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सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

बसंत तुम फिर चले जाओगे



शिशिर ने बसंत को सौंपी थीं  

मौसम की मासूम धड़कनें

अवनि-अंबर में छट गईं 

कोहरे की क़ाएम अड़चनें 

फाल्गुन, चैत्र महीने 

खेत-खलिहान, किसान 

महकती मोहक बयार 

हृदय में रचने लगे सृजन 

गेहूँ-जौ की सुनहरी बालियाँ 

गीत गातीं विहंग-वृंद बोलियाँ

आतुर हुए रंग-बिरंगे फूल-पत्तियाँ 

सजे सरसों के खेत और क्यारियाँ

गुनगुनी धूप समाई  

पुलकित-व्यथित अंतरमन की गहराइयों में 

कोकिला की कोमल कूक 

गूँजी सुदूर सघन अमराइयों में 

गीष्म की प्रताड़ना और पतझड़ का 

कल्पित भय दिखाकर 

बसंत तुम इस बार फिर चले जाओगे...

आस है कि तुम फिर चले आओगे।  

© रवीन्द्र सिंह यादव  


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