गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

इश्क़ की दुनिया में ....


इश्क़ की दुनिया में

ढलते-ढलते रुक जाती है रात

हुक़ूमत दिल पर करते हैं जज़्बात

ज़ुल्फ़ के साये में होती  है शाम

साहब-ए-यार  के  कूचे से गुज़रे  तो हुए बदनाम

साथ निभाने का पयाम

वफ़ा का हसीं पैग़ाम

आँख हो जाती है जुबां हाल-ए-दिल सुनाने को

क़ुर्बान होती है शमा जलकर रौशनी फैलाने को

चराग़ जलते हैं आंधी में 

आग लग जाती है पानी में

आये महबूब तो आती है बहार

उसकी महक से महकते हैं घर-बार

सितारे उतर आते हैं ज़मीं पर

होते हैं ज़ुल्म-ओ-सितम सर-आँखों पर   

गुमां-ए-फंतासी में डूबा दिल

कहता है बहककर -

थम जा ऐ वक़्त !

बहुत प्यासा है दिल मोहब्बत का

अफ़सोस ! निष्ठुर है वक़्त

मारकर ठोकर इस याचना को

आगे बढ़ता रहता है

हमेशा की तरह..... 

#रवीन्द्र  सिंह यादव

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-12-2019) को     "आप अच्छा-बुरा कर्म तो जान लो"  (चर्चा अंक-3539)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूब ,लाजबाब सृजन ,सादर नमन सर

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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