सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

बसंत तुम फिर चले जाओगे



शिशिर ने बसंत को सौंपी थीं  

मौसम की मासूम धड़कनें

अवनि-अंबर में छट गईं 

कोहरे की क़ाएम अड़चनें 

फाल्गुन, चैत्र महीने 

खेत-खलिहान, किसान 

महकती मोहक बयार 

हृदय में रचने लगे सृजन 

गेहूँ-जौ की सुनहरी बालियाँ 

गीत गातीं विहंग-वृंद बोलियाँ

आतुर हुए रंग-बिरंगे फूल-पत्तियाँ 

सजे सरसों के खेत और क्यारियाँ

गुनगुनी धूप समाई  

पुलकित-व्यथित अंतरमन की गहराइयों में 

कोकिला की कोमल कूक 

गूँजी सुदूर सघन अमराइयों में 

गीष्म की प्रताड़ना और पतझड़ का 

कल्पित भय दिखाकर 

बसंत तुम इस बार फिर चले जाओगे...

आस है कि तुम फिर चले आओगे।  

© रवीन्द्र सिंह यादव  


5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 24 फरवरी 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह!अनुज रविन्द्र जी ,बहुत सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बसंत तुम इस बार फिर चले जाओगे...

    आस है कि तुम फिर चले आओगे।

    बहुत सुंदर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  4. आह ऐसा सुंदर चित्रण अब सिर्फ किताबों और लिखावटों में ही देखने और सुनने को मिलता है बहुत ही सुंदर पोस्ट शुभकामनायें आपको ।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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