

परिवर्तन की तीव्र तरंगें। 


अचकचायीं आवारा हवाएँ

असमय ओले-बारिश 

करते बसंत विदाई,

जोड़े हाथ खड़ा कृषक खेत में 

क़ुदरत की करे ख़ुशामद 

फ़सल-ए-बहार रौंदने में 

पतझड़ को दया न आयी। 

  
सड़-गल जाएँगे 

सूखे सुमन अकड़ीं पत्तियाँ 

खाद बनकर मिट्टी में समाएँगे,

नश्वर जग में कौन अमर है

थे ऋतु में सुषमा जग की 

समय-चक्र के साथ पुनः 

जीवन महकाने आएँगे। 

© रवीन्द्र सिंह यादव


शनिवार, 14 मार्च 2020

कोरोना वायरस

एकाकीपन क्लांत मन को 

एकांत में जाने को कहता
 
कोरोना वायरस महामारी को 

हतोत्साह के साथ संसार सहता। 


तमस का अंबार है छाया 

वक़्त विकट महामारी लाया

5000 लोग काल-कवलित हुए 

लाख से ऊपर संक्रमित हुए। 


दुनिया में देश जुट गये हैं 

अपने-अपने नागरिकों की जान बचाने 

सुरक्षा उपायों हेतु 

खुल गये हैं सरकारी खज़ाने। 


मृत्यु का भय महाविकट रोग है 

कालाबाज़ारी का यह कैसा योग है 

फ़ेस मास्क सेनिटाइज़र ग़ाएब हुए 

मानवता पर क़ुदरत का कठिन प्रयोग है।  

© रवीन्द्र सिंह यादव 

शुक्रवार, 6 मार्च 2020

क़ातिल दंगाई तुम कहाँ हो?

फ़रवरी 2020

अंतिम सप्ताह

दिल्ली में दंगा

चीख़-पुकार आह ही आह!

गिरीं लाशें


लुटे-जले मकान-दुकान

 
लाशों के सौदागरों के बयान

एंकर-एंकरनियों की तलवार / म्यान 


पीड़ितों का पलायन 

बिलखते आँगन

क्षत-विक्षत लाशों के ढेर

घायलों की दारुण टेर

विधवाओं का विकट विलाप

यतीमों का दिल दहलाता आलाप

माँओं की करुण सिसकी

बहनों की मार्मिक हिचकी

इंटरनेट पर जश्न और मातम

वैमनस्य का घनघोर तम

ध्वस्त होता विश्वास

टूटती आस

मानवता निराश

तड़पती सांस

भयावह मंज़र

निगाह में ख़ंजर

निडर लोग

पुलिस का योग

सब दिखायी / सुनायी दे रहा है इलाक़े में...

लेकिन क़ातिल दंगाई!

तुम कहाँ हो ?

घरों में

पुलिस की बताई माँदों में

नेताओं की कोठी पर

धर्म के ठेकेदारों की ड्योढ़ी पर  

डॉन / दलाल / दोस्त / रिश्तेदार की शरण में!

बस, ट्रेन, मेट्रो, ऑटोरिक्शा या कैब में?

नहीं !

तुम छिप रहे हो अपने आप से

तुम्हारे नाम की लिस्ट बन रही है

तुम्हें गोपनीय मीटिंग में तमग़े से नवाज़ा जाने वाला है

तुम्हारे कुकृत्यों को सराहा जाने वाला है

तुम्हारा और भी बुरा वक़्त आने वाला है

तुम्हें और अधिक क्रूर बर्बर हत्यारा बनाया जाना है

नया टारगेट थमाया जाना है

कुछ और घरों के चराग़ों को भटकाया जाना है

तुम्हारे नशे की डोज़ को और बढ़ाया जाना है

क्योंकि तुम्हारे दम पर

कुछ लोगों को और बड़ा बनना है

तुम्हें नफ़रत के सौदागरों का मोहरा बनना है

तुम्हारा नाम


चिह्नित / संभावित दंगाइयों की लिस्ट से 

काट दिया जाएगा

तुम्हारा परिवार दबिश से मुक्त रहेगा

कब तक ?

जब तक

तुम उनके इशारों पर नाचते रहोगे

क्योंकि तुम्हारा मार्ग एकांगी है

इतिहास में ऐसा ही लिखा जाएगा

जिसे कौन मिटा पाएगा?

© रवीन्द्र सिंह यादव

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