शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

संविधान पर दादा और पोते के बीच संवाद


गाँव की चौपाल पर अलाव

सामयिक चर्चा का फैलाव

विषयों का तीव्र बहाव

मुद्दों पर सहमति-बिलगाव।

बुज़ुर्ग दद्दू और पोते के बीच संवाद-

दद्दू: *****मुहल्ले से

            रमुआ ***** को बुला लइओ,

            कब से नाली बंद है...

पोता:  आप मुहल्ले से पहले,

            रमुआ के बाद...

           जो शब्द जोड़कर बोल रहे हैं,

           अब ग़ैर-क़ानूनी  हैं,

           असंवैधानिक  हैं...

दद्दू: ज़्यादा पढ़-लिख लिए हो!

पोता: आपकी कृपा से।

        ( रामू (रमुआ) का आगमन )

दद्दू:  ( जातिसूचक गाली देते हुए )

          क्यों रे *****रमुआ!

          तेरी इतनी औक़ात कि अब बुलावा भेजना पड़े!

पोता: दद्दू आप क़ानून तोड़ रहे हैं...

          रमुआ की शिकायत पर,

          संविधान आप दोनों के साथ इंसाफ़ कर सकता है...

दद्दू: जीना हराम कर दिया है तेरे संविधान ने...

पोता: हाँ, आप जैसों की चिढ़ को समझा जा सकता है। समानता और बंधुत्व का विचार आत्मसात् कर लेने में बुराई क्या है। हमारा संविधान ज़बानी जमा-ख़र्च नहीं है बल्कि लचीला और लिखित है।

दद्दू: हो गया तेरा लेक्चर!

पोता: एक सवाल और...

          ( दद्दू  से दूरी बनाते हुए )
 

         गंदगी का आयोजन करनेवाला बड़ा होता है या उसे   
         साफ़  करनेवाला...?

         (रामू नाली की सफ़ाई में जुट गया और दद्दू पोते के पीछे छड़ी

         लेकर दौड़े...)

© रवीन्द्र  सिंह यादव


2 टिप्‍पणियां:

  1. समाज की कड़वी सच्चाई का यथार्थवादी चित्रण जिसमें आपका वंचित वर्ग के लिये चिंतन स्पष्ट झलक रहा है। सम्वाद शैली की एक बेहतरीन रचना। बहुत अच्छी लगी यह रचना। लिखते रहिये इसी तरह।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-12-2019) को     "आज मेरे देश को क्या हो गया है"    (चर्चा अंक-3546)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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